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09 Jan 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 53
प्रश्न.1 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिशों की नीतियों के खिलाफ शुरु हुए प्रारंभिक अखिल भारतीय आंदोलन, छोटे आंदोलनों या स्थानीय संघर्षों की तरह बहुत सफल साबित नहीं हो पाए थे। उदाहरणों सहित चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा अपनाई गई ‘पुरस्कार और दंड’ (कैरट एंड स्टिक) की नीति पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- स्वतंत्रता संग्राम के लिये शुरू किये गए विभिन्न अखिल भारतीय और स्थानीय आंदोलनों का परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि कैसे अखिल भारतीय आंदोलन छोटे आंदोलनों या क्षेत्रीय संघर्षों की तरह बहुत सफल नहीं रहे थे।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- स्वदेशी, चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा जैसे छोटे आंदोलनों या क्षेत्रीय संघर्षों के विपरीत, प्रारंभिक अखिल भारतीय आंदोलन (असहयोग आंदोलन, होमरूल आंदोलन, रॉलेट सत्याग्रह) 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ तत्काल उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं रहे थे।
- हालाँकि इन आंदोलनों से कुछ बदलाव आए और इनसे भारत के लोगों के सामने आने वाले मुद्दों के बारे में जागरूकता का प्रसार हुआ था। इसके विपरीत छोटे आंदोलनों और संघर्षों (जो विशिष्ट मुद्दों पर केंद्रित थे) को परिवर्तन लाने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में अधिक सफलता प्राप्त हुई थी।
मुख्य भाग:
कम सफलता वाले अखिल भारतीय आंदोलन:
- असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन: इसे स्वराज प्राप्त करने के लिये शुरू किया गया था।
- चौरी-चौरा की हिंसक घटना के कारण इस आंदोलन को बंद कर दिया गया था। भारत के लोगों को सामाजिक-संगठनात्मक और राजनीतिक शिक्षा देने के अलावा यह आंदोलन ब्रिटिशों से कोई राजनीतिक लाभ प्राप्त करने में विफल रहा था।
- रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह: गांधी ने रॉलेट एक्ट को "ब्लैक एक्ट" कहा और अखिल भारतीय स्तर पर बड़े पैमाने पर इसके विरोध का आह्वान किया था। इन्होंने 6 अप्रैल, 1919 को सत्याग्रह सभा का आयोजन किया और होमरूल लीग के साथ अन्य युवा सदस्यों को इसमें शामिल किया था।
- जलियांवाला हत्याकांड के बाद गांधी ने 18 अप्रैल, 1919 को यह आंदोलन वापस ले लिया था। इस आंदोलन को भी अपेक्षित सफलता हासिल नहीं हुई थी।
- होमरूल लीग आंदोलन: यह आंदोलन कोई जन आंदोलन नहीं था। यह शिक्षित लोगों और कॉलेज के छात्रों तक ही सीमित था।
- एनी बेसेंट सरकारी सुधारों की बात से संतुष्ट होने और होमरूल आंदोलन को आगे बढ़ाने के द्वंद में रही थीं। वह अपने अनुयायियों को दृढ़ नेतृत्व प्रदान करने में भी सक्षम नहीं थीं।
- सितंबर 1918 में तिलक ब्रिटिश पत्रकार और 'इंडियन अनरेस्ट' पुस्तक के लेखक सर इग्नाटियस वेलेंटाइन चिरोल के खिलाफ मानहानि के केस के संदर्भ में इंग्लैंड गए थे।
- इसके बाद जल्द ही यह आंदोलन निष्क्रिय हो गया था।
स्थानीय आंदोलन की सफलता:
- स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन: इससे निम्न परिवर्तन आए जैसे:
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार (इससे आयातित वस्तुओं में कमी आई) हुआ था।
- सार्वजनिक बैठकें और जुलूस प्रदर्शन हुआ था।
- स्वयंसेवकों की वाहिनी या 'समितियाँ' गठित हुई थीं।
- पारंपरिक लोकप्रिय त्योहारों और मेलों का सहारा लिया गया था।
- आत्मनिर्भरता पर बल दिया गया था।
- स्वदेशी या राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम पर बल दिया गया था।
- चंपारण सत्याग्रह (1917)-प्रथम सविनय अवज्ञा: इसमें गांधी जी अधिकारