छत्तीसगढ़ Switch to English
अनुच्छेद 21 का उल्लंघन
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि कोई भी महिला को कौमार्य परीक्षण के लिये मजबूर नहीं कर सकता, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, जो उसके जीवन, स्वतंत्रता और सम्मान के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है।
मुख्य बिंदु
- मामले की पृष्ठभूमि:
- एक याचिकाकर्त्ता ने अपनी पत्नी के लिये कौमार्य परीक्षण की मांग करते हुए आरोप लगाया कि उसकी पत्नी अवैध संबंध में है।
- उन्होंने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें उनके अनुरोध को खारिज कर दिया गया था।
- कौमार्य परीक्षण पर न्यायालय का रुख:
- उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि किसी भी महिला को कौमार्य परीक्षण के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता।
- इसमें कहा गया कि इस तरह का परीक्षण अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, जो सम्मान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- कौमार्य परीक्षण की अनुमति देना मौलिक अधिकारों, प्राकृतिक न्याय और महिला की गरिमा का उल्लंघन होगा।
- उच्च न्यायालय ने पुनः पुष्टि की कि अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार पूर्ण और अपरिवर्तनीय है।
अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण
- किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
- यह मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति, नागरिक और विदेशियों को समान रूप से उपलब्ध है।
- अनुच्छेद 21 दो अधिकार प्रदान करता है:
- जीवन का अधिकार
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिकार को 'मौलिक अधिकारों का हृदय' बताया है। इसका तात्पर्य यह है कि यह अधिकार केवल राज्य के विरुद्ध प्रदान किया गया है।
- यहाँ राज्य में सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि सरकारी विभाग, स्थानीय निकाय, विधायिका आदि भी शामिल हैं।
- जीवन का अधिकार सिर्फ़ जीवित रहने के अधिकार के बारे में नहीं है। इसमें गरिमा और अर्थ के साथ पूर्ण जीवन जीने की क्षमता भी शामिल है।
- केस कानून:
- ए.के. गोपालन केस (1950): 1950 के दशक तक अनुच्छेद 21 का दायरा सीमित था। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संविधान में 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया' शब्द ने अमेरिकी 'उचित प्रक्रिया' के बजाय व्यक्तिगत स्वतंत्रता की ब्रिटिश अवधारणा को मूर्त रूप दिया है।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978): इस मामले ने गोपालन मामले के फैसले को पलट दिया। अनुच्छेद 21 में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विचार का दायरा बहुत व्यापक है, जिसमें कई अधिकार शामिल हैं, जिनमें से कुछ अनुच्छेद 19 के तहत सन्निहित हैं, इस प्रकार उन्हें 'अतिरिक्त सुरक्षा' दी गई है। न्यायालय ने यह भी माना कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आने वाले कानून को अनुच्छेद 19 के तहत आवश्यकताओं को भी पूरा करना चाहिये।
- इसका अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से वंचित करने के लिये कानून के तहत कोई भी प्रक्रिया अनुचित, अविवेकपूर्ण या मनमानी नहीं होनी चाहिये।

