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आदर्श सौर गाँव
चर्चा में क्यों
अयोध्या में 5,000 की आबादी वाले प्रत्येक गाँव को एक आदर्श सौर गाँव के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसका लक्ष्य 50,000 सौर घर स्थापित करना है।
मुख्य बिंदु:
- प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना का उद्देश्य 50,000 घरों को सौर पैनलों से सुसज्जित करके अयोध्या को सौर शहर में बदलना है।
- आदर्श सौर गाँव योजना के तहत 5,000 निवासियों वाले 42 गाँवों में से एक गाँव का चयन किया जाएगा, ताकि सौर पैनलों की व्यापक स्थापना को बढ़ावा दिया जा सके।
- प्रत्येक परिवार को एक किलोवाट सौर पैनल के लिये 65,000 रुपए की लागत आएगी, जिसमें से 30,000 रुपए केंद्र सरकार और 15,000 रुपए राज्य सरकार द्वारा अनुदानित किये जाएंगे।
- सौर पंप लगाने वाले किसानों को कुसुम योजना के तहत अतिरिक्त अनुदान मिलेगा।
- केंद्र सरकार ने प्रत्येक आदर्श सौर गाँव के लिये 1 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, जो विकास के लिये गाँव पंचायत को हस्तांतरित किये जाएंगे।
पीएम-कुसुम क्या है?
- परिचय:
- पीएम-कुसुम भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 में शुरू की गई एक प्रमुख योजना है जिसका प्राथमिक उद्देश्य सौर ऊर्जा समाधानों को अपनाने को बढ़ावा देकर कृषि क्षेत्र में बदलाव लाना है।
- यह मांग-आधारित दृष्टिकोण पर काम करता है। विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) से प्राप्त मांगों के आधार पर क्षमताओं का आवंटन किया जाता है।
- विभिन्न घटकों और वित्तीय सहायता के माध्यम से, पीएम-कुसुम का लक्ष्य 31 मार्च, 2026 तक 30.8 गीगावाट की महत्त्वपूर्ण सौर ऊर्जा क्षमता वृद्धि हासिल करना है।
- पीएम-कुसुम के उद्देश्य:
- कृषि क्षेत्र की डीज़ल पर निर्भरता कम करना: इस योजना का उद्देश्य सौर ऊर्जा चालित पंपों और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहित करके सिंचाई के लिये डीज़ल पर निर्भरता को कम करना है।
- इसका उद्देश्य सौर पंपों के उपयोग के माध्यम से सिंचाई लागत को कम करके किसानों की आय में वृद्धि करना तथा उन्हें अधिशेष सौर ऊर्जा को ग्रिड को बेचने में सक्षम बनाना है।
- किसानों के लिये जल और ऊर्जा सुरक्षा: सौर पंपों तक पहुँच प्रदान करके तथा सौर-आधारित सामुदायिक सिंचाई परियोजनाओं को बढ़ावा देकर, इस योजना का उद्देश्य किसानों के लिये जल एवं ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना है।
- पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश लगाना: स्वच्छ एवं नवीकरणीय सौर ऊर्जा को अपनाकर, इस योजना का उद्देश्य पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को कम करना है।
- कृषि क्षेत्र की डीज़ल पर निर्भरता कम करना: इस योजना का उद्देश्य सौर ऊर्जा चालित पंपों और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहित करके सिंचाई के लिये डीज़ल पर निर्भरता को कम करना है।
- घटक:
- घटक-A: किसानों की बंजर/परती/चारागाह/दलदली/कृषि योग्य भूमि पर 10,000 मेगावाट के विकेंद्रीकृत भूमि/स्टिल्ट माउंटेड सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना।
- घटक-B: ऑफ-ग्रिड क्षेत्रों में 20 लाख एकल सौर पंपों की स्थापना।
- घटक-C: व्यक्तिगत पंप सौरीकरण और फीडर स्तर सौरीकरण के माध्यम से 15 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सौरीकरण।
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'दिल्ली चलो पदयात्रा': सोनम वांगचुक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जलवायु कार्यकर्त्ता सोनम वांगचुक के नेतृत्व में 100 से अधिक स्वयंसेवकों ने दिल्ली तक पैदल मार्च शुरू किया, जिसमें केंद्र से उनके चार सूत्री एजेंडे पर लद्दाख के नेतृत्व के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया गया।
मुख्य बिंदु:
- ‘दिल्ली चलो पदयात्रा’ का आयोजन लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) द्वारा किया गया था।
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4 सूत्रीय एजेंडा:
- वे राज्य के दर्जे होने का समर्थन कर रहे हैं।
- स्थानीय अधिकारों की रक्षा के लिये संविधान की छठी अनुसूची का विस्तार।
- लद्दाख के लिये समर्पित लोक सेवा आयोग के साथ भर्ती प्रक्रिया
- लेह और कारगिल ज़िलों के लिये अलग-अलग लोकसभा सीटें।
- वांगचुक ने अपनी मांगों के समर्थन में मार्च माह में 21 दिन की भूख हड़ताल की थी।
- वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, लद्दाख केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत एक केंद्रशासित प्रदेश बन गया।
छठी अनुसूची क्या है?
- अनुच्छेद 244: अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची स्वायत्त प्रशासनिक प्रभागों, स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADC) के गठन का प्रावधान करती है, जिनके पास राज्य के भीतर कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता होती है।
- वर्तमान स्थिति: छठी अनुसूची में चार पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये विशेष प्रावधान हैं।
- स्वायत्त ज़िले: इन चार राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है। राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को संगठित और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
- ज़िला परिषद: प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक ज़िला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा नामित होते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
- परिषद की शक्तियाँ: ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं।
- वे भूमि, वन, नहर का पानी, झूम खेती, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाज़ आदि जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकते हैं। लेकिन ऐसे सभी कानूनों को राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है।
- वे जनजातियों के बीच मुकदमों और मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या न्यायालयों का गठन कर सकते हैं। वे उनसे अपील सुनते हैं। इन मुकदमों तथा मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
- ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक विद्यालय, औषधालय, बाज़ार, नौका विहार, मत्स्य पालन, सड़क आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है।
- उन्हें भूमि राजस्व का आकलन और संग्रह करने तथा कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार दिया गया है।
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