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निर्दलीय विधायकों के लिये दलबदल विरोधी कानून को समझना

  • 10 Oct 2024
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा में तीन निर्दलीय विधायकों ने विजेता दल को समर्थन दिया, जिससे दल का तीसरा कार्यकाल सुनिश्चित हो गया। यह स्थिति विशेषकर निर्दलीय विधायकों के लिये दल-बदल विरोधी कानून पर प्रश्न  उठाती है।

प्रमुख बिंदु 

  • संविधान की दसवीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून):
    • दसवीं अनुसूची उन परिस्थितियों को परिभाषित करती है जिनके तहत किसी विधायक द्वारा अपनी राजनीतिक निष्ठा बदलने पर कार्यवाही की जाती है।
    • चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होने वाले निर्दलीय विधायकों को भी कानून के तहत अयोग्य ठहराया जा सकता है।
  • कानून के अंतर्गत तीन परिदृश्य शामिल हैं:
    • किसी दल के टिकट पर निर्वाचित विधायक स्वेच्छा से दल की सदस्यता छोड़ देता है या दल की इच्छा के विरुद्ध वोट देता है।
    • एक निर्दलीय विधायक चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
    • मनोनीत विधायकों के पास नामांकन के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिये छह माह का समय होता है, अन्यथा उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • अयोग्यता प्रक्रिया:
    • विधानमंडल का पीठासीन अधिकारी अयोग्यता पर निर्णय लेता है। लोकसभा में अध्यक्ष और राज्यसभा में सभापति पीठासीन अधिकारी होते हैं।
    • इस निर्णय के लिये कोई निर्दिष्ट समय-सीमा नहीं है, जिसके कारण विलंब हो रहा है तथा राजनीतिक पूर्वाग्रह के आरोप लग रहे हैं।
    • वर्ष 2023 में, उच्चतम न्यायालय ने सुझाव दिया कि दलबदल विरोधी मामलों को तीन महीने के भीतर सुलझाया जाए।

भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची

  • परिचय:
    • भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची, जिसे दलबदल विरोधी कानून के नाम से भी जाना जाता है, 1985 में 52वें संशोधन द्वारा जोड़ी गई थी।
      • यह 1967 के आम चुनावों के बाद दल बदलने वाले विधायकों द्वारा अनेक राज्य सरकारों को गिराने की प्रतिक्रिया थी।
    • इसमें दलबदल के आधार पर संसद सदस्यों (MP) और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित प्रावधान निर्धारित किये गए हैं।
  • अपवाद:
    • यह कानून सांसदों/विधायकों के एक समूह को दलबदल के लिये दंड दिये बिना किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल होने (अर्थात विलय) की अनुमति देता है और यह दलबदल करने वाले विधायकों को प्रोत्साहित करने या स्वीकार करने के लिये राजनीतिक दलों को दंडित नहीं करता है।
    • दलबदल विरोधी अधिनियम, 1985 के अनुसार, किसी राजनीतिक दल के एक-तिहाई निर्वाचित सदस्यों द्वारा 'दलबदल' को 'विलय' माना जाता था।
    • लेकिन 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 ने इसे बदल दिया और अब कानून की नजर में वैध होने के लिये किसी दल के कम से कम दो-तिहाई सदस्यों का "विलय" के पक्ष में होना आवश्यक है।
  • विवेकाधीन शक्ति:
    • दल-बदल के आधार पर अयोग्यता से संबंधित प्रश्नों पर निर्णय उस सदन के सभापति या अध्यक्ष को भेजा जाता है, जो 'न्यायिक समीक्षा' के अधीन होता है।
    • हालाँकि, कानून में कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है जिसके भीतर पीठासीन अधिकारी को दलबदल मामले पर निर्णय लेना होगा।
  • दलबदल के आधार:
    • यदि कोई निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता त्याग देता है।
    • यदि वह अपने राजनीतिक दल द्वारा जारी किसी निर्देश के विपरीत ऐसे सदन में मतदान करता है या मतदान से अनुपस्थित रहता है।
    • यदि कोई स्वतंत्र रूप से निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
    • यदि कोई मनोनीत सदस्य छह माह की अवधि समाप्त होने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।

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