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स्टेट पी.सी.एस.

  • 05 Jun 2024
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मध्य प्रदेश Switch to English

फाॅरेस्ट ईगल आउल

चर्चा में क्यों?

पेंच टाइगर रिज़र्व फाॅरेस्ट ईगल आउल के एक कम ज्ञात समूह के लिये एक अनुकूल स्थान बन गया है, जिसे स्पॉट बेलीड ईगल आउल के रूप में भी पहचाना जाता है।

मुख्य बिंदु:

  • मध्य भारत में, इन निशाचर पक्षियों को मध्य प्रदेश पेंच और कान्हा टाइगर रिज़र्व से भी देखा गया है।
  • फाॅरेस्ट ईगल आउल, एक बड़ा पक्षी है जो जल के नज़दीक घने सदाबहार और नम पर्णपाती जंगलों में, आर्द्र शीतोष्ण तथा नदी तटीय (जल निकाय से सटे) जंगलों में पाया जाता है।
    • कई अन्य उल्लुओं की प्रजातियों की भाँति, स्पॉट बेलीड ईगल आउल भी विभिन्न उद्देश्यों जैसे संचार, क्षेत्रीय सुरक्षा और साथी को आकर्षित करना, की पूर्ति के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार की आवाज़ निकालता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने उनकी कॉल रिकॉर्ड की और रेवेन प्रो सॉफ्टवेयर से उनकी आवृत्ति का विश्लेषण किया।
    • रेवेन प्रो ध्वनि के अधिग्रहण, दृश्यीकरण, मापन और विश्लेषण हेतु एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है।

पेंच टाइगर रिज़र्व

  • यह महाराष्ट्र के नागपुर ज़िले में स्थित है और इसका नाम प्राचीन पेंच नदी के नाम पर रखा गया है।
    • पेंच नदी उद्यान के ठीक बीच से होकर बहती है।
    • यह उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है, जिससे रिज़र्व बराबर पूर्वी और पश्चिमी भागों में विभाजित हो जाता है।
  • PTR मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों का संयुक्त गौरव है।
    • यह रिज़र्व मध्य प्रदेश के सिवनी और छिंदवाड़ा ज़िलों में सतपुड़ा पहाड़ियों के दक्षिणी छोर पर स्थित है तथा महाराष्ट्र के नागपुर ज़िले में एक अलग रिज़र्व के रूप में फैला हुआ है।
  • इसे वर्ष 1975 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया तथा वर्ष 1992 में इसे बाघ अभयारण्य का दर्जा दिया गया।
    • हालाँकि वर्ष 1992-1993 में PTR मध्य प्रदेश को भी यही दर्जा दिया गया था। यह सेंट्रल हाइलैंड्स के सतपुड़ा-मैकल पर्वतमाला के प्रमुख संरक्षित क्षेत्रों में से एक है।
  • यह भारत के महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्रों (IBA) के रूप में अधिसूचित स्थलों में से एक है।
    • IBA बर्डलाइफ इंटरनेशनल का एक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य विश्व के पक्षियों और उनसे संबंधित विविधता के संरक्षण के लिये IBA के वैश्विक नेटवर्क की पहचान, निगरानी एवं सुरक्षा करना है।


छत्तीसगढ़ Switch to English

महुआ फूलों को लेकर कोया जनजाति में संघर्ष

चर्चा में क्यों?

गोदावरी घाटी में कोया जनजाति को सांस्कृतिक संकट का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि विशेष प्रवर्तन ब्यूरो के छापों के कारण महुआ शराब पीने की उनकी प्रिय परंपरा को खतरा उत्पन्न हो गया है।

मुख्य बिंदु:

  • महुआ, एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष जिसे वैज्ञानिक रूप से मधुका लॉन्गिफोलिया (Madhuca longifolia) के नाम से जाना जाता है, भारत में विभिन्न आदिवासी समूहों की परंपराओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • कोया समुदाय के बीच, यह वृक्ष पूजनीय है और विभिन्न समारोहों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्मियों की शुरुआत में इसके फूल खिलते हैं और मुख्य रूप से शराब बनाने के लिये उपयोग किये जाते हैं।
    • सूखे फूल उन लोगों के लिये आय का एक प्रमुख स्रोत हैं जो उन्हें इकट्ठा करते हैं। गोदावरी घाटी में, कोया महुआ नट्स से खाना पकाने का तेल बनाते हैं।
  • यह बस्तर (छत्तीसगढ़) के आदिवासी क्षेत्रों में एक प्रमुख वन वृक्ष है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • महुआ के फूल शर्करा का एक समृद्ध स्रोत हैं और कहा जाता है कि इनमें विटामिन, खनिज एवं कैल्शियम होते हैं।
  • फूलों को किण्वित और आसुत किया जाता है जिससे मादक शराब बनती है जिसे 'देशी बीयर (Country beer)' भी कहा जाता है।
    • अनुमान है कि महुआ फूल के वार्षिक उत्पादन का 90% पेय पदार्थ बनाने की प्रक्रिया में उपयोग किया जाता है।

