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उत्तराखंड

केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य

  • 22 Jan 2025
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) ने केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य (KWLS) के पास स्थित पोखनी में कृषि भूमि पर सोपस्टोन खनन की अनुमति देने के उत्तराखंड सरकार के प्रस्ताव को रद्द कर दिया।

मुख्य बिंदु 

  • वन्यजीव अभयारण्य और लुप्तप्राय प्रजातियाँ:
    • केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य हिमालयी कस्तूरी मृग और हिमालयी तहर जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है, दोनों को IUCN रेड लिस्ट में सूचीबद्ध किया गया है।
  • पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) दिशानिर्देश:
    • हालाँकि अभयारण्य के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) की सटीक सीमाओं को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि परिभाषित सीमाओं के अभाव में संरक्षित क्षेत्रों के आसपास के 10 किलोमीटर के क्षेत्र को ESZ माना जाता है।
  • सोपस्टोन खनन का प्रस्ताव:
    • वर्ष 2023 में, उत्तराखंड सरकार ने केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य के ESZ के भीतर स्थित पोखनी में सोपस्टोन खनन की अनुमति देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
  • पर्यावरणविदों की प्रतिक्रिया:
    • पर्यावरणविदों ने इस अस्वीकृति को अभयारण्य और उसके आस-पास के क्षेत्रों की सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया।
    • उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह निर्णय खनन कार्यों से क्षेत्र की पारिस्थितिकी और स्थानीय निवासियों को होने वाले खतरों के प्रति जागरूकता को दर्शाता है।
  • उत्तराखंड में अनियमित खनन पर चिंताएँ:
    • अनियमित खनन गतिविधियों, विशेषकर कुमाऊँ के बागेश्वर ज़िले में, पर बढ़ती चिंताओं के कारण ऐसे कार्यों के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया गया है।
    • उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट से पता चला है कि खनन के कारण भारी नुकसान हुआ है, जिसमें 11 संवेदनशील गाँवों के 200 घरों, सड़कों और कृषि क्षेत्रों में दरारें आ गई हैं।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) 

  • राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड एक वैधानिक बोर्ड है जिसका गठन आधिकारिक तौर पर वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत वर्ष 2003 में किया गया था। 
  • इसने 1952 में स्थापित भारतीय वन्यजीव बोर्ड का स्थान लिया। 
  • NBWL के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं और यह वन्यजीवों और वनों के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देने के लिये ज़िम्मेदार है। 
  • बोर्ड की प्रकृति 'सलाहकार (Advisory)' है और यह केवल वन्यजीव संरक्षण के लिये नीति निर्माण पर सरकार को सलाह दे सकता है। 
  • यह सभी वन्यजीव संबंधी मामलों की समीक्षा तथा राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में और उसके आसपास की परियोजनाओं के अनुमोदन के लिये एक सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है। 
  • NBWL की स्थायी समिति की अध्यक्षता पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री करते हैं। 
    • स्थायी समिति संरक्षित वन्यजीव क्षेत्रों या उनके 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाली सभी परियोजनाओं को मंज़ूरी देती है।

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