उत्तर प्रदेश
कान्हा गौशाला
- 28 Apr 2025
- 4 min read
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश के आगरा नगर निगम की कान्हा गोशाला में दो मेगावाट क्षमता का सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जाएगा, जिससे यह प्रदेश की पहली ऐसी गोशाला बन जाएगी जो बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग करेगी।
मुख्य बिंदु
- कान्हा गोशाला के बारे में:
- यह परियोजना नगर निगम द्वारा वर्ष 2025 तक हरित भविष्य के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए म्यूनिसिपल बॉण्ड योजना के तहत क्रियान्वित की जा रही है।
- इससे न केवल गोशाला की ऊर्जा आवश्यकताएँ स्वच्छ स्रोत से पूरी होंगी, बल्कि पर्यावरणीय संरक्षण को भी मज़बूती मिलेगी।
- गोशाला में पहले से ही 100 सोलर स्ट्रीट लाइटें लगी हुई हैं, जो स्वच्छ ऊर्जा का उदाहरण हैं।
- गोशाला में गोबर से गोकाष्ठ बनाया जा रहा है, जिसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और अंतिम संस्कार में लकड़ी के विकल्प के रूप में किया जा रहा है। इससे वनों की कटाई को रोकने और पर्यावरण संरक्षण में मदद मिल रही है।
- यह परियोजना नगर निगम द्वारा वर्ष 2025 तक हरित भविष्य के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए म्यूनिसिपल बॉण्ड योजना के तहत क्रियान्वित की जा रही है।
- अस्थिति
- गोशाला ऐसी भूमि पर स्थित है, जहाँ मिट्टी बंजर और भूजल खारा है। इसके बावजूद, यहाँ मियावाकी तकनीक द्वारा 5000 वर्ग मीटर क्षेत्र में घना जंगल विकसित किया गया है, जो जैवविविधता को बढ़ावा देता है और एक प्राकृतिक ऑक्सीजन ज़ोन के रूप में कार्य करता है।
- यह गोशाला अब ऊर्जा, हरियाली और नवाचार का एक प्रमुख मॉडल बन चुकी है।
नगर निगम बॉण्ड
- यह वे ऋण उपकरण हैं, जो शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) द्वारा बुनियादी ढाँचे और विकास परियोजनाओं के लिये निधि जुटाने के उद्देश्य से जारी किये जाते हैं।
- लाभ: सरकारी निधियों पर निर्भरता कम करना, वित्तीय स्वायत्तता बढ़ाना, निजी निवेश को आकर्षित करना और दीर्घकालिक शहरी वित्तपोषण को सक्षम बनाना।
- चुनौतियाँ: राज्य अनुदानों पर भारी निर्भरता (वित्त वर्ष 24 में राजस्व का 38%) के कारण कम निर्गम। पुणे, अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद और लखनऊ जैसे कुछ ही शहरों ने बॉण्ड जारी किये हैं।
- व्यय पैटर्न (वित्त वर्ष 2018-2025): नगरपालिकाओं द्वारा बॉण्ड के माध्यम से जुटाई गई अधिकांश धनराशि शहरी जल आपूर्ति और सीवरेज के लिये आवंटित की गई, इसके बाद नवीकरणीय ऊर्जा और नदी विकास का स्थान रहा।
मियावाकी वृक्षारोपण विधि:
- मियावाकी पद्यति के प्रणेता जापानी वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी (Akira Miyawaki) हैं। इस पद्यति से बहुत कम समय में जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है।
- यह कार्यविधि 1970 के दशक में विकसित की गई थी, जिसका मूल उद्देश्य भूमि के एक छोटे से टुकड़े के भीतर हरित आवरण को सघन बनाना था।
- इस कार्यविधि में पेड़ स्वयं अपना विकास करते हैं और तीन वर्ष के भीतर वे अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं।
- मियावाकी पद्धति में उपयोग किये जाने वाले पौधे ज़्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं और उन्हें खाद एवं जल देने जैसे नियमित रख-रखाव की आवश्यकता नहीं होती है।