सामाजिक न्याय
पर्यावास अधिकार और इसके निहितार्थ
- 14 Oct 2023
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:जनजातीय अधिकार और निहितार्थ, बैगा जनजाति, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG), भारिया एवं कमार जनजाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006। मेन्स के लिये:जनजातीय अधिकार और निहितार्थ प्रदान करना, केंद्र और राज्यों द्वारा आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का प्रदर्शन। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अगस्त 2023 में कमार PVTG को आवास अधिकार प्राप्त होने के ठीक बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके बैगा विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Group- PVTG) को आवास अधिकार प्रदान किये हैं।
- बैगा PVTG छत्तीसगढ़ में ये अधिकार पाने वाला दूसरा समूह बन गया है।
- छत्तीसगढ़ में सात PVTG (कमार, बैगा, पहाड़ी कोरबा, अबूझमाड़िया, बिरहोर, पंडो और भुजिया) हैं।
बैगा जनजाति:
- बैगा (जादूगर) जनजाति मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में रहती है।
- परंपरागत रूप से बैगा अर्द्ध-खानाबदोश जीवन जीते थे और झूम कृषि (जिसे ये बेवर या दहिया कहते हैं) करते थे, किंतु अब ये आजीविका के लिये मुख्य रूप से लघु वनोत्पाद (Minor Forest Produce-MFP) पर निर्भर हैं।
- इनका प्राथमिक वन उत्पाद बाँस है।
- गोदना (टैटू) बैगा संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, प्रत्येक आयु और शरीर के अंग पर इस अवसर हेतु एक विशिष्ट टैटू आरक्षित है।
पर्यावास अधिकार:
- परिचय:
- पर्यावास अधिकार संबंधित समुदाय को उनके निवास के पारंपरिक क्षेत्र, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं, आर्थिक और आजीविका के साधनों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी के बौद्धिक ज्ञान, प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ उनकी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा और संरक्षण पर अधिकार को मान्यता प्रदान करता है।
- पर्यावास अधिकार पीढ़ियों से चले आ रहे पारंपरिक, आजीविका देने वाले और पारिस्थितिक ज्ञान की रक्षा एवं प्रचार करते हैं। वे PVTG समुदायों को उनके आवास स्थान विकसित करने हेतु सशक्त बनाने के लिये विभिन्न सरकारी योजनाओं और विभिन्न विभागों की पहलों को एकजुट करने में भी सहायता करते हैं।
- वन अधिकारों की मान्यता (Recognition of Forest Rights- FRA) के अनुसार, "आवास" में प्रथागत आवास और विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) तथा अन्य वन-निवासी अनुसूचित जनजातियों के आरक्षित व संरक्षित वन क्षेत्र शामिल हैं।
- भारत में 75 PVTG में से केवल तीन जनजातियों के पास आवास अधिकार हैं- पहले मध्य प्रदेश में, उसके बाद कमार जनजाति और अब छत्तीसगढ़ में बैगा जनजाति।
- पर्यावास घोषित करने की प्रक्रिया:
- यह प्रक्रिया जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में इस उद्देश्य के लिये दिये गए एक विस्तृत दिशानिर्देश पर आधारित है।
- इस प्रक्रिया में संस्कृति, परंपराओं और व्यवसाय की सीमा निर्धारित करने के लिये पारंपरिक आदिवासी नेताओं के साथ परामर्श करना शामिल है।
- आवासों को परिभाषित करने और उनकी घोषणा करने के लिये वन, राजस्व, जनजातीय एवं पंचायती राज सहित राज्य-स्तरीय विभागों एवं UNDP टीम के बीच समन्वय आवश्यक है।
- वैधानिकता:
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (जिसे FRA के रूप में भी जाना जाता है) की धारा 3(1)(e) के तहत PVTG को आवास अधिकार प्रदान किये जाते हैं।
- पर्यावास अधिकारों की मान्यता PVTG को उनके पारंपरिक क्षेत्र पर अधिकार प्रदान करती है, जिसमें निवास के लिये उपयोग किये जाने वाले क्षेत्र, निर्वाह के साधन तथा जैव-विविधता की समझ शामिल है।
PVTG की पहचान:
- PVTG की पहचान तकनीकी पिछड़ेपन, स्थिर अथवा घटती जनसंख्या वृद्धि, अल्प साक्षरता स्तर, निर्वाह अर्थव्यवस्था और चुनौतीपूर्ण जीवन स्थितियों जैसे मानदंडों के आधार पर की जाती है।
- आजीविका, शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य जैसे मामलों में वे असुरक्षित हैं।
- जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा 18 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 75 PVTG की पहचान की गई है।
- वर्ष 1973 में ढेबर आयोग ने आदिम जनजाति समूह (PTG) को एक विशेष श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया, जो अन्य जनजातीय समूहों के बीच अल्प विकसित हैं। वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा PTG का नाम बदलकर PVTG कर दिया गया।
पर्यावास अधिकार का महत्त्व:
- संस्कृति और विरासत का संरक्षण:
- जनजातीय अधिकार प्रदान करने से जनजातीय समुदायों की अद्वितीय सांस्कृतिक, सामाजिक और पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने में सहायता मिलती है। यह उन्हें अपनी विशिष्ट भाषाओं, रीति-रिवाज़ों, प्रथाओं एवं पारंपरिक ज्ञान को बनाए रखने में सहायक के रूप में कार्य करता है।
- सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय:
- जनजातीय अधिकार इन समुदायों को वैधानिक मान्यता प्रदान करके, उनके जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके तथा उन पर हुए अन्यायों का निवारण कर सशक्त बनाते हैं। यह सशक्तिकरण एक ऐसे समाज के निर्माण में मदद करता है जो अधिक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण हो।
- आजीविका की सुरक्षा:
- कई जनजातीय समुदाय अपनी आजीविका के लिये अपने प्राकृतिक परिवेश पर निर्भर हैं। भूमि और संसाधनों पर अधिकार देने से यह सुनिश्चित होता है कि वे शिकार, संग्रहण, मत्स्यन एवं कृषि जैसे अपने पारंपरिक व्यवसायों को बनाए रख सकते हैं और अपनी आर्थिक भलाई का समर्थन कर सकते हैं।
- सतत् विकास:
- जनजातीय समुदायों को अधिकार देकर सरकारें सतत् विकास को बढ़ावा दे सकती हैं। स्वदेशी प्रथाएँ प्रायः स्थिरता और संरक्षण को प्राथमिकता देती हैं, जो पर्यावरण एवं समाज के समग्र कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- जैवविविधता का संरक्षण:
- जनजातीय समुदायों के पास प्रायः अपने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, वनस्पतियों, जीवों और स्थायी संसाधन प्रबंधन के बारे में विशिष्ट ज्ञान होता है। उनके अधिकारों को पहचानने से जैवविविधता के संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय प्रबंधन में सहायता मिलती है।
निष्कर्ष:
- जनजातीय अधिकार प्रदान करना एक अधिक समावेशी, न्यायपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिये मौलिक है जहाँ जनजातीय समुदायों सहित सभी नागरिकों के अधिकारों, संस्कृतियों व परंपराओं का सम्मान एवं सुरक्षा की जाती है।