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01 Dec 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस 11
प्रश्न: 1 राज्य के लोकतांत्रिक कामकाज पर इस कार्यालय के संभावित दुरुपयोग के परिणामों का आकलन करते हुए, राज्यपाल को दिये गए संवैधानिक और परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार की जाँच कीजिये। इसके अतिरिक्त राज्यपालों की जवाबदेही तथा निष्पक्षता को बढ़ाने के लिये सुझाव भी दीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- राज्यपाल का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- राज्यपाल को दिये गए संवैधानिक और परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार की व्याख्या कीजिये।
- राज्य के लोकतांत्रिक कामकाज पर इस कार्यालय के संभावित दुरुपयोग के परिणामों का आकलन कीजिये।
- राज्यपालों की जवाबदेही और निष्पक्षता को बढ़ाने के लिये कुछ सुझाव दीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
उत्तर:
राज्यपाल राज्य कार्यकारिणी का संवैधानिक प्रमुख होता है, जिसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और वह (कुछ विवेकाधीन शक्तियों के अतिरिक्त) राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता तथा सलाह पर कार्य करता है।
- राज्यपाल के विवेकाधिकार को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: संवैधानिक विवेकाधिकार और परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार।
- संवैधानिक विवेक का तात्पर्य संविधान में उल्लिखित स्पष्ट विवेक से है, जबकि परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार का तात्पर्य मौजूदा राजनीतिक स्थिति की अत्यावश्यकताओं से प्राप्त निहित विवेक से है।
राज्यपाल के संवैधानिक विवेकाधिकार में निम्नलिखित शामिल हैं:
- राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति के विचार हेतु आरक्षित करना (अनुच्छेद 200)।
- संवैधानिक मशीनरी की विफलता के आधार पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करना (अनुच्छेद 356)।
- कुछ मामलों में क्षमा (Pardon), प्रविलंबन (Reprieve) या लघुकरण (Commutation) करना (अनुच्छेद 161)।
- राज्य विधानसभा में किसी भी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत न होने पर मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना (अनुच्छेद 164)।
- जब मंत्रिपरिषद सदन का विश्वास खो दे तो राज्य विधानसभा को भंग करना (अनुच्छेद 174)।
राज्यपाल के परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार में निम्नलिखित शामिल हैं:
- सदन के पटल पर मंत्रिपरिषद का बहुमत सिद्ध करने का समय और तरीका तय करना।
- राज्य के प्रशासनिक और विधायी मामलों पर मुख्यमंत्री से जानकारी मांगना (अनुच्छेद 167)।
- राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक पर सहमति को रोकना या विलंबित करना या उसे पुनर्विचार के लिये लौटाना (अनुच्छेद 200)।
- राज्य के मामलों के संबंध में राष्ट्रपति को रिपोर्ट देना (अनुच्छेद 355)।
राज्यपाल के विवेकाधिकार का दुरुपयोग राज्य के लोकतांत्रिक कामकाज पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है, जैसे:
- केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करके तथा राज्य के मामलों में
- हस्तक्षेप करके संघीय ढाँचे और राज्य सरकारों की स्वायत्तता को कमज़ोर करना।
- मनमाने ढंग से दुर्भावनापूर्ण या अनुचित तरीके से कार्य करके और लोगों या अदालतों के फैसले की अवहेलना करके कानून के शासन तथा संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करना।
- समर्थक, पक्षपातपूर्ण या भ्रष्ट तरीके से कार्य करके और कुछ पार्टियों या व्यक्तियों को लाभ या नुकसान पहुँचाकर, राज्यपाल की व्यवस्था में जनता के विश्वास को कम करना।
सरकारिया, वेंकटचलैया और पुंछी आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यपालों की जवाबदेही और निष्पक्षता में सुधार के सुझाव:
- राज्यपाल को जीवन के किसी क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होना चाहिये, अधिमानतः राज्य के बाहर से और राज्य के मामलों में उसका कोई व्यक्तिगत या राजनीतिक हित नहीं होना चाहिये।
- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और भारत के उपराष्ट्रपति से परामर्श के बाद की जानी चाहिये।
- राज्यपाल का कार्यकाल पाँच वर्ष का निश्चित होना चाहिये और उसे संविधान के उल्लंघन या घोर कदाचार के आधार पर राज्य विधानमंडल द्वारा महाभियोग के अलावा कार्यकाल की समाप्ति से पहले नहीं हटाया जाना चाहिये।
- राज्यपाल को केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में कार्य नहीं करना चाहिये तथा राज्य सरकार की स्वायत्तता और अधिकार का सम्मान करना चाहिये।
- राज्यपाल को अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में और संविधान की भावना के अनुरूप करना चाहिये।
- राज्यपाल को राज्य के दैनिक प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये और केंद्र और राज्य के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना चाहिये।
- राज्यपाल को मनमाने ढंग से मुख्यमंत्री या मंत्रिपरिषद को नियुक्त या बर्खास्त नहीं करना चाहिये और विधानसभा में बहुमत के सिद्धांत का पालन करना चाहिये।
निष्कर्ष:
राज्यपाल का विवेकाधिकार भारतीय संवैधानिक व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण और आवश्यक विशेषता है, जो राज्यपाल को केंद्र एवं राज्य के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करने तथा राज्य व संविधान के हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाता है।
राज्यपाल के विवेक को सुधारने और विनियमित करने तथा यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि राज्यपाल एक तटस्थ, निष्पक्ष एवं जवाबदेह संवैधानिक पदाधिकारी के रूप में कार्य करें।