उत्तराखंड में पेड़ों को बचाने के लिये सैकड़ों लोग आगे आए | 12 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सैकड़ों पुरुष, महिलाएँ और बच्चे उत्तराखंड के अल्मोडा ज़िले के पवित्र जागेश्वर धाम में क्षेत्र के प्रसिद्ध हिमालयी देवदार के पेड़ों (सेड्रस देवदार) के चारों ओर रक्षा सूत्र बाँधने के लिये एकत्र हुए।
मुख्य बिंदु:
- कुछ पेड़ 500 वर्ष से अधिक पुराने हैं और वे विश्व के एक परिसर के भीतर 125 मंदिरों के सबसे बड़े समूहों में से एक को घेरे हुए हैं, जो समुद्र तल से 1,870 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
- राज्य सरकार के 'मानसखंड मंदिर माला मिशन' के तहत सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिये काटे जाने वाले 1,000 से अधिक पेड़ों पर रक्षा सूत्र बाँधा गया था, जिसका उद्देश्य उत्तराखंड में लगभग 50 मंदिरों से कनेक्टिविटी में सुधार करना है।
- यह उत्तराखंड के जंगलों को तेज़ी से औद्योगीकरण के कारण बढ़ते विनाश से बचाने के लिये 1970 के दशक के प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के समान है।
- यह पहली बार नहीं है कि राज्य सरकार को जागेश्वर में विकास में सहायता के लिये पेड़ों की कथित रूप से लापरवाही से कटाई के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा है।
- सितंबर 2018 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा भवन उपनियम बनाए जाने तक मंदिर स्थल के आस-पास सभी निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- उच्च न्यायालय ने जागेश्वर मंदिर परिसर के आस-पास "अनियोजित और अनधिकृत" निर्माण का स्वत: संज्ञान लेते हुए आरतोला-जागेश्वर सड़क के निर्माण को रोकने का भी आदेश दिया।
- सितंबर 2018 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा भवन उपनियम बनाए जाने तक मंदिर स्थल के आस-पास सभी निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
देवदार के पेड़
- सेड्रस देवदारा, जिसे सामान्यतः देवदार के नाम से जाना जाता है, पश्चिमी हिमालय के मूल निवासी शंकुधारी वृक्ष की एक प्रजाति है। इसकी लकड़ी के लिये इसे अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है और इसकी सजावटी सुंदरता के लिये व्यापक रूप से इसकी कृषि की जाती है।
- ये पेड़ ठंडी जलवायु के लिये अनुकूलित होते हैं और अक्सर अधिक ऊँचाई पर पाए जाते हैं।
- वे समशीतोष्ण और उप-जलवायु के लिये उपयुक्त हैं।
- देवदार का उपयोग अक्सर उनके आकर्षक, पिरामिड आकार के विकास और सुगंधित लकड़ी के कारण भूनिर्माण तथा पार्कों व बगीचों में सजावटी पेड़ों के रूप में किया जाता है।
- वे पक्षियों और छोटे स्तनधारियों सहित विभिन्न वन्यजीवों को आवास व भोजन प्रदान करते हैं।
मानसखंड मंदिर माला मिशन
- मानसखंड मंदिर मिशन के तहत सरकार मंदिरों के मार्गों पर बेहतर परिवहन सुविधाओं के साथ-साथ बेहतर सड़कें भी विकसित करेगी।
- अगले 25 वर्षों में इन मंदिरों में आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या को ध्यान में रखते हुए मंदिरों के मार्गों पर होटल और होमस्टे सुविधाओं का विकास।
- मानसखंड मंदिर माला मिशन के पहले चरण के तहत कुमाऊँ मंडल में 16 चिन्हित मंदिरों का विकास किया जाएगा।
- मानसखंड मंदिर माला मिशन के तहत निम्नलिखित मंदिरों की पहचान की गई है:
- जागेश्वर महादेव मंदिर, अल्मोडा
- चितई गोलू मंदिर
- सूर्यदेव मंदिर कटारमल,
- कसार देवी मंदिर
- नंदा देवी मंदिर
- पाताल भुवनेश्वर मंदिर, पिथोरागढ़
- हाट कालिका मंदिर
- बागनाथ मंदिर, बागेश्वर
- बैजनाथ मंदिर
- चंपावत में पाताल रुद्रेश्वर
- माँ पूर्णागिरि मंदिर
- माँ बाराही देवी मंदिर
- बालेश्वर मंदिर
- नैना देवी मंदिर,नैनीताल
- उधम सिंह नगर में कैंची धाम मंदिर और चैती धाम मंदिर
चिपको आंदोलन
- यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।
- इस आंदोलन का नाम 'चिपको' 'वृक्षों के आलिंगन' के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
- जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे ज़मीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।