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हरियाणा का चुनावी इतिहास
चर्चा में क्यों?
हरियाणा एक छोटा किन्तु राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण राज्य है, जहाँ लगातार राजनीतिक दलबदल का इतिहास रहा है, तथा इसका चुनावी परिदृश्य प्रमुख परिवारों और जातिगत गतिशीलता से प्रभावित होता है।
मुख्य बिंदु
- हरियाणा का गठन (वर्ष 1966):
- हरियाणा का गठन 1 नवंबर 1966 को अविभाजित पंजाब से अलग करके किया गया था।
- पंजाब के पूर्व श्रम मंत्री भगवत दयाल शर्मा को पहला मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।
- प्रारंभ में हरियाणा में 54 सीटें थीं, जो वर्ष 1967 में बढ़कर 81 हो गईं तथा वर्ष 1977 तक 90 हो गईं।
- आया राम, गया राम घटना (वर्ष 1967):
- अभिव्यक्ति की उत्पत्ति: एक निर्दलीय विधायक गया लाल ने एक ही दिन में कई बार दल बदला।
- प्रभाव: "आया राम, गया राम" शब्द भारत में राजनीतिक दलबदलुओं के लिये एक लोकप्रिय शब्द बन गया।
- प्रमुख नेताओं का राजनीतिक प्रभुत्त्व:
- बंसी लाल (वर्ष 1968-1975): भिवानी के एक जाट नेता, बंसी लाल ने आपातकाल तक सत्ता संभाली।
- देवी लाल (वर्ष 1977): आपातकाल के बाद जनता पार्टी को विजय दिलाई; वर्ष 1979 में भजन लाल ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया।
- भजन लाल का प्रभाव (वर्ष 1980-1982): इंदिरा गांधी की कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन किया, बार-बार पार्टी बदलने के बावजूद सत्ता में बने रहे।
- लोकदल का प्रभुत्त्व: देवीलाल की लोकदल ने भाजपा के साथ गठबंधन करके वर्ष 1987 में बहुमत प्राप्त किया।
- वी.पी. सिंह का काल: देवी लाल ने वी.पी. सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का समर्थन किया, उप प्रधानमंत्री बने तथा उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने हरियाणा की सत्ता संभाली।
- चौटाला के कार्यकाल: ओम प्रकाश चौटाला वर्ष 1989 से वर्ष 1991 के बीच अनेक बार मुख्यमंत्री रहे।
- हुड्डा काल (वर्ष 2005-2014): कॉन्ग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में सरकार बनी, जिसका ध्यान रोहतक क्षेत्र पर केंद्रित था।
- भाजपा का उदय (वर्ष 2014): भाजपा ने 47 सीटें जीतीं, जिससे मनोहर लाल खट्टर हरियाणा के पहले गैर-जाट मुख्यमंत्री बने।
- वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य (वर्ष 2024):
- ग्रामीण-शहरी विभाजन:
- शहरी क्षेत्र: गुरुग्राम, फरीदाबाद, पानीपत में उद्योग और गैर-कृषि क्षेत्र अधिक हैं।
- ग्रामीण क्षेत्र: रेवाड़ी, जींद, भिवानी जैसे मध्य और दक्षिणी क्षेत्र कृषि प्रधान हैं, तथा यहाँ जाट आबादी अधिक है।
- ग्रामीण-शहरी विभाजन:
- जाट बाहुल्य क्षेत्र की चिंताएँ:
- किसानों का विरोध प्रदर्शन: कृषि कानूनों के खिलाफ आक्रोश, जिन्हें बाद में निरस्त कर दिया गया।
- अग्निवीर योजना: सैनिकों की रोज़गार की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ।
- पहलवानों का विरोध प्रदर्शन: भाजपा नेता पर यौन उत्पीड़न के आरोपों से नाराजगी।
- बेरोज़गारी: युवा रोज़गार के अवसरों से असंतुष्ट हैं।
- शहरी क्षेत्र: बुनियादी ढाँचे, रोज़गार और शासन पर ध्यान केंद्रित करना।
- जातिगत गतिशीलता:
- OBC प्रभाव: भाजपा और कॉन्ग्रेस दोनों OBC मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही हैं; कॉन्ग्रेस जाति जनगणना और आरक्षण सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव कर रही है।
- जाट-दलित गठबंधन: कॉन्ग्रेस चुनावी लाभ के लिये जाटों और दलितों के बीच ऐतिहासिक विभाजन को पाटने का प्रयास कर रही है।
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हरियाणा में शहीदी दिवस
चर्चा में क्यों?
हरियाणा में शहीदी दिवस 23 सितंबर, 2024 को भारत की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों, विशेष रूप से स्वतंत्रता सेनानी राव तुला राम की याद में मनाया गया।
प्रमुख बिंदु
- सार्वजनिक अवकाश घोषणा:
- हरियाणा सरकार ने शहीदी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। इस दिन राज्य भर के सभी सरकारी और निजी स्कूल, कॉलेज एवं कोचिंग संस्थान बंद रहेंगे।
- ऐतिहासिक महत्त्व:
- शहीदी दिवस 1857 के विद्रोह में अग्रणी रहे स्वतंत्रता सेनानी राव तुला राम की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है।
- यह दिन उन शहीदों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने देश के लिये, विशेषकर भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने प्राणों की आहुति दे दी।
1857 का विद्रोह
- 1857 का विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ में शुरू हुआ लेकिन यह 13 मई 1857 को हरियाणा के अंबाला छावनी तक पहुँच गया और गुरुग्राम में सिपाही विद्रोह का नेतृत्व किया, जहाँ कलेक्टर विलियम फोर्ड को सिपाहियों के विरोध का सामना करना पड़ा।
- अहीरवाल में राव तुला राम, पलवल में गफ्फूर अली और हरसुख राय, फरीदाबाद में धनु सिंह, बल्लभगढ़ में नाहर सिंह आदि हरियाणा में विद्रोह के महत्त्वपूर्ण नेता थे।
- विभिन्न लड़ाइयाँ रियासतों के शासकों और किसानों द्वारा लड़ी गईं, जिनमें कभी-कभी किसानों को ब्रिटिश सेना पर विजय भी मिली। कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण लड़ाइयाँ सिरसा, सोनीपत, रोहतक और हिसार में लड़ी गईं। सिरसा में चोरमार की प्रसिद्ध लड़ाई लड़ी गई थी।
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