वनाग्नि से उत्तराखंड के वन्य जीवन और पारिस्थितिक संतुलन को खतरा | 09 May 2024

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड के वनों में लगी आग राज्य के समृद्ध वन्य जीवन को खतरे में डाल रही है, जिसमें बाघ, हाथी, तेंदुए, साथ ही पक्षियों और सरीसृपों की एक बड़ी शृंखला शामिल है।

मुख्य बिंदु:

  • पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है, विशेषकर पक्षियों और सरीसृपों के लिये स्थिति गंभीर बन चुकी है जिन्हें अपनी सीमित गतिशीलता के कारण आग से बचकर भागने में कठिनाई हो रही है।
  • पर्यावरण फोटोग्राफर के अनुसार, वनाग्नि के कारण घोंसला बनाने वाले पक्षियों सहित कई पक्षी प्रजातियों की भयंकर हानि हुई है।
  • वन संरक्षक (अनुसंधान), गंभीर रूप से संकटग्रस्त येलो हेडेड टॉर्टोइज़ के बारे में चिंतित हैं क्योंकि वनाग्नि के दौरान इन्हें खतरा बढ़ जाता है जब ये सूखे साल के पत्तों के नीचे आश्रय ढूँढते हैं।
  • पहले से ही इनकी घटती जीव संख्या को देखते हुए, इन कछुओं की थोड़ी-सी भी संख्या के नष्ट होने से इस प्रजाति के अस्तित्त्व पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
  • जंगल बचाओ, जीवन बचाओ’ अभियान से जुड़े गजेंद्र पाठक वनाग्नि के व्यापक पारिस्थितिक परिणामों पर ज़ोर देते हैं।
  • पत्तियों को जलाने से न केवल वन्य जीवन को नुकसान होता है, बल्कि मृदा अपरदन की रोकथाम और मृदा-स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण ह्यूमस परत का भी ह्रास होता है।
  • भृंग, चींटियाँ और मकड़ियों जैसे कीटों के विलुप्त हो जाने से नाज़ुक पारिस्थितिक संतुलन बरकरार रखने में चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।

येलो हेडेड टॉर्टोइज़ (Yellow-Headed Tortoise)

  • वैज्ञानिक नाम: इंडोटेस्टुडो एलोंगेट (Indotestudo elongate)
  • सामान्य नाम: इलोंगेटेड टॉर्टोइज़, पीला कछुआ और साल वन कछुआ
  • वितरण: यह दक्षिण-पूर्व एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप, विशेषकर पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले कछुए की एक प्रजाति है।
  • शारीरिक संरचना: 1 फुट तक लंबे इन कछुओं में कुछ हद तक संकीर्ण कवच और पीले सिर होते हैं। इनके शेल/कवच आमतौर पर हल्के टैनिश-पीले या कैरेमेल रंग के होते हैं, जिन पर काले रंग के धब्बे होते हैं।
  • IUCN रेड लिस्ट में स्थिति: गंभीर रूप से 
  • जीवसंख्या: IUCN के अनुसार पिछली तीन पीढ़ियों (90 वर्ष) में इस प्रजाति की जीवसंख्या में लगभग 80% की गिरावट आई है।
  • संकट: भोजन के लिये इसका बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता है और इसे स्थानीय उपयोग, जैसे सजावटी मुखौटे तथा अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार, दोनों के लिये एकत्र किया जाता है। चीन में कछुए की कवच को पीसकर बनाया गया मिश्रण कामोत्तेजक पदार्थ के रूप में भी काम आता है।