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Sambhav-2023

  • 27 Feb 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस- 95

    प्रश्न.1 बताइये कि रणनीतिक प्रभाव आकलन (Strategic impact assessment), पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental impact assessment) की कमियों को दूर करने में किस प्रकार सहायक होगा। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 अत्यधिक सुपोषण के बाद पोषक तत्वों से समृद्ध जल निकाय, जैविक रेगिस्तान के रूप में परिवर्तित हो जाता है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • रणनीतिक प्रभाव आकलन (SIA) और पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • उन उपायों पर चर्चा कीजिये जिनके माध्यम से SIA, EIA की कमियों को दूर करने में सहायक होगा।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA), पर्यावरण पर विकासात्मक परियोजनाओं के संभावित प्रभावों का आकलन करने के लिये एक व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला उपकरण है।
    • हालांकि ईआईए प्रक्रिया में कई कमियाँ मौजूद हैं जैसे कि संबंधित परियोजना के विकल्पों पर सीमित विचार करना, सीमित सार्वजनिक भागीदारी और दीर्घकालिक प्रभावों पर अपर्याप्त विचार आदि।
    • इसकी प्रतिक्रया में रणनीतिक प्रभाव आकलन (SIA) नामक एक नया दृष्टिकोण उभरा है। SIA का उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों के विस्तृत संदर्भ में किसी परियोजना के संभावित प्रभावों का अधिक व्यापक और समग्र आकलन प्रदान करके इन कमियों को हल करना है।
    • SIA को रणनीतिक प्रभाव आकलन के रूप में भी जाना जाता है।

    मुख्य भाग:

    रणनीतिक प्रभाव आकलन निम्नलिखित तरीकों से पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की कमियों को दूर करने में सहायक होगा-

    • रणनीतिक प्रभाव आकलन (SIA) के तहत किसी समुदाय या क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं पर किसी प्रस्तावित परियोजना या नीति के संभावित प्रभावों का आकलन किया जाता है। ईआईए के विपरीत, एसआईए द्वारा किसी परियोजना के दीर्घकालिक परिणामों को ध्यान में रखते हुए और वैकल्पिक विकास परिदृश्यों पर विचार करके परियोजना के संभावित प्रभावों का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया जाता है। SIA में अधिक व्यापक भागीदारी शामिल होती है जिसमें निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों, गैर सरकारी संगठनों सहित सार्वजनिक भागीदारी को महत्त्व दिया जाता है।
    • ईआईए की प्रमुख कमियों में से एक किसी परियोजना के विकल्पों पर सीमित विचार करना है। ईआईए के तहत संभावित विकल्पों पर विचार किये बिना प्रस्तावित परियोजना के संभावित प्रभावों का आकलन किया जाता है। इसके विपरीत, SIA द्वारा परियोजना के विकल्पों पर पर्याप्त विचार करने के साथ इसके संभावित प्रभावों पर व्यापक विचार किया जाता है, जिससे निर्णय निर्माताओं को परियोजना के संभावित प्रभावों से संबंधित व्यापक परिप्रेक्ष्य मिलता है।
    • ईआईए का एक और दोष इसमें सीमित सार्वजनिक भागीदारी का होना है। ईआईए में सार्वजनिक परामर्श की आवश्यकता होने के बावजूद इसकी प्रक्रिया अक्सर समावेशी नहीं होती है। दूसरी ओर एसआईए में सार्वजनिक भागीदारी को प्राथमिकता दी जाती है और इसमें परियोजना से प्रभावित हितधारकों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है। इससे SIA से यह सुनिश्चित होता है कि निर्णय निर्माण प्रक्रिया में सभी हितधारकों की आवाज़ सुनी जाने के साथ उनकी चिंताओं को ध्यान में रखा जाए।
    • ईआईए द्वारा किसी परियोजना के दीर्घकालिक प्रभावों पर पूरी तरह से विचार नहीं किया जाता है। ईआईए प्रक्रिया में अल्पकालिक प्रभावों पर अधिक बल दिया जाता है। SIA के तहत दीर्घकालिक परिणामों सहित किसी परियोजना के संभावित प्रभावों के बारे में अधिक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण मिलता है जिससे निर्णय लेने वालों को अधिक सूचित निर्णय लेने में सहायता मिलती है।

    निष्कर्ष:

