उत्तर प्रदेश Switch to English
सूरजपुर आर्द्रभूमि
चर्चा में क्यों?
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने सूरजपुर आर्द्रभूमि की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिये एक परियोजना विकसित की है।
मुख्य बिंदु
- प्रदूषित अपशिष्ट जल से खतरा:
- इस आर्द्रभूमि को अत्यधिक प्रदूषित अपशिष्ट जल के अंधाधुंध तरीके से इसके नालों में छोड़े जाने के कारण गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है, जिससे इसका पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ गया है।
- तकनीकी सहायता की आवश्यकता:
- प्राधिकरण के अनुसार, अनुसंधान संस्थान, गैर-सरकारी संगठन (NGO) और पर्यावरण विशेषज्ञ आर्द्रभूमि की सुरक्षा और पुनर्स्थापना के लिये तकनीकी सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- पारिस्थितिक महत्त्व:
- औद्योगिक शहर ग्रेटर नोएडा के हृदय में स्थित सूरजपुर आर्द्रभूमि एक महत्त्वपूर्ण वन्यजीव आवास के रूप में कार्य करती है, जिससे इसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
- भौगोलिक विस्तार और विशेषताएँ:
- यह अभयारण्य 325 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें 60 हेक्टेयर की प्राकृतिक झील भी शामिल है, जो नोएडा से लगभग 20 किमी. दूर दादरी-सूरजपुर-छलेरा (DSC) सड़क पर स्थित है।
- प्रवासी पक्षियों के लिये स्वर्ग:
- सर्दियों के मौसम में, यह आर्द्रभूमि विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करती है, जिससे इसका पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय मूल्य बढ़ जाता है।
सूरजपुर आर्द्रभूमि
- स्थान और प्रशासनिक क्षेत्राधिकार:
- यह आर्द्रभूमि गौतमबुद्ध नगर ज़िले की दादरी तहसील के सूरजपुर गाँव के पास स्थित है।
- यह ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण, उत्तर प्रदेश के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- यमुना बेसिन में शहरी आर्द्रभूमि:
- यह आर्द्रभूमि यमुना नदी बेसिन के भीतर शहरी आर्द्रभूमि का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- पारिस्थितिक महत्त्व और हरित आवरण:
- यह ग्रेटर नोएडा के लिये हरित फेफड़े के रूप में कार्य करता है, जो 308 हेक्टेयर जलग्रहण क्षेत्र को कवर करता है, जिसमें से 60 हेक्टेयर जलाशय के लिये समर्पित है।
- महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में मान्यता (IBA):
- पक्षी संरक्षण में इसके महत्त्व के कारण बर्डलाइफ इंटरनेशनल ने इस आर्द्रभूमि को एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (IBA) के रूप में वर्गीकृत किया है।
- जलपक्षियों के लिये प्रजनन एवं शीतकालीन आवास:
- यह आर्द्रभूमि स्पॉट-बिल्ड डक, लेसर-व्हिसलिंग डक, कॉटन पिग्मी गूज और कॉम्ब डक जैसे जलपक्षियों के लिये प्रजनन स्थल प्रदान करती है।
- यह रेड-क्रेस्टेड पोचर्ड, फेरुजिनस पोचर्ड, बार-हेडेड गूज़, ग्रेलैग गूज, कॉमन टील, नॉर्दर्न शॉवलर और गैडवॉल सहित शीतकालीन जलपक्षियों का भी आश्रय है।
- विविध वन्यजीव उपस्थिति:
- समृद्ध पक्षी संख्या के अलावा, यह आर्द्रभूमि छह स्तनपायी प्रजातियों का भी आवास है, जिनमें नीलगाय, भारतीय ग्रे नेवला, भारतीय खरगोश, सुनहरा सियार और पाँच धारी वाली गिलहरी शामिल हैं।
- पर्यावरणीय खतरे:
- इस आर्द्रभूमि को अत्यधिक प्रदूषित अपशिष्ट जल के अँधाधुंध बहाव के कारण गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इसके पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
उत्तर प्रदेश में क्षुद्रग्रह की खोज
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) ने नोएडा के कक्षा 9 के छात्र दक्ष मलिक को एक क्षुद्रग्रह की अनंतिम खोज के लिये मान्यता प्रदान की गई है, जिसे वर्तमान में '2023 OG40' के रूप में लेबल किया गया है।
मुख्य बिंदु
- अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह खोज परियोजना (IADP) में भागीदारी:
- दो स्कूली मित्रों के साथ, छात्र ने IADP में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिसने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय खोज सहयोग (IASC) से परिचित कराया।
