धनुष लीला | 16 Apr 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान के बारां ज़िले में 150 साल बाद धनुष लीला का आयोजन किया गया, जो हाड़ौती क्षेत्र की एक प्राचीन लोक परंपरा है।
मुख्य बिंदु
धनुष लीला के बारे में:
- यह तीन दिवसीय आयोजन रामनवमी के अवसर पर किया गया और इसमें भगवान राम द्वारा शिव धनुष भंग की लीला को मंचित किया गया।
- कार्यक्रम की शुरुआत गणगौर की तीज से होती है, जिसमें गणपति स्थापना, आयोजन समिति का गठन और व्यवस्थाओं का वितरण किया जाता है।
- आयोजन से पूर्व जुलूस निकाला जाता है, जिसमें 'सर कट्या' और 'धड़ कट्या' की सवारी प्रमुख होती है।
- तंत्र क्रियाओं से युक्त झाँकियों को विशेष चौक में लाया जाता है जहाँ मंचन होता है।
- सभी संवाद लोकभाषा 'बही' में लिखे गए होते हैं।
राजस्थान की प्रमुख लोककलाएँ
सांझी
- श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों में कन्याएँ माता पार्वती के रूप में सांझी की पूजा करती हैं।
- अंतिम दिन महिलाएँ थम्बुड़ा व्रत करती हैं।
मांडणा
- मांगलिक अवसरों पर घर की दीवारों व आंगन में रंगों से ज्यामितीय चित्र बनाए जाते हैं।
- यह चित्र त्रिकोण, षट्कोण, वृत्त आदि आकृतियों में होते हैं।
फड़ कला
- कपड़े पर देवी-देवताओं की गाथाओं का चित्रण किया जाता है जिसे 'फड़' कहा जाता है।
- इसका प्रमुख केंद्र शाहपुरा (भीलवाड़ा) है, जोशी जाति इसे बनाती है।
कठपुतली
- काष्ठ की पुतलियों को धागों से संचालित कर नाटकीय प्रस्तुति दी जाती है।
- इनका निर्माण जयपुर, उदयपुर व चित्तौड़गढ़ में होता है।
बेवाण
- लकड़ी से बना सिंहासन, जिस पर ठाकुर जी को विराजमान कर एकादशी पर तालाब ले जाया जाता है।
- इसका निर्माण बस्सी (चित्तौड़गढ़) में होता है।
चौपड़ा
- लकड़ी से बना मसाले रखने का पात्र, जिसमें 2, 4 या 6 खाने होते हैं।
- पश्चिमी राजस्थान में इसे 'हटड़ी' कहते हैं, पूजन में उपयोग होता है।
तौरण
- विवाह के समय वर द्वारा वधु के घर द्वार पर लकड़ी की कलात्मक आकृति लगाई जाती है।
- इस पर मयूर या सुवा की आकृति होती है, जिसे तलवार या हरी टहनी से स्पर्श किया जाता है।