उच्च न्यायालय ने 1965 के युद्ध की विधवा को 58 वर्ष बाद पेंशन प्रदान की | 06 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में 1965 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए एक सैनिक की 87 वर्षीय विधवा अंगूरी देवी को पेंशन लाभ प्रदान किया है।
- यह निर्णय न्याय और वित्तीय सहायता के लिये 58 वर्षों के संघर्ष का अंत है।
मुख्य बिंदु
- अंगूरी देवी के पति नटेर पाल सिंह राजपूत रेजिमेंट में सेवारत थे और 1965 के युद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर एक माइन विस्फोट में शहीद हो गए थे।
- अपने पति की मृत्यु के बाद उन्हें सेना से विशेष पारिवारिक पेंशन मिली।
- 1972 में सरकार ने 1947 से आगे के लिये पूर्वव्यापी प्रभाव से "उदारीकृत पारिवारिक पेंशन" नीति शुरू की , जिसके तहत उच्च पेंशन प्रदान की गई।
- इस नीति में 1 फरवरी, 1972 से वित्तीय प्रभाव और बकाया शामिल थे।
- 1965 में उनके पति की मृत्यु के बावजूद, प्राधिकारियों ने यह पॉलिसी अंगूरी देवी पर लागू नहीं की।
- 31 जनवरी, 2001 को एक नई नीति शुरू की गई, जिसका वित्तीय प्रभाव 1 जनवरी , 1996 से माना गया।
- इस नीति में "उदारीकृत पारिवारिक पेंशन" शामिल थी, लेकिन यह केवल 1 जनवरी, 1996 के बाद हुई मृत्यु /विकलांगता पर ही लागू थी।
- बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने 1996 की कट-ऑफ तिथि को रद्द कर दिया।
- हालाँकि, अंगूरी देवी के दावे को शुरू में इसलिये अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि कट-ऑफ तिथियों में उनका मामला शामिल नहीं था।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन कट-ऑफ तिथियों को रद्द करने के निर्णय के बावजूद, उनका दावा अनसुलझा ही रहा।
- वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) ने आंशिक राहत प्रदान की तथा उसके बकाये को उसके दाखिल करने की तिथि से तीन वर्ष पूर्व तक सीमित कर दिया।
- हालाँकि, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को निरस्त करते हुए कहा कि वह वर्ष 2001 की नीति की प्रभावी तिथि से बकाया राशि प्राप्त करने का अधिकार रखती है।