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प्रश्न :
प्रश्न. "भारत में सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और प्रसारित करने में लोक परंपराओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।" उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
10 Mar, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय लोक कला के संदर्भ में जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
- सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में लोक परंपराओं की भूमिका बताइये।
- चुनौतियों को उजागर करते हुए आगे की राह सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत की सांस्कृतिक विविधता इसकी लोक परंपराओं में गहराई से निहित है, जो पीढ़ियों के बीच विरासत को संरक्षित करने और हस्तांतरित करने के सशक्त माध्यम के रूप में काम करती है।
- इन परंपराओं में लोक रंगमंच, संगीत, नृत्य, कहानी, कला और अनुष्ठान शामिल हैं, जो देश के सामाजिक मूल्यों, धार्मिक विश्वासों एवं ऐतिहासिक कथाओं को प्रतिबिंबित करते हैं।
मुख्य भाग:
सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में लोक परंपराओं की भूमिका
- सांस्कृतिक भण्डार के रूप में लोक रंगमंच: लोक रंगमंच संगीत, नृत्य और कथा-वाचन के माध्यम से पौराणिक कहानियों, ऐतिहासिक घटनाओं एवं सामाजिक विषयों को संरक्षित करता है।
- ये प्रदर्शन सांस्कृतिक प्रसारण को समाज के सभी वर्गों के लिये आकर्षक और सुलभ बनाते हैं।
- उदाहरण: कूडियाट्टम (केरल), रम्मन (उत्तराखंड), यक्षगान (कर्नाटक), तमाशा (महाराष्ट्र)।
- लोक संगीत और मौखिक परंपराएँ: लोक संगीत ऐतिहासिक आख्यानों, आध्यात्मिक ज्ञान और सांस्कृतिक मूल्यों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी अंतरित करने के माध्यम के रूप में कार्य करता है।
- आधुनिकीकरण के बावजूद यह प्रासंगिक बना हुआ है तथा स्थानीय परंपराओं व जीवन शैलियों के साथ अपना गहरा संबंध बनाए हुए है।
- उदाहरण: बाउल (बंगाल), भटियाली (बंगाल और असम), बिहू (असम), लावनी (महाराष्ट्र)।
- सांस्कृतिक वाहक के रूप में लोक नृत्य: लोक नृत्य कृषि जीवन शैली, सामाजिक रीति-रिवाजों और धार्मिक विश्वासों को प्रतिबिंबित करते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि पारंपरिक प्रथाओं का संरक्षण किया जाए।
- ये प्रायः त्योहारों और अनुष्ठानों के साथ होते हैं, जिससे सामुदायिक बंधन व क्षेत्रीय पहचान को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण: गरबा (गुजरात), गिद्दा (पंजाब), पुंग चोलोम (मणिपुर), कोलाट्टम (तमिलनाडु)।
- कथा-वाचन और मौखिक आख्यान: भारत की मौखिक कहानी सुनाने की परंपराएँ लोककथाओं, पौराणिक कथाओं व नैतिक शिक्षाओं को आकर्षक स्वरूप में संरक्षित करती हैं।
- ये कथाएँ पीढ़ियों तक नैतिक मूल्यों और ऐतिहासिक ज्ञान को आगे बढ़ाने में सहायक रही हैं।
- उदाहरण: पंचतंत्र (अखिल भारतीय), कथा और बुर्राकथा (आंध्र प्रदेश), विल्लू पातु (तमिलनाडु)।
- सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के रूप में लोक कला और शिल्प: पारंपरिक लोक कलाएँ पौराणिक कथाओं, अनुष्ठानों और स्थानीय परंपराओं को चित्रित करती हैं तथा सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखती हैं।
- इनमें से कई कला रूप क्षेत्र-विशिष्ट हैं और समकालीन प्रभावों के साथ विरासत को मिलाकर विकसित होते रहते हैं।
- उदाहरण: मधुबनी (बिहार), वारली (महाराष्ट्र), फड़ (राजस्थान), कलमकारी (आंध्र प्रदेश)।
लोक परंपराओं के लिये चुनौतियाँ
- घटते दर्शक और व्यावसायीकरण: नौटंकी और भांड पाथेर जैसे पारंपरिक लोक प्रदर्शन सिनेमा व डिजिटल मनोरंजन की लोकप्रियता के कारण युवा दर्शकों को आकर्षित करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
- कारीगरों और व्यवसायियों की हानि: कई लोक कारीगर और कलाकार वित्तीय कठिनाइयों व संस्थागत समर्थन की कमी के कारण पारंपरिक व्यवसायों को छोड़ देते हैं।
- शहरी जीवन शैली के विस्तार के साथ, ग्रामीण भारत में पारंपरिक कथा-वाचन संस्कृति और प्रदर्शन के स्थान लुप्त हो रहे हैं।
- अपर्याप्त सरकारी सहायता: यद्यपि गुरु शिष्य परंपरा योजना और यूनेस्को मान्यता जैसी योजनाओं से मदद मिली है, फिर भी कई क्षेत्रीय कला रूप उपेक्षित एवं अपर्याप्त रूप से वित्तपोषित बने हुए हैं।
भारत की लोक परंपराओं के अस्तित्व और निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिये कई पहल की जा सकती हैं:
- शिक्षा में एकीकरण: जागरूकता और प्रशंसा को बढ़ावा देने के लिये स्कूल के पाठ्यक्रमों में लोक कला, रंगमंच एवं कथा-वाचन को शामिल करना।
- सरकारी और संस्थागत सहायता: क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों (ZCC) और संगीत नाटक अकादमी जैसी योजनाओं के माध्यम से लोक कलाकारों के लिये वित्तीय सहायता एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार करना।
- उत्सव पुनरुद्धार कार्यक्रम: स्थानीय और राष्ट्रीय सांस्कृतिक उत्सवों को आधुनिक कार्यक्रमों के साथ-साथ पारंपरिक लोक प्रदर्शन भी प्रदर्शित करने के लिये प्रोत्साहित करना।
निष्कर्ष:
लोक परंपराएँ केवल मनोरंजन के साधन नहीं हैं; बल्कि ये जीवंत सांस्कृतिक विरासत हैं जो पीढ़ियों को भारत के समृद्ध इतिहास, पौराणिक कथाओं और सामाजिक मूल्यों से जोड़ती हैं। संरक्षण और संवर्द्धन के सक्रिय प्रयासों से लोक परंपराएँ फलती-फूलती रहेंगी तथा भारत के अतीत व भविष्य के बीच सेतु का काम करेंगी।
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