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झारखंड

बिरहोर जनजाति बाल विवाह के विरुद्ध आंदोलन में शामिल हुई

  • 17 Dec 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में झारखंड के एक विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह, बिरहोर जनजाति के लोग पहली बार बाल विवाह के विरुद्ध आंदोलन में शामिल हुए हैं।

मुख्य बिंदु

  • बिरहोर समुदाय:
    • बिरहोर लोग एक अर्द्ध-खानाबदोश जनजातीय समुदाय हैं, जो काफी हद तक वनों पर निर्भर हैं तथा आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिये पर रह रहे हैं।
    • पहली बार झारखंड के गिरिडीह ज़िले में बिरहोर समुदाय के सैकड़ों सदस्य बाल विवाह के विरुद्ध आंदोलन में शामिल हुए, जो उनके समुदाय में व्याप्त एक व्यापक प्रथा है।
  • बाल विवाह के परिणामों के संबंध में जागरूकता:
    • जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस (JRC) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह आयोजन पहला जागरूकता अभियान था, जिसमें समुदाय को बाल विवाह की वैधता और परिणामों के बारे में जानकारी दी गई।
    • युवा, बच्चे, महिलाएँ और बुज़ुर्ग मोमबत्तियों की रोशनी में एकत्र हुए तथा बाल विवाह को समाप्त करने तथा ऐसे किसी भी मामले की सूचना देने की सामूहिक शपथ ली।
  • सरकारी अभियान के लिये समर्थन:
    • यह मार्च केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किये गए 'बाल विवाह मुक्त भारत' अभियान के तहत बनवासी विकास आश्रम द्वारा आयोजित किया गया था। 
    • बनवासी विकास आश्रम JRC गठबंधन के तहत 250 साझेदार गैर-सरकारी संगठनों (NGO) में से एक है।
    • बिरहोर जनजाति को इस सामाजिक समस्या के प्रति सजग करने के उद्देश्य से बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और समग्र विकास पर बाल विवाह के नकारात्मक प्रभावों पर विचार-विमर्श किया गया।
    • JRC ने सभी 24 ज़िलों के ब्लॉकों, गाँवों और स्कूलों में कार्यक्रमों के माध्यम से अप्रैल से दिसंबर 2024 के बीच झारखंड में 7,000 से अधिक बाल विवाह रोकने का दावा किया है।
  • उच्च प्रसार वाले ज़िले:
  • जामताड़ा, देवघर, गोड्डा, गिरिडीह, कोडरमा और दुमका की पहचान बाल विवाह के उच्च मामलों वाले ज़िलों के रूप में की गई।

बिरहोर जनजाति

  • शारीरिक बनावट: वे छोटे कद के, लंबे सिर, लहराते बाल और चौड़ी नाक वाले होते हैं। 
  • भाषा: उनकी भाषा संथाली, मुंडारी और हो के समान है।
  • धर्म: वे जीववाद और हिंदू धर्म का मिश्रण मानते हैं। सूर्य देव उनके सर्वोच्च देवता हैं, साथ ही लुगु बुरु और बुधिमई भी उनके आराध्य हैं। 
  • अर्थव्यवस्था: बिरहोर की "आदिम निर्वाह अर्थव्यवस्था" शिकार और संग्रहण पर आधारित है, लेकिन कुछ लोग खेतीबाड़ी में लग गए हैं। वे बेल के रेशों से रस्सियाँ बनाते हैं और आस-पास के कृषि करने वाले लोगों को बेचते हैं। 
  • सामाजिक-आर्थिक स्थिति: बिरहोर को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर दो समूहों में विभाजित किया गया है: घुमंतू उथलू और स्थायी जांगि (wandering Uthlus and the settled Janghis)।

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