उत्तर प्रदेश
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को मान्यता प्रदान की
- 06 Nov 2024
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को आंशिक रूप से मान्यता प्रदान की तथा पुष्टि की कि उत्कृष्टता के मानकों को बनाए रखने के लिये राज्य को मदरसा शिक्षा को विनियमित करने का अधिकार है।
मुख्य बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- न्यायालय ने घोषणा की कि उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान, विशेष रूप से फाज़िल (स्नातक) और कामिल (स्नातकोत्तर) स्तर पर, असंवैधानिक थे।
- ये प्रावधान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 के साथ टकराव में थे, जो संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची की प्रविष्टि 66 के अनुसार केंद्र के विशेष क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।
- निर्णय में स्पष्ट किया गया कि यह अधिनियम राज्य के कर्त्तव्य के अनुरूप है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले छात्र न्यूनतम स्तर की योग्यता प्राप्त कर करें। इससे यह सुनिश्चित होता है कि वे समाज में प्रभावी रूप से भाग ले सकें और जीविकोपार्जन कर सकें।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यद्यपि अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार है, परंतु यह अधिकार पूर्ण नहीं है।
- अल्पसंख्यक संस्थानों में शैक्षिक मानकों को बनाए रखने में राज्य का वैध हित है और वह सहायता और मान्यता के लिये नियामक शर्तें लगा सकता है।
- न्यायालय ने समवर्ती सूची की प्रविष्टि 25 में 'शिक्षा' की व्यापक व्याख्या की तथा कहा कि यद्यपि मदरसे धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं, उनका प्राथमिक उद्देश्य शैक्षिक है, इसलिये वे इस प्रविष्टि के दायरे में आते हैं।
- मदरसा बोर्ड परीक्षा आयोजित करता है और छात्रों को प्रमाण पत्र जारी करता है, जो शैक्षिक ढाँचे के साथ संरेखित होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि 2004 का अधिनियम अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) और संविधान के धर्मनिरपेक्षता सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21A की व्याख्या धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के अधिकारों के साथ की जानी चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद 28(3) का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों को धार्मिक शिक्षा या पूजा में भाग लेने के लिये बाध्य नहीं किया जाना चाहिये, जिससे उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके।
- न्यायालय ने घोषणा की कि उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान, विशेष रूप से फाज़िल (स्नातक) और कामिल (स्नातकोत्तर) स्तर पर, असंवैधानिक थे।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004
- इस अधिनियम का उद्देश्य उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों (इस्लामी शैक्षणिक संस्थानों) के कामकाज को विनियमित और संचालित करना था।
- इसने उत्तर प्रदेश में मदरसों की स्थापना, मान्यता, पाठ्यक्रम और प्रशासन के लिये एक रूपरेखा प्रदान की।
- इस अधिनियम के तहत राज्य में मदरसों की गतिविधियों की देख-रेख और पर्यवेक्षण के लिये उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई।