सरना कोड | 03 Feb 2025

चर्चा में क्यों?

झारखंड स्थित राष्ट्रीय आदिवासी धर्म समन्वय समिति ने देशभर के अनुसूचित जनजाति संघों से आगामी जनगणना में अलग सरना धर्म कोड की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का आग्रह किया है।

मुख्य बिंदु

  • जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन:
    • राष्ट्रीय आदिवासी समन्वय समिति 28 फरवरी, 2025 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़े प्रदर्शन का नेतृत्व करेगी, जिसमें जनगणना में अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिये एक अलग धर्म कॉलम की मांग की जाएगी।
    • विरोध का आह्वान केंद्रीय सरना समिति सहित अन्य आदिवासी समूहों के बीच भी प्रसारित किया गया है, जिन्होंने अलग सरना धर्म कोड की मांग पर ज़ोर दिया है।
      • मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी संगठन दशकों से जनगणना में धर्म के लिये अलग कॉलम की मांग कर रहे हैं।
  • 2011 की जनगणना में आंदोलन का प्रभाव:
    • 2011 की जनगणना में इस आंदोलन के कारण 4.9 लाख लोगों ने 'अन्य' कॉलम में अपना धर्म सरना अंकित किया।
    • इनमें से 80% से अधिक उत्तरदाता झारखंड से थे, जिससे इस मांग के प्रति प्रबल क्षेत्रीय समर्थन उजागर होता है।
      • वर्ष 2011 के पश्चात, विशेष रूप से पूर्वी और मध्य भारत में आदिवासी समुदायों की बढ़ती एकजुटता के साथ, अलग सरना धर्म कोड की मांग ने महत्त्वपूर्ण रूप से गति प्राप्त की है।

सरना धर्म

  • परिचय:
    • सरना धर्म एक प्रकृति-पूजक विश्वास है, जिसे भारत के कई जनजातीय समुदायों द्वारा अपनाया गया है। इसे सरना धर्म या पवित्र वनों का धर्म भी कहा जाता है।
    • वे मुख्य रूप से ओडिशा, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे आदिवासी क्षेत्रों में केंद्रित हैं।
  • सरना धर्म की विशेषताएँ: 
    • वे जल, वन और ज़मीन सहित प्रकृति की पूजा करते हैं।
    • वे वनों की रक्षा में विश्वास रखते हैं और पेड़ों और पहाड़ों की पूजा करते हैं। वे मूर्तियों की पूजा नहीं करते।
    • वे वर्ण व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं।
    • वे सरहुल त्योहार मनाते हैं, जो नए साल का त्योहार है।