उत्तराखंड में कड़े पंजीकरण मानदंडों के साथ समान नागरिक संहिता लागू | 14 Jan 2025

चर्चा में क्यों? 

उत्तराखंड सरकार 26 जनवरी, 2025 को समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की तैयारी कर रही है, जिसमें व्यक्तिगत और नागरिक मामलों से संबंधित पंजीकरणों के लिये कई अनिवार्य आवश्यकताएँ शामिल होंगी।    

मुख्य बिंदु

  • UCC पोर्टल 
    • पोर्टल पर उपलब्ध सेवाएँ निम्नलिखित हैं:
      • विवाह, तलाक और लिव-इन संबंधों का पंजीकरण।
      • लिव-इन रिश्तों की समाप्ति।
      • बिना वसीयत के उत्तराधिकार और कानूनी उत्तराधिकारी की घोषणा।
      • वसीयतनामा उत्तराधिकार।
      • अस्वीकृत आवेदनों के मामले में शिकायत पंजीकरण और अपील।
  • व्यक्तिगत और सिविल मामलों के लिये विभिन्न आवश्यकताएँ शामिल हैं:
    • लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण:
      • मौजूदा और नए लिव-इन जोड़ों को अपने रिश्ते को पंजीकृत कराना होगा।
      • आवेदकों को आयु, राष्ट्रीयता, धर्म, फोन नंबर और पिछले संबंध की स्थिति का प्रमाण जैसे विवरण प्रदान करने होंगे।
      • दोनों भागीदारों की तस्वीरें और घोषणाएँ अनिवार्य हैं।
      • ऐसे रिश्तों में पैदा हुए बच्चों को जन्म प्रमाण-पत्र प्राप्त होने के सात दिनों के भीतर पंजीकृत किया जाना चाहिये।
    • विवाह और तलाक पंजीकरण:
      • पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये UCC पोर्टल के माध्यम से विवाह और तलाक के लिये सख्त आवश्यकताएँ लागू की गई हैं।
    • वसीयत उत्तराधिकार:
      • घोषणाकर्त्ताओं को अपना, अपने उत्तराधिकारियों और गवाहों का आधार से जुड़ा विवरण प्रस्तुत करना होगा।
      • जालसाजी या विवाद को रोकने के लिये गवाहों को उत्तराधिकार घोषणा-पत्र पढ़ते हुए स्वयं की वीडियो रिकॉर्डिंग अपलोड करना आवश्यक है।
    • विवाह एवं रिश्तों के लिये शिकायत तंत्र:
      • कोई तीसरा पक्ष UCC पोर्टल पर शिकायत के माध्यम से विवाह या लिव-इन रिलेशनशिप पर आपत्ति दर्ज करा सकता है।
      • झूठे आरोपों का मुकाबला करने के लिये ऐसी शिकायतों का सत्यापन उप-पंजीयक द्वारा किया जाएगा।

समान नागरिक संहिता (UCC)

  • समान नागरिक संहिता भारत के सभी नागरिकों के लिये विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समूह को संदर्भित करती है।
  • समान नागरिक संहिता की अवधारणा का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के रूप में किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। 
  • हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकार नहीं है, बल्कि राज्य के लिये एक मार्गदर्शक सिद्धांत है।