गांधी सागर अभयारण्य में चीतों का पुनर्वास | 12 Jun 2024
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश सरकार ने गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य को चीतों के लिये नया आवास बनाने की तैयारियाँ पूरी कर ली हैं।
मुख्य बिंदु:
- केन्या और दक्षिण अफ्रीका की टीमों ने चीतों के पुनर्वास के लिये स्थितियों का आकलन करने हेतु पहले ही गांधी सागर का दौरा किया था।
- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें बताया गया कि तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं।
- कान्हा, सतपुड़ा और संजय बाघ अभ्यारण्यों से शिकार जानवरों को गांधी सागर में स्थानांतरित किया गया।
- महत्त्वाकांक्षी चीता पुनर्वास परियोजना के तहत, 17 सितंबर, 2022 को मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िले में कुनो राष्ट्रीय उद्यान (KNP) में आठ नामीबियाई चीता, पाँच मादा और तीन नर को बाड़ों में रखा गया।
- फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते लाए गए।
- बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को मध्य प्रदेश के वनों में गैंडे और अन्य दुर्लभ एवं संकटग्रस्त वन्य जीवों को लाने की संभावनाओं पर अध्ययन करने के निर्देश दिये।
- मंदसौर ज़िले में गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य श्योपुर में कुनो राष्ट्रीय उद्यान से लगभग 270 किमी. दूर है।
- चीतों का दूसरा निवास स्थल 64 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
कान्हा टाइगर रिज़र्व
- कान्हा टाइगर रिज़र्व मध्य प्रदेश के दो ज़िलों- मंडला (Mandla) और बालाघाट (Balaghat) में 940 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- वर्तमान कान्हा टाइगर रिज़र्व क्षेत्र पूर्व में दो अभयारण्यों- हॉलन (Hallon) और बंजार (Banjar) में विभाजित था। वर्ष 1955 में इसे कान्हा नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया तथा वर्ष 1973 में कान्हा टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
- कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्य भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है।
सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व
- सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में है। बाघ संरक्षण केंद्र के रूप में प्रसिद्ध यह क्षेत्र वन्यजीवों और वनस्पति विविधता से भी समृद्ध है।
- बाघ के अलावा यहाँ तेंदुआ, इंडियन बाइसन, इंडियन जायंट स्क्वीरल, सांभर, चीतल, हिरण, नीलगाय, लंगूर, भालू, जंगली सूअर सहित विभिन्न वन्यजीव पाए जाते हैं।
- इसमें ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक महत्त्व की 300 से अधिक गुफाएँ हैं।
संजय टाइगर रिज़र्व
- संजय-दुबरी राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिज़र्व की स्थापना वर्ष 1975 में ज़िले के जैवविविधता से समृद्ध वन क्षेत्र के संरक्षण के लिये की गई थी। इसमें सदाबहार साल के वन शामिल हैं।
- यहाँ पाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ हैं बाघ, भालू, चीतल, नीलगाय, चिंकारा, सांभर (पहाड़ी इलाकों तक सीमित और बहुत कम संख्या में), तेंदुआ, ढोल (जंगली कुत्ता), जंगली बिल्ली, लकड़बग्घा, साही, सियार, लोमड़ी, इंडियन वुल्फ, अजगर, चार सींग वाला मृग तथा बार्किंग डियर।