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मध्य प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 03 Mar 2025
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मध्य प्रदेश में जनजातीय निगरानी

चर्चा में क्यों?

देश भर के वन अधिकार कार्यकर्त्ताओं और समर्थकों ने जनजातीय समुदायों और वनवासियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्यकारी आदेश जारी करने के लिये मध्य प्रदेश सरकार की आलोचना की, जिसमें विभिन्न वन क्षेत्रों में 'कुख्यात शिकारी समुदायों' की तलाशी और निगरानी की अनुमति दी गई।

मुख्य बिंदु:

  • आदेश में कानूनी आधार का अभाव:
    • एक वन अधिकार कार्यकर्त्ता ने इस आदेश को क्रूर बताया तथा कहा कि इसका कोई कानूनी आधार नहीं है।
    • उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने एक बार कुछ जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के तहत अपराधी के रूप में वर्गीकृत किया था, जिसे स्वतंत्रता के बाद निरस्त कर दिया गया तथा उन्हें विमुक्त कर दिया गया।
  • सरकारी आदेश:
    • 29 जनवरी 2025 को प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव), मध्य प्रदेश ने एक आदेश जारी किया:
      • मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति पारधी समुदाय सहित खानाबदोश जनजातियों की व्यापक खोज और निगरानी।
      • नर्मदापुरम, सिउनी, छिंदवाड़ा, बैतूल, भोपाल, जबलपुर और बालाघाट के वन मंडलों में लक्षित खोज़ अभियान।
      • खानाबदोश जनजातियों के घरों की तलाशी के लिये श्वान दस्तों का उपयोग।
      • निकटतम पुलिस स्टेशन में विमुक्त जनजातियों की उपस्थिति का अनिवार्य दस्तावेजीकरण।
      • बाघ गलियारों में घरेलू प्लास्टिक की वस्तुएँ, चादरें, जड़ी-बूटियाँ और पौधे बेचने वाले आदिवासी व्यापारियों की निगरानी।
  • औपनिवेशिक मानसिकता और कानूनी उल्लंघन:
    • यह बताया गया कि वन विभाग खानाबदोश जनजातियों को आदतन अपराधी मान रहा है, जो सर्वोच्च न्यायालय के अनेक निर्णयों के विपरीत है।
    • विशेषज्ञों का तर्क है कि यह आदेश वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत अधिकारों का उल्लंघन करता है, जो सुनिश्चित करता है:
      • वन भूमि पर निवास करने और कृषि करने का अधिकार
      • वन उपज तक पहुँच
      • आवासों पर सामुदायिक स्वामित्व अधिकार
      • खानाबदोश और पशुपालक समुदायों के लिये मौसमी संसाधन तक पहुँच
      • SC/ST अधिनियम के तहत सुरक्षा और संभावित कानूनी परिणाम
      • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत भी जनजातीय अधिकारों को संरक्षण प्राप्त है।

पारधी जनजाति

  • यह ज्यादातर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।
  • पारधी शब्द मराठी शब्द 'पारध' से लिया गया है जिसका अर्थ है शिकार करना और संस्कृत शब्द 'पापर्धी' जिसका अर्थ है शिकार किया जाने वाला खेल।
  • वे राजस्थानी और गुजराती की मिश्रित बोलियाँ बोलते हैं, मुख्यतः वागड़ी और पारधी भाषाएँ।
    • ये भाषाएँ पश्चिमी इंडो-आर्यन भाषा समूह की भील भाषाओं में वर्गीकृत हैं।




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