गया ज़िले के स्टोन आर्ट को GI टैग मिला | 20 Feb 2025
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार के गया ज़िले के 300 वर्ष पुराने स्टोन आर्ट को GI टैग प्रदान किया गया है।
मुख्य बिंदु
- स्टोन आर्ट के बारे में:
- बिहार के गया ज़िले के नीमचक बथानी प्रखंड के पत्थरकट्टी गाँव मूर्ति कला (स्टोन आर्ट) के लिये प्रसिद्ध है।
- स्टोन आर्ट में भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी की मूर्तियों के अतिरिक्त विभिन्न कलाकृतियों की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।
- वैश्विक पहचान:
- गया ज़िले के पत्थरकट्टी गाँव में स्टोन आर्ट से जुड़े 650 से अधिक शिल्पकार हैं। GI टैग मिलने से न केवल इन शिल्पकारों की बल्कि मूर्तिकला को भी विदेशों में एक नई पहचान मिलेगी। इससे इनकी आय भी बढ़ेगी।
- इतिहास:
- माना जाता है कि महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस गाँव का नाम पत्थरकट्टी रखा था।
- यही पर शिल्पकारों ने काले ग्रेनाइट पत्थर की पहाड़ी को खोजा। पत्थरकट्टी के काले ग्रेनाइट पत्थर से विष्णुपद मंदिर का निर्माण कराया गया।
- बिहार के अन्य GI टैग उत्पाद
- बिहार के जर्दालु आम, शाही लीची करतनी चावल, मगही पान और मधुबनी पेंटिंग को भी GI टैग मिल चुका है।
GI टैग
- GI टैग का पूर्ण रूप जियोग्राफिकल इंडिकेशन (Geographical Indication) है, जिसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक कहा जाता है। यह टैग उन उत्पादों को दिया जाता है जिनकी विशिष्टता, गुणवत्ता या प्रतिष्ठा किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी होती है।
- GI टैग मिलने से उत्पाद को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है।
- वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of goods ‘Registration and Protection’ act, 1999) के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ।
- वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ GI टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है।
- भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।