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बिहार

सम्राट अशोक जयंती

  • 10 Apr 2025
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

सम्राट अशोक की जयंती के अवसर पर बिहार के राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने सम्राट अशोक कन्वेंशन केंद्र में स्थापित उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।

मुख्य बिंदु

  • अशोक के बारे में:
    • हर साल चैत्र माह की अष्टमी अशोक जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस बार यह 5 अप्रैल, 2025 को मनाई गई।
    • अशोक, मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र था। उसने प्रशासनिक कार्यों में असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन किया। 
    • उसकी योग्यता और ज्ञान से प्रभावित होकर बिंदुसार ने उसे उज्जैन (अवंति) का राज्यपाल नियुक्त किया।
    • अशोक ने केवल एक प्रमुख युद्ध ‘कलिंग युद्धकिया, जिसका उल्लेख उसके 13वें प्रमुख शिलालेख में मिलता है। 
    • यह युद्ध उसने अपने शासनकाल के आठवें वर्ष (261 ई.पू.) में किया था। इस युद्ध में हुए विनाश और रक्तपात से अशोक अत्यंत व्यथित हुआ, जिससे उसका व्यक्तित्व एक योद्धा से संत में परिवर्तित हो गया। परिणामस्वरूप उसने दिग्विजय की नीति को त्यागकर धम्म विजय की नीति को अपनाया।
  • अशोक का धम्म
    • कलिंग युद्ध के बाद उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। धर्म परिवर्तन के बाद वह लगभग ढाई वर्ष तक एक साधारण उपासक रहा। तत्पश्चात वह बौद्ध संघ से जुड़ा और भिक्षु गतिक बना (वे लोग जो सीमित समय के लिये विहार में रहते थे, उन्हें भिक्षु गतिक कहा जाता है)। 

    • अशोक ने कभी पूर्ण रूप से बौद्ध भिक्षु का जीवन नहीं अपनाया, बल्कि वह सदैव उपासक ही बना रहा।

    • धम्म की परिभाषा: अशोक ने अपने द्वितीय और सप्तम स्तंभ शिलालेखों में धम्म की परिभाषा प्रस्तुत की है। उसके अनुसार धम्म में निम्नलिखित सिद्धांत सम्मिलित हैं:
      • किसी भी मनुष्य की हत्या नहीं की जाएगी
      • संपत्ति का विनाश नहीं होगा।
      • माता-पिता एवं बुजुर्गों की सेवा और सम्मान।
      • गुरुजनों और शिक्षकों का सम्मान।
      • दासों और सेवकों के साथ सदव्यवहार।
      • कम खर्च करना और सादगीपूर्ण जीवन जीना।
  • 13वें प्रमुख शिलालेख में अशोक ने धम्मविजय को सबसे बड़ी विजय बताया है। वह विश्व इतिहास का पहला शासक था जिसने अहिंसा के माध्यम से धम्म आधारित साम्राज्यवादी नीति को अपनाया।
  • धम्म के प्रचार हेतु अशोक ने एक नई प्रशासकीय श्रेणी बनाई जिसे 'धम्ममहामात्र' कहा गया। पाँचवें प्रमुख शिलालेख में अशोक ने उल्लेख किया है कि शासन के 13वें वर्ष (256 ई.पू.) में इन अधिकारियों की नियुक्ति की गई। इसके अतिरिक्त अन्य अधिकारी जैसे युक्ता, राजुक्का, और प्रादेशिक को भी धम्म के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।



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