- IASC, एक NASA-संबद्ध नागरिक विज्ञान पहल है, जो क्षुद्रग्रह खोज में वैश्विक भागीदारी को सक्षम बनाती है।
- यह विश्वभर के छात्रों और खगोल विज्ञान के प्रति उत्साही लोगों को आकाशीय डेटा का विश्लेषण करने और वैज्ञानिक अनुसंधान में योगदान करने का अवसर प्रदान करता है।
- एक दुर्लभ उपलब्धि:
- प्रतिवर्ष 6,000 से अधिक प्रतिभागियों के IADP में शामिल होने के बावजूद, केवल कुछ ही नए क्षुद्रग्रहों की पहचान करने में सफल होते हैं।
- इस खोज से पहले, देश के केवल पाँच छात्रों ने कभी नामित क्षुद्रग्रह की खोज की थी।
- क्षुद्रग्रह का नामकरण:
- इस उपलब्धि से खगोलीय पिंड का सत्यापन प्रक्रिया के पश्चात नामकरण करने का विशेषाधिकार भी प्राप्त होता है, जिसमें लगभग चार से पाँच वर्ष का समय लग सकता है।
क्षुद्रग्रह
- क्षुद्रग्रह, जिन्हें लघु ग्रह भी कहा जाता है, लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले हमारे सौरमंडल के निर्माण के प्रारंभिक चरण के अवशेष हैं।
- वे मुख्यतः अनियमित आकार प्रदर्शित करते हैं, हालाँकि कुछ लगभग गोलाकार रूप भी प्रदर्शित करते हैं।
- कई क्षुद्रग्रहों के साथ छोटे चंद्रमा भी होते हैं, यहाँ तक कि कुछ के तो दो चंद्रमा भी होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, द्वि-क्षुद्रग्रहों में एक दूसरे की परिक्रमा करने वाले दो समान आकार के चट्टानी पिंड शामिल होते हैं तथा त्रि-क्षुद्रग्रह प्रणालियाँ भी होती हैं।
उत्तर प्रदेश Switch to English
विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2025
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने 2 फरवरी 2025 को पार्वती अरगा रामसर साइट, गोंडा, उत्तर प्रदेश (UP) में विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2025 समारोह का आयोजन किया।
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- यह दिवस आर्द्रभूमि के महत्त्व के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष मनाया जाता है तथा यह दिवस 1971 में ईरान के रामसर में आर्द्रभूमि पर रामसर अभिसमय को अपनाए जाने की स्मृति को दर्शाता है।
- 2025 का विषय/ थीम: Protecting Wetlands for our Common Future अर्थात् हमारे सामान्य भविष्य के लिये आर्द्रभूमि की रक्षा।
- नया गलियारा:
- सरकार ने घोषणा की कि उत्तर प्रदेश में अयोध्या और देवीपाटन के बीच एक नया प्रकृति-संस्कृति पर्यटन गलियारा विकसित किया जाएगा।
- अमृत धरोहर पहल:
- अमृत धरोहर को जून 2023 में रामसर साइटों के संरक्षण के लिये लॉन्च किया गया था, जो चार प्रमुख घटकों अर्थात प्रजातियों और आवास संरक्षण, प्रकृति पर्यटन, आर्द्रभूमि आजीविका और आर्द्रभूमि कार्बन पर केंद्रित है।
- खतरा:
- आर्द्रभूमियों के लिये सबसे बड़ा खतरा औद्योगिक और मानवीय अपशिष्टों से होने वाला प्रदूषण है, जो इन पारिस्थितिकी प्रणालियों को नष्ट कर देता है।
पार्वती अरगा रामसर साइट
- परिचय : यह एक स्थायी स्वच्छ जल का वातावरण है, जिसमें दो झीलें अर्थात् पार्वती और अरगा शामिल हैं, जो वर्षा आधारित हैं और तराई क्षेत्र (गंगा के मैदान) में स्थित हैं।
- निकटवर्ती टिकरी वन को भी इको-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
- ऑक्सबो झीलें यू आकार की झीलें हैं, जो तब बनती हैं जब किसी नदी का घुमावदार मार्ग कट जाता है, जिससे एक अलग जल निकाय का निर्माण होता है।
- पारिस्थितिक महत्त्व: यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय सफेद पूँछ वाले गिद्ध (White-rumped Vulture), भारतीय गिद्ध और लुप्तप्राय मिस्र के गिद्धों के लिये एक शरणस्थली है।
- यूरेशियन कूट्स, मैलार्ड्स, ग्रेलैग गीज़, नॉर्दर्न पिनटेल्स और रेड-क्रेस्टेड पोचर्ड्स जैसे प्रवासी पक्षी सर्दियों के महीनों में इस स्थल पर आते हैं।
- आक्रामक प्रजातियाँ: इसे आक्रामक प्रजातियों, विशेष रूप से सामान्य जलकुंभी से खतरा है।
- सांस्कृतिक स्थल: यह क्षेत्र महर्षि पतंजलि और गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली जैसे सांस्कृतिक स्थलों का आवास है, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।