कोया जनजाति

  • कोया भारत के कुछ बहु-नस्लीय और बहुभाषी आदिवासी समुदायों में से एक हैं।
  • वे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों में गोदावरी नदी के दोनों किनारों पर जंगलों, मैदानों व घाटियों में रहते हैं।
  • ऐसा कहा जाता है कि कोया उत्तर भारत के बस्तर में अपने मूल निवास से मध्य भारत में चले आए थे।
  • भाषा:
    • कोया भाषा, जिसे कोयी भी कहा जाता है, एक द्रविड़ भाषा है। यह गोंडी से बहुत मिलती-जुलती है और इस पर तेलुगु का बहुत प्रभाव है।
    • अधिकांश कोया, कोयी के अलावा गोंडी या तेलुगु भी बोलते हैं।
  • व्यवसाय:
    • परंपरागत रूप से, वे पशुपालक और झूम कृषि करने वाले किसान थे, लेकिन आजकल, वे पशुपालन तथा मौसमी वन संग्रह के साथ-साथ स्थायी कृषि करने लगे हैं।
    • वे ज्वार, रागी, बाजरा और अन्य मोटे अनाज उगाते हैं
  • समाज और संस्कृति:
    • सभी कोया गोत्रम नामक पाँच उप-विभागों में से एक से संबंधित हैं। प्रत्येक कोया एक कुल में पैदा होता है और वह उसे छोड़ नहीं सकता।
    • कोयाओं का एक पितृवंशीय और पितृस्थानीय परिवार होता है। परिवार को "कुटुम" कहा जाता है। एकल परिवार प्रमुख प्रकार है।
    • कोयाओं में एकविवाह प्रचलित है।
    • कोया अपने स्वयं के जातीय धर्म का पालन करते हैं लेकिन कई हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं।
    • कई कोया देवता महिला हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण "धरती माता" है।
    • वे ज़रूरतमंद परिवारों की सहायता करने और खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये गाँव स्तर पर सामुदायिक निधि और अनाज बैंक बनाए रखते हैं।
    • कोया मृतकों को या तो दफनाते हैं या उनका दाह संस्कार करते हैं। वे मृतकों की याद में मेनहिर बनाते हैं।
    • उनके मुख्य त्योहार विज्जी पांडुम (धरती तथा धान बीज की पूजा का उत्सव) और कोंडाला कोलुपु (पहाड़ी देवताओं को प्रसन्न करने का त्योहार) हैं।
    • कोया त्योहारों और विवाह समारोहों में भाग लेते हैं तथा एक जीवंत, ज़ोरदार नृत्य करते हैं जिसे पर्माकोक (बाइसन हॉर्न डांस) के रूप में जाना जाता है।


उत्तराखंड Switch to English

वनाग्नि से उत्तराखंड को राहत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हुई बारिश ने उत्तराखंड के पौड़ी और नैनीताल जैसे इलाकों में लगातार लग रही वनाग्नि से राहत दिलाई है।

मुख्य बिंदु:

  • मौजूदा तापमान में दो से तीन डिग्री की गिरावट के बावजूद, निवासियों को सलाह दी जाती है कि वे वनाग्नि को फैलने से रोकने के लिये अपने घरों के आस-पास सूखी झाड़ियों को हटा दें
  • इस मौसम में असामान्य रूप से उच्च तापमान ने वनाग्नि के प्रसार को तेज़ कर दिया है।
  • पिछले छह महीनों में, उत्तराखंड में 1,100 से अधिक आग की घटनाएँ हुई हैं, जिसमें 1,500 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि नष्ट हो गई है।