    रणनीतिक प्रभाव आकलन दृष्टिकोण, एक अधिक व्यापक और समग्र प्रक्रिया है जो पर्यावरणीय प्रभाव आकलन प्रक्रिया से संबंधित सीमाओं को दूर कर सकती है। एसआईए के तहत वैकल्पिक विकास परिदृश्यों पर विचार करने, सार्वजनिक भागीदारी को प्राथमिकता देने और किसी परियोजना के दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करने के साथ अधिक समावेशी दृष्टिकोण पर बल दिया जाता है। एसआईए के अंतर्गत निर्णय निर्माता किसी प्रस्तावित परियोजना के व्यापक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों के आलोक में अधिक तार्किक निर्णय ले सकते हैं। इसलिये विकासात्मक परियोजनाओं के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया में एसआईए दृष्टिकोण को अपनाने से यह सुनिश्चित होगा कि विकासात्मक परियोजनाओं का पर्यावरण और लोगों पर कोई नकारात्मक प्रभाव न हो।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सुपोषण के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि कैसे सुपोषण से जल निकाय जैविक रेगिस्तान में परिवर्तित हो जाते हैं।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • सुपोषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जल निकाय (जैसे झील, नदियाँ और महासागर) नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्वों से समृद्ध हो जाते हैं।
    • इससे शैवाल और अन्य जलीय पौधों की अत्यधिक वृद्धि होती है जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
    • समय के साथ ऑक्सीजन की कमी और विषाक्त शैवालों की अत्यधिक वृद्धि के कारण ये जल निकाय जैविक रेगिस्तान बन सकते हैं।

    मुख्य भाग:

    अत्यधिक सुपोषण के पश्चात पोषक तत्वों से समृद्ध जल निकाय जैविक रेगिस्तान बन जाते हैं:

    • सुपोषण मानव गतिविधियों जैसे कि कृषि, शहरीकरण और अपशिष्ट जल के कारण होता है। उर्वरकों, सीवेज और पशु अपशिष्ट अपवाह से जल निकायों में पोषक तत्वों का संवर्धन हो जाता है।
    • अतिरिक्त पोषक तत्वों से शैवाल और जलीय पौधों की अतिवृद्धि होती है जिससे जल में ऑक्सीजन के स्तर में कमी आ सकती है। इसके परिणामस्वरूप मछली और अन्य जलीय जीवों की मृत्यु होने से जल निकाय जैविक रेगिस्तान में परिवर्तित हो सकता है।
    • ऑक्सीजन के स्तर में कमी आने के साथ सुपोषण से जल की रासायनिक संरचना बदल जाती है जिससे यह अधिक अम्लीय होने के साथ अपशिष्टयुक्त हो जाता है। इन परिवर्तनों के आलोक में जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में कैस्केडिंग प्रभाव से जैव विविधता में गिरावट हो सकती है।
    • शैवाल और अन्य जलीय वनस्पतियों के मृत और विघटित होने से जल की सतह पर जमा होने वाले पोषक तत्वों से भरपूर तलछट द्वारा हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे विषाक्त यौगिक निष्कासित हो सकते हैं,जिससे जलीय जीवों को और भी नुकसान पहुँचता है।
    • सुपोषण के परिणाम गंभीर और दूरगामी होते हैं। जल निकाय के जैविक रूप से मृत हो जाने के बाद इनके आर्थिक, पारिस्थितिकी और मनोरंजक मूल्यों में कमी आती है। उदाहरण के लिये इससे मत्स्यन, पर्यटन और अन्य मनोरंजक गतिविधियाँ गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त मृत पौधों और जंतुओं के अपघटन से ऑक्सीजन की कमी हो सकती है, जिससे हानिकारक शैवालों की वृद्धि हो सकती है जो मनुष्यों और जलीय जानवरों दोनों के लिये विषाक्त हो सकता है।
    • सुपोषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिये कई समाधान हैं। सबसे प्रभावी उपायों में से एक जल निकायों में पोषक तत्व अपवाह की मात्रा को सीमित करना है। ऐसा कृषि में सर्वोत्तम प्रबंधन प्रक्रियाओं को अपनाने से किया जा सकता है, जैसे कि उर्वरक के उपयोग को कम करना और मृदा के कटाव को रोकने वाली प्रक्रियाओं को अपनाना। अपशिष्ट जल के उपचार से जल निकायों में जाने वाले पोषक तत्वों की मात्रा भी कम हो सकती है।

    निष्कर्ष:

    सुपोषण एक मानव-प्रेरित समस्या है जिसके जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर परिणाम होते हैं। जल निकाय के जैविक रूप से मृत हो जाने के बाद इनके आर्थिक, पारिस्थितिकी और मनोरंजक मूल्यों में कमी आती है। सर्वोत्तम प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने, पोषक तत्वों के अपवाह में कमी लाने और अपशिष्ट जल के उपचार के माध्यम से सुपोषण को रोकने के साथ और नियंत्रित किया जा सकता है। सुपोषण को रोकने और नियंत्रित करने से हम अपने जलीय पारिस्थितिक तंत्र और उसके द्वारा प्रदान किये जाने वाले कई लाभों को संरक्षित कर सकते हैं।

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