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राजस्थान

एकमुश्त समाधान योजना

  • 23 Apr 2025
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

राजस्थान सरकार ने किसानों और लघु उद्यमियों को राहत देने तथा भूमि विकास बैंकों की वित्तीय स्थिति मज़बूत करने के उद्देश्य से एकमुश्त समझौता योजना (OTS) लागू की है।

मुख्य बिंदु

  • योजना के बारे में:
    • राजस्थान सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में इसकी घोषणा की थी और इसका प्रथम चरण 1 मई से 30 सितंबर 2025 तक प्रभावी रहेगा।
    • यह योजना राजस्थान अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास सहकारी निगम लिमिटेड (RMFDCC) द्वारा वितरित ऋणों पर लागू होगी, जो 31 मार्च 2024 तक अतिदेय (Overdue) हो चुके हैं।
    • पात्र ऋणियों को 30 सितंबर 2025 तक समस्त बकाया मूलधन का एकमुश्त भुगतान करना होगा।
    • एकमुश्त भुगतान करने पर साधारण ब्याज एवं दंडनीय ब्याज पर शत-प्रतिशत छूट प्रदान की जाएगी।
    • एकमुश्त समझौता योजना का लाभ भूमि विकास बैंकों से जुड़े 36,351 ऋणी सदस्यों को मिलेगा।
    • योजना का उद्देश्य 760 करोड़ रुपए के अवधिपार ऋणों की वसूली करना है।
    • ऋणी सदस्य योजना के तहत 5 प्रतिशत अनुदान के साथ पुनः ऋण लेने के पात्र होंगे।
    • इस योजना के लिये राज्य सरकार द्वारा 200 करोड़ रुपए का व्यय प्रस्तावित किया गया है।
  • महत्त्व 
    • राज्य सरकार को बकाया ऋण की वसूली में सहायता मिलेगी।
    • ऋणियों पर आर्थिक बोझ कम होगा जिससे वे अन्य योजनाओं से जुड़ने के लिये प्रेरित होंगे।
    • अल्पसंख्यक वर्ग में सरकारी योजनाओं के प्रति विश्वास और सहभागिता बढ़ेगी।
    • ऋण पुनर्भुगतान की दिशा में जागरूकता और उत्तरदायित्व की भावना विकसित होगी।

भूमि विकास बैंक के बारे में:

  • परिचय
    • भूमि विकास बैंक (Land Development Bank - LDB) विशेष रूप से कृषि और ग्रामीण विकास के लिये स्थापित सहकारी बैंक हैं। 
    • ये बैंक दीर्घकालिक ऋण प्रदान करते हैं, जो मुख्य रूप से किसानों को भूमि सुधार, सिंचाई, बागवानी, कृषि उपकरण खरीदने, पशुपालन और अन्य कृषि संबंधी गतिविधियों के लिये दिये जाते हैं।
  • इतिहास
    • भारत में पहला भूमि विकास बैंक वर्ष 1920 में पंजाब के झंग में स्थापित किया गया था।
    • इसके बाद वर्ष 1929 में चेन्नई में एक और बैंक की स्थापना हुई, जिसके साथ भूमि विकास बैंकों का विस्तार शुरू हुआ।
  • वित्त के स्रोत
    • केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा अनुदान और सहायता।
    • कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये वित्तपोषण।
    • दीर्घकालिक वित्त जुटाने हेतु बॉन्ड्स का निर्गम।
    • विभिन्न सहकारी एवं वाणिज्यिक बैंकों से ऋण।

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