विक्रमशिला विश्वविद्यालय | 26 Mar 2025
चर्चा में क्यों?
राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्जीवित होने के एक दशक बाद, बिहार में एक और प्राचीन शिक्षा केंद्र ‘विक्रमशिला विश्वविद्यालय’ को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया तेज़ हो गई है।
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) पर्यटन को बढ़ावा देने और संरक्षण के उद्देश्य से इस प्राचीन स्थल को विकसित कर रहा है।
मुख्य बिंदु
- केंद्र सरकार का वित्तीय सहयोग
- वर्ष 2015 में 500 करोड़ रुपए की स्वीकृति के बावजूद, भूमि पहचान की समस्या के कारण परियोजना में विलंब हुआ।
- अब बिहार सरकार ने भागलपुर ज़िले के अंतीचक गाँव में 202.14 एकड़ भूमि इस परियोजना के लिये चिह्नित की है।
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय:
- अवस्थिति:
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय बिहार के भागलपुर ज़िले में गंगा नदी के तट पर स्थित था।
- स्थापना:
- इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 8वीं शताब्दी के अंत और 9वीं शताब्दी के प्रारंभ में की थी।
- शैक्षणिक महत्त्व:
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय तांत्रिक बौद्ध धर्म एवं वज्रयान बौद्ध परंपरा के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा और इन सिद्धांतों के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- यह संस्थान गूढ़ एवं तांत्रिक अध्ययन में विशेषज्ञता के लिये प्रसिद्ध था, जो इसे नालंदा विश्वविद्यालय से अलग बनाता था।
- पाठ्यक्रम में धर्मशास्त्र, दर्शन, व्याकरण, तत्वमीमांसा, तर्कशास्त्र एवं तंत्र जैसे विविध विषय शामिल थे, जो इसकी शैक्षणिक समृद्धि को दर्शाते हैं।
- यहाँ भारत एवं विदेशों से लगभग 1,000 छात्र एवं 100 शिक्षक अध्ययन-अध्यापन हेतु आते थे, जो इसे एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिक्षा केंद्र बनाता है।
- विशेषताएँ एवं संरचना:
- विश्वविद्यालय का केंद्र बिंदु 208 कक्षों से घिरा एक भव्य स्तूप था, जहाँ विद्यार्थी एवं भिक्षु अध्ययन एवं ध्यान में संलग्न रहते थे।
- इसमें एक अनूठी शीतलन प्रणाली से युक्त पुस्तकालय था।
- विश्वविद्यालय का प्रशासन एक कुलपति (महास्थविर) द्वारा संचालित किया जाता था, जो इसके सुनियोजित एवं सुचारू संचालन के लिये उत्तरदायी होता था।
- पतन:
- 1203 ई. के आसपास, मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के आक्रमण के कारण यह विश्वविद्यालय नष्ट हो गया।
- अवस्थिति:
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण
- संस्कृति मंत्रालय के तहत ASI देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
- यह प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम,1958 के तहत देश के भीतर सभी पुरातात्त्विक उपक्रमों की देख-रेख करता है।
- यह 3,650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
- इसकी गतिविधियों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण करना, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज और उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण तथा रखरखाव आदि शामिल हैं।
- इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को “भारतीय पुरातत्त्व का जनक” भी कहा जाता है।
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