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Sambhav-2024

  • 20 Nov 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 1

    प्रश्न.1 ब्रिटिश संसद द्वारा पारित विभिन्न अधिनियमों एवं सुधारों ने भारत के संवैधानिक ढाँचे को किस प्रकार आकार दिया? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में औपनिवेशिक काल तथा इसके शासन पर ब्रिटिश प्रभाव के संक्षिप्त परिचय के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • औपनिवेशिक काल के दौरान ब्रिटिश संसद द्वारा पारित प्रमुख अधिनियमों एवं सुधारों का कालानुक्रमिक अवलोकन प्रदान कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि प्रत्येक अधिनियम एवं सुधार ने भारत में शासन संरचना को किस प्रकार प्रभावित किया?
    • भारत के संवैधानिक शासन के प्रति इन विधायी उपायों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    औपनिवेशिक काल के दौरान ब्रिटिश संसद द्वारा पारित विभिन्न अधिनियमों एवं सुधारों द्वारा भारत के संवैधानिक ढाँचे में प्रमुख परिवर्तन किये गए। इन विधायी उपायों ने भारत की राजनीतिक, प्रशासनिक एवं कानूनी प्रणालियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    मुख्य भाग:

    कुछ प्रमुख अधिनियम एवं सुधार तथा भारत के संवैधानिक ढाँचे पर उनके प्रभाव में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:

    • 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट:
      • इसने भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी।
      • इसने कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया जो भारत में एक केंद्रीकृत न्यायिक प्रणाली की दिशा में पहला कदम था।
    • 1813 का चार्टर अधिनियम:
      • 1813 के चार्टर अधिनियम ने ब्रिटिश भारत में शिक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, व्यापार, शासन एवं सामाजिक सुधारों में सकारात्मक बदलाव किये।
    • 1853 का चार्टर अधिनियम:
      • गवर्नर-जनरल की परिषद में विधायी एवं कार्यकारी कार्यों का पृथक्करण एक लोकतांत्रिक सरकार की दिशा में भारत के लिये एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी।
      • इसने पहली बार गवर्नर-जनरल की परिषद के विधायी एवं कार्यकारी कार्यों को पृथक कर दिया।
    • 1858 का भारत सरकार अधिनियम:
      • भारत पर नियंत्रण ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित करके, 1858 के भारत सरकार अधिनियम ने केंद्रीकृत एवं कुशल शासन के एक नए युग की शुरुआत की।
      • भारत के लिये राज्य सचिव की भूमिका का आरंभ औपनिवेशिक सरकार की दक्षता एवं जवाबदेही में सुधार लाने के उद्देश्य से किया गया था।
    • 1861 का भारतीय परिषद अधिनियम:
      • इसने भारतीयों को कानून-निर्माण प्रक्रिया परिषद के साथ जोड़कर प्रतिनिधि संस्थाओं की शुरुआत की।
      • इसने वर्ष 1859 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा शुरू की गई 'पोर्टफोलियो' प्रणाली को भी मान्यता दी, जिसने प्रत्येक सदस्य को विशेषज्ञता के एक विशिष्ट क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति दी, जिससे अधिक कुशल निर्णय लेने तथा नीति कार्यान्वयन में बढ़ावा मिला।
    • भारत सरकार अधिनियम, 1909 (मॉर्ले-मिंटो सुधार):
      • इसने विधान परिषदों की शक्तियाँ बढ़ाईं तथा भारतीयों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया।
      • मुसलमानों के लिये पृथक निर्वाचन क्षेत्र तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिये आरक्षित सीटें प्रस्तुत की गईं।
    • 1919 का भारत सरकार अधिनियम (मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार):
      • इस अधिनियक के बाद द्वैध शासन के सिद्धांत की शुरुआत की गई, जहाँ कुछ प्रांतीय ज़िम्मेदारियाँ भारतीय मंत्रियों को हस्तांतरित कर दी गईं।
      • इसने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था तथा प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत की।
      • इसने संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया।
    • 1935 का भारत सरकार अधिनियम:
      • इस अधिनियम ने एक संघीय प्रणाली तथा महत्त्वपूर्ण लोकतांत्रिक तत्त्वों के साथ भारत के आगामी संविधान के लिये आधार तैयार किया।
      • संघीय ढाँचे और प्रांतीय स्वायत्तता का प्रावधान किया गया।
      • इसमें भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना का प्रावधान किया गया।

    निष्कर्ष:

    इन कृत्यों एवं सुधारों ने धीरे-धीरे अंततः भारत की स्वतंत्रता तथा अपने स्वयं के संविधान निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। इन कानूनों का प्रभाव गहरा था, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश उपनिवेश से एक संप्रभु राष्ट्र तक भारत की राजनीतिक एवं संवैधानिक संरचना के विकास में योगदान दिया था।

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