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उत्तराखंड

नैनीताल में वनाग्नि

  • 29 Apr 2024
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड में नैनीताल के निकट वनों में भीषण आग फैल गई। संकट ने भारतीय वायु सेना को भीषण आग पर काबू पाने में सहायता के लिये कर्मियों और Mi-17 हेलीकॉप्टरों को भेजने के लिये प्रेरित किया।

वनाग्नि ने कथित तौर पर 108 हेक्टेयर वन को नष्ट कर दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • बांबी बकेट ऑपरेशन के नाम से जाने जाने वाले ऑपरेशन में आग बुझाने के लिये हेलीकॉप्टर जल इकट्ठा कर रहे हैं और जेट-स्प्रे का उपयोग कर रहे हैं।
  • उत्तराखंड के वन विभाग के मुताबिक, राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में कुछ ही घंटों में वनाग्नि की 26 घटनाएँ हुईं।
    • जबकि पाँच घटनाएँ गढ़वाल क्षेत्र में हुईं जहाँ 33.34 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ।
  • भारत के पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले वन अनुसंधान संस्थान की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 95% वनाग्नि मनुष्यों के कारण होती है।
  • भारत में वनाग्नि के चार समूह हैं: उत्तर-पश्चिमी हिमालय, उत्तर-पूर्वी भारत, मध्य घाट और पश्चिमी एवं पूर्वी घाट।
    • उत्तर-पश्चिमी हिमालय में वनाग्नि का कारण चीड़ के पेड़ों की बहुतायत और घने ज्वलनशील अपशिष्ट का जमाव है।
    • गर्मियों के दौरान वन में भारी मात्रा में चीड़ की तीक्ष्ण-नुकीली पत्तियाँ एकत्रित हो जाती हैं, जो आग के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती हैं और वनाग्नि का कारण बनती हैं।

बांबी बकेट ऑपरेशन

  • बांबी बकेट, जिसे हेलीकॉप्टर बकेट या हेलीबकेट भी कहा जाता है, एक विशेष कंटेनर है जिसे एक हेलिकॉप्टर के नीचे केबल द्वारा लटकाया जाता है और जिसे आग के ऊपर प्रवाहित करने से पहले नदी या तालाब में उतारा जा सकता है तथा बकेट के नीचे एक वाल्व खोलकर हवा में छोड़ा जा सकता है।
  • बांबी बकेट विशेष रूप से वनाग्नि से बचने या उसका सामना करने में सहायक है, जहाँ ज़मीन से पहुँचना मुश्किल या असंभव है। विश्व भर में वनाग्नि का सामना करने के लिये अक्सर हेलीकॉप्टरों का प्रयोग किया जाता है।

वनाग्नि

  • इसे बुश फायर/वेजिटेशन फायर या वनाग्नि भी कहा जाता है, इसे किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन या प्राकृतिक स्थिति जैसे कि जंगल, घास के मैदान, क्षुपभूमि (Shrubland) अथवा टुंड्रा में पौधों/वनस्पतियों के जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करती है तथा पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे- हवा तथा स्थलाकृति आदि) के आधार पर इसका प्रसार होता है।
  • वनाग्नि के लिये तीन कारकों की उपस्थिति आवश्यक है और वे हैं- ईंधन, ऑक्सीजन एवं गर्मी अथवा ताप का स्रोत।
  • वर्गीकरण:
    • सतही आग: वनाग्नि अथवा दावानल की शुरुआत सतही आग (Surface Fire) के रूप में होती है जिसमें वन भूमि पर पड़ी सूखी पत्तियाँ, छोटी-छोटी झाड़ियाँ और लकड़ियाँ जल जाती हैं तथा धीरे-धीरे इनकी लपटें फैलने लगती हैं।
    • भूमिगत आग: कम तीव्रता की आग, जो भूमि की सतह के नीचे मौजूद कार्बनिक पदार्थों और वन भूमि की सतह पर मौजूद अपशिष्टों का उपयोग करती है, को भूमिगत आग के रूप में उप-वर्गीकृत किया जाता है। अधिकांश घने जंगलों में खनिज मृदा के ऊपर कार्बनिक पदार्थों का एक मोटा आवरण पाया जाता है।
      • इस प्रकार की आग आमतौर पर पूरी तरह से भूमिगत रूप में फैलती है और यह सतह से कुछ मीटर नीचे तक जलती है।
      • यह आग बहुत धीमी गति से फैलती है और अधिकांश मामलों में इस तरह की आग का पता लगाना तथा उस पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
      •  ये कई महीनों तक जलते रह सकते हैं और मृदा से वनस्पति तक के आवरण को नष्ट कर सकते हैं।
    • कैनोपी या क्राउन फायर: ये तब होता है जब वनाग्नि पेड़ों की ऊपरी आवरण/वितान के माध्यम से फैलती है, जो प्रायः तेज़ हवाओं और शुष्क परिस्थितियों के कारण भड़कती है। ये विशेष रूप से तीव्र और नियंत्रित करने में कठिन हो सकती हैं।
    • कंट्रोल्ड डेलीबरेट फायर: कुछ मामलों में, कंट्रोल्ड डेलीबरेट फायर, जिसे निर्धारित वनाग्नि या झाड़ियों की आगजनी के रूप में भी जाना जाता है, इच्छित तौर पर या जानबूझकर वन प्रबंधन एजेंसियों द्वारा ईंधन भार को कम करने, अनियंत्रित वनाग्नि के जोखिम को कम करने और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये लगाई जाती है।
    • जोखिमों को कम करने और वन पारिस्थितिकी तंत्र को अधिकतम लाभ पहुँचाने के लिये इन नियंत्रित अग्नि की सावधानीपूर्वक योजना बनाई जाती है तथा विशिष्ट परिस्थितियों में निष्पादित किया जाता है

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