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State PCS Current Affairs

राजस्थान

लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण हेतु वेब पोर्टल

  • 30 Jan 2025
  • 6 min read

चर्चा में क्यों? 

राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण के लिये एक वेब पोर्टल शुरू करने का निर्देश दिया है।

मुख्य बिंदु

  • आदेश का कारण: कई लिव-इन जोड़ों को परिवार और समाज से धमकियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप वे अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर कर अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा की मांग करते हैं।     
    • अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को यह अधिकार प्रदान करता है कि यदि किसी नागरिक के अधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है तो वे  सरकारी संस्था के विरुद्ध मुकदमा दायर कर सकते हैं।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी को आदेश और रिट जारी करने की व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • न्यायालय ने कहा कि हालाँकि भारतीय कानून में लिव-इन रिश्तों को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने खुशबू बनाम कन्नैअम्मल (2010), लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006) और इंदिरा शर्मा बनाम वी.के. शर्मा (2013) जैसे कई मामलों में निर्णय दिया है कि ऐसे रिश्ते आपराधिक नहीं हैं और अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आते हैं।
  • विनियमित करने की आवश्यकता: न्यायालय ने लिव-इन संबंधों को विनियमित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला तथा कहा कि इनमें सामाजिक स्वीकृति का अभाव है तथा ये कानूनी जटिलताएँ उत्पन्न कर सकते हैं, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के लिये।
  • प्राधिकरण की स्थापना: जब तक कानून नहीं बन जाता, न्यायालय ने प्रत्येक ज़िले में एक सक्षम प्राधिकरण के गठन का आदेश दिया है, जो लिव-इन जोड़ों की शिकायतों को पंजीकृत करेगा और उनका समाधान करेगा।
    • सरकार को 1 मार्च, 2025 तक एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें उठाए गए कदमों की रूपरेखा होगी।
  • विवाहित व्यक्तियों पर कानूनी स्पष्टीकरण: न्यायालय ने इस मुद्दे को बड़ी पीठ को भेज दिया कि क्या बिना तलाक लिये लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले विवाहित व्यक्ति सुरक्षा की मांग कर सकते हैं।
  • लिव-इन जोड़ों के लिये नया कानूनी प्रारूप: 
    • न्यायालय के आदेश में एक औपचारिक पंजीकरण प्रारूप तैयार करना भी शामिल था जिसे लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने वाले सभी जोड़ों को पूरा करना होगा। दस्तावेज़ के अनुसार जोड़ों को ऐसे रिश्ते में प्रवेश करने से पहले विशिष्ट शर्तों पर सहमत होना होगा। प्रारूप में मुख्य प्रावधान निम्नलिखित होंगे:
      • बाल सहायता: दोनों भागीदारों को एक "बाल योजना" पर सहमत होने के लिये बाध्य किया जाएगा, जिसमें संबंध से पैदा होने वाले किसी भी बच्चे की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामान्य पालन-पोषण के लिये उनकी संबंधित ज़िम्मेदारियों को रेखांकित किया जाएगा।
      • भरण-पोषण: पुरुष साथी को अनर्जक (गैर-कमाऊ) महिला साथी और संबंध से उत्पन्न बच्चों की आर्थिक सहायता करने तथा उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी होगी।

संवैधानिक नैतिकता को कायम रखने वाले ऐतिहासिक निर्णय

  • लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006):
    • अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों को उत्पीड़न और हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया।
  • एस. खुशबू बनाम कन्नियाम्मल एवं अन्य (2010):
    • विवाह के बाहर वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए यौन संबंधों को कानूनी और गोपनीयता के अधिकार के अंतर्गत घोषित किया गया।
  • नाज़ फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार (2009):
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अधिकारों का उल्लंघन घोषित करते हुए, वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया।
  • जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018):
    • व्यभिचार को अपराध से मुक्त कर दिया गया तथा इसे समानता, सम्मान, गोपनीयता और स्वायत्तता के अधिकारों का उल्लंघन घोषित किया गया।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018):
    • LGBTQ+ व्यक्तियों के अपने यौन रुझान और पहचान को सम्मान के साथ व्यक्त करने के अधिकारों की पुष्टि की गई।
  • शफीन जहाँ बनाम अशोकन के.एम. (2018):
    • किसी भी धर्म या जाति की परवाह किये बिना अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार को मान्यता दी गई, जिससे हिंदू-मुस्लिम विवाह के निरसन को अमान्य कर दिया गया।
  • शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ (2018):
    • अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों के विरुद्ध हिंसा और सम्मान के नाम पर हत्या की निंदा की गई तथा रोकथाम और सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए।

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