पारंपरिक ‘टांकाओं’ का आधुनिक अद्यतन | 08 Jan 2024

चर्चा में क्यों?

शुष्क क्षेत्र में जल की कमी से निपटने के लिये, केंद्र ने निकट कंक्रीट के पक्के कुंड का निर्माण करने के लिये पश्चिमी राजस्थान की पारंपरिक वर्षा जल संचयन प्रणाली ‘टंका’ को अपनाया है।

  • टांका एक भूमिगत कुंड है, इसका निर्माण बाड़मेर ज़िला और पश्चिमी राजस्थान के अन्य हिस्सों में लोगों द्वारा जुलाई तथा सितंबर के बीच बारिश के दौरान जल संचयन के लिये किया जाता है।

मुख्य बिंदु:

  • पारंपरिक ‘टांकों’ में संग्रहीत पानी मिट्टी की अपनी संरचना के कारण धीरे-धीरे दूषित हो जाता है और पूरे वर्ष तक नहीं टिक पाता है।
  • केंद्र ने लोगों को लंबे समय तक दूषित पानी उपलब्ध कराने के लिये निकट प्रबलित कंक्रीट सीमेंट से बने जल भंडारण स्थानों का निर्माण करके महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम MGNREGA (ग्रामीण) योजना के तहत इस पद्धति को अपनाया है।
    • वर्ष 2016 के बाद से कुल 1,84,766 ऐसे टैंकों का निर्माण किया गया है, जिनमें से 41,580 वर्तमान 2023-24 वित्तीय वर्ष में बनाए गए हैं।
    • 13.5 फीट x 13.5 फीट माप वाले प्रत्येक टैंक में 35,000 लीटर जल जमा करने की क्षमता है और इसका निर्माण ₹3 लाख की लागत से किया गया है।
    • ज़िले में 2,971 गाँव हैं, जिन्हें स्थानीय रूप से 'धन्नी' कहा जाता है और संबंधित ग्राम पंचायतें कार्यान्वयन एजेंसियाँ हैं।
  • ज़िले के दूरदराज़ के गाँवों में जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये अन्य उपाय भी अपनाए जा रहे हैं, जैसे– जल जीवन मिशन (JJM) योजना के साथ-साथ इंदिरा गांधी नहर और नर्मदा परियोजना से जल की आपूर्ति।
    • JJM योजना के तहत 4.25 लाख परिवारों तक पहुँचने का लक्ष्य है। इनमें से 1.25 लाख घर पहले ही कवर किये जा चुके हैं।

इंदिरा गांधी नहर

  • यह देश की सबसे लंबी नहर है।
    • यह पंजाब में सतलुज और ब्यास नदियों के संगम से कुछ किलोमीटर नीचे हरिके बैराज से शुरू होती है, लुधियाना से होकर बहती है तथा उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में थार रेगिस्तान में समाप्त होती है।
  • यह नहर उत्तरी और पश्चिमी राजस्थान में पीने तथा सिंचाई का एक स्रोत है।
  • यह राज्य के आठ ज़िलों के 7,500 गाँवों में रहने वाले 1.75 करोड़ लोगों को जल उपलब्ध करवाती है।
  • प्रदूषक तत्त्वों की मौजूदगी के कारण इंदिरा गांधी नहर का जल स्पष्ट रूप से काला हो गया है।
  • प्रदूषण के कारण लोगों में त्वचा रोग, गैस्ट्रोएंटेराइटिस, अपच और आँखों की रोशनी कम होने जैसी कई स्वास्थ्य जटिलताएँ उत्पन्न हो गई हैं।