दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 | 27 Apr 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन में अपेक्षित नियम बनाने में कुछ राज्यों की विफलता पर नाराज़गी व्यक्त की।
मुख्य बिंदु:
- अधिनियम के अनुसार, राज्य की नियम-निर्माण शक्तियों में दिव्यांगता पर अनुसंधान के लिये एक समिति का गठन, ज़िला स्तरीय समितियों का गठन और राज्य आयुक्त की सेवाओं के वेतन, भत्तों एवं अन्य शर्तों को निर्धारित करना तथा दिव्यांगजनों के लिये धन का सृजन शामिल है।
- शीर्ष न्यायालय ने पाया कि उसने अधिनियम के उचित कार्यान्वयन के लिये कई आदेश पारित किये हैं लेकिन कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अभी तक अपने दायित्वों को पूरा नहीं किया है।
- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों ने राज्य आयुक्तों की नियुक्ति नहीं की है।
- जबकि गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल, मिज़ोरम, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, दमन एवं दीव, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख ने अभी तक निर्धारित धनराशि का गठन नहीं किया है।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
- यह अधिनियम दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD) को प्रभावी बनाने के लिये भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था, जिसे भारत ने वर्ष 2007 में अनुमोदित किया था।
- यह अधिनियम पहले के नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 का स्थान लेता है, जिसे भारत में दिव्यांगजनों की ज़रूरतों और चुनौतियों को संबोधित करने में अपर्याप्त तथा पुराना माना जाता था।
- अधिनियम द्वारा शुरू किये गए प्रमुख परिवर्तनों में से एक दिव्यांगता की परिभाषा और वर्गीकरण का विस्तार है।
- अधिनियम 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को मान्यता देता है, जबकि पिछले कानून के तहत यह 7 प्रकार की थी। ये हैं:
- अंध और दृष्टि-बाधित, कुष्ठ रोग से मुक्त व्यक्ति,
- श्रवणविकार/दोष, चलन-संबंधी दिव्यांगता, बौनापन
- बौद्धिक दिव्यांगता, मानसिक रुग्णता, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार,
- सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल स्थितियाँ,
- स्पेसिफिक लर्निंग डिसेबिलिटी, मल्टीपल स्केलेरोसिस, वाक् एवं भाषा दिव्यांगता,
- थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, सिकल सेल रोग,
- श्रवण विकार/दोष, तेजाब हमले से प्रभावित और पार्किन्संस रोग सहित कई दिव्यांगताएँ।
- यह केंद्र सरकार को निर्दिष्ट दिव्यांगता की किसी अन्य श्रेणी को अधिसूचित करने का अधिकार देता है।
- यह दिव्यांग व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जिसके पास दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी हानि है, जो बाधाओं के कारण, उन्हें दूसरों के साथ समान समाज में पूरी तरह और प्रभावी ढंग से भाग लेने से रोकती है।
- यह बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें निर्दिष्ट दिव्यांगता 40% से कम नहीं है, जहाँ निर्दिष्ट दिव्यांगता को मापने योग्य शर्तों में परिभाषित नहीं किया गया है और इसमें दिव्यांगता वाला व्यक्ति भी शामिल है, जहाँ निर्दिष्ट दिव्यांगता को मापने योग्य शर्तों में परिभाषित किया गया है, जैसे- प्रमाणन प्राधिकारी द्वारा प्रामाणित।
- इसके अनुसार दिव्यांग व्यक्तियों को सहायता की उच्च आवश्यकता होती है और उन्हें अपनी दैनिक गतिविधियों के लिये दूसरों से सहायता की आवश्यकता होती है।