वनाग्नि पर सरकारी पहल

  • वनाग्नि के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Forest Fires- NAPFF) की शुरुआत वर्ष 2018 में वन सीमांत समुदायों को सूचित, सक्षम और सशक्त बनाकर तथा उन्हें राज्य वन विभागों के साथ सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित करके वनाग्नि को कम करने के लक्ष्य के साथ की गई थी।
  • वनाग्नि निवारण और प्रबंधन योजना (FPM) एकमात्र सरकारी प्रायोजित कार्यक्रम है जो वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता करने के लिये समर्पित है।


उत्तर प्रदेश Switch to English

अग्निवीर भारतीय सेना की गोरखा राइफल्स में शामिल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वाराणसी में, तीसरे बैच के अग्निवीरों ने भारतीय सेना की 3 और 9 गोरखा राइफल्स में शामिल होने के लिये ‘अंतिम पग’ पार करते हुए 39 गोरखा प्रशिक्षण केंद्र (GTC) के परेड ग्राउंड पर मार्च किया।

  • 3 और 9 गोरखा राइफल्स भारतीय सेना की गोरखा पैदल सेना रेजिमेंट हैं।
    • ये भारतीय सेना की सात गोरखा रेजिमेंटों में से हैं। अन्य रेजिमेंट 1 GR, 4 GR, 5 GR (FF), 8 GR और 11 GR हैं।

मुख्य बिंदु:

  • अग्निपथ योजना वर्ष 2022 में शुरू की गई थी। यह देशभक्त और प्रेरित युवाओं को चार वर्ष की अवधि के लिये सशस्त्र बलों में सेवा करने की अनुमति देता है। सेना में शामिल होने वाले युवाओं को अग्निवीर कहा जाएगा।
    • इस योजना के तहत, प्रत्येक वर्ष लगभग 45,000 से 50,000 सैनिकों की भर्ती की जाएगी, और जिनमें से अधिकतर सिर्फ चार वर्ष में ही सेवा छोड़ देंगे।
    • इसमें 17 से 21 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं को चार वर्ष के लिये भर्ती करने का प्रावधान है, जिसमें से 25% को 15 वर्ष तक सेवारत रखने का प्रावधान है।
  • पात्रता मानदंड:
    • यह केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मियों (जो कमीशन अधिकारी के रूप में सेना में शामिल नहीं होते हैं) के लिये है।
      • कमीशन अधिकारी भारतीय सशस्त्र बलों में एक विशेष रैंक रखते हैं। वे प्रायः राष्ट्रपति की संप्रभु शक्ति के तहत कमीशन रखते हैं और आधिकारिक तौर पर देश की रक्षा करने के निर्देश दिये जाते हैं।
    • 17.5 वर्ष से 23 वर्ष की आयु के उम्मीदवार आवेदन करने के पात्र हैं।
  • उद्देश्य:
    • इससे भारतीय सशस्त्र बलों की औसत आयु प्रोफ़ाइल में लगभग 4 से 5 वर्ष की कमी आने की उम्मीद है।
    • इस योजना का लक्ष्य है कि आज सेना में जो औसत आयु 32 वर्ष है, वह छह से सात वर्षों में घटकर 26 वर्ष हो जाएगी।


उत्तर प्रदेश Switch to English

IIT-BHU में फैकल्टी इंडक्शन

चर्चा में क्यों?

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा प्रायोजित मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत IIT (BHU), वाराणसी में 24 दिवसीय फैकल्टी इंडक्शन कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • इस गहन कार्यक्रम में पूरे भारत से 40 प्रतिष्ठित संकाय सदस्य भाग लेंगे, जिसका उद्देश्य व्यावसायिक विकास को बढ़ावा देना और शैक्षणिक कौशल को बढ़ाना है।
  • मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम:
    • इसका उद्देश्य पूरे भारत में 15 लाख शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक कौशल से लैस करना है।
      • कार्यक्रम का उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के लिये अनुकूलित प्रशिक्षण प्रदान करके शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है।
    • मानव संसाधन विकास केंद्रों (HRDC) का नाम बदलकर मदन मोहन मालवीय शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र करने की भी घोषणा की गई।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

  • यह 28 दिसंबर, 1953 को अस्तित्त्व में आया और विश्वविद्यालय शिक्षा में शिक्षण, परीक्षा एवं अनुसंधान के मानकों के समन्वय, निर्धारण तथा रखरखाव के लिये वर्ष 1956 में संसद के एक अधिनियम द्वारा एक वैधानिक निकाय बन गया।
  • UGC का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

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