देहरादून की लीची पर गर्मी का असर | 08 Jun 2024

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड में अत्यधिक गर्मी के कारण, जहाँ तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया है, लीची सूख गई है तथा इसके फटने से किसानों को नुकसान पहुँचा है।

मुख्य बिंदु:

  • हीट वेव में वृद्धि ने फलों की समग्र वृद्धि और परिपक्वता को प्रभावित किया है
  • लीची के पेड़ मृदा से जल अवशोषित करते हैं, जिससे बीज की वृद्धि और बीजाणु के विकास में सहायता मिलती है।
  • कंदकोशिका का लाल बाह्य आवरण (छिलके) गर्मी के संपर्क में आने से फट गए हैं, जिससे कंद-कोशिका की लोच में कमी आई है, जिससे फल के रस, आकार और सु-स्वादुता पर असर पड़ा है।
  • भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाण-पत्र से मान्यता प्राप्त रामनगर लीची की चंडीगढ़, दिल्ली और हरियाणा जैसे आस-पास के राज्यों में काफी मांग है।
  • फल-विशेषज्ञों ने लीची की तुड़ाई जल्दी करने के प्रति आगाह किया है, क्योंकि बिहार की लीची उत्तराखंड की लीची से पहले बाज़ार में आती है।
  • चूँकि बिहार की लीची उत्तराखंड की लीची से पहले बिक जाती है, इसलिये फल-विशेषज्ञ/पोमोलॉजिस्ट लीची को जल्दी तोड़ने की सलाह नहीं देते हैं।
    • समय से पहले तोड़ने पर लीचियाँ खट्टी और छोटी आकार की हो सकती हैं।
    • पेड़ों पर बचे अपरिपक्व लीची के फलों में समुत्थानशीलता बढ़ाने के लिये लीची बागानों में सुबह और शाम पानी देने की सिफारिश की जाती है, साथ ही बोरोन तथा जिबरेलिक एसिड का भी उपयोग किया जाता है।

लीची

  • वानस्पतिक वर्गीकरण: लीची सैपिंडेसी (Sapindaceae) वर्ग से संबंधित है और अपने स्वादिष्ट, रसीले, पारदर्शी बीज-पत्र अर्थात् खाने योग्य गूदे के लिये जानी जाती है।
  • जलवायु संबंधी आवश्यकताएँ: लीची उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपती है जिसके लिये नम (आर्द्रता) परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। यह कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में लगभग 800 मीटर की ऊँचाई तक सबसे अच्छी तरह से फलती है।
  • मृदा की प्राथमिकता: लीची की खेती के लिये आदर्श परिस्थितियों में मिट्टी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है जिसके लिये गहरी, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर और अच्छी तरह से सूखी हुई दोमट मिट्टी होनी चाहिये।
  • तापमान संवेदनशीलता: लीची अत्यधिक तापमान के प्रति संवेदनशील है। यह गर्मियों में 40.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान या सर्दियों में ठंडे तापमान को सहन नहीं कर पाती है।
  • वर्षा प्रभाव: लंबे समय तक बारिश विशेषकर पुष्प-मंजरी आने के दौरान, परागण की क्रिया में बाधक हो सकती है जो लीची की फसल को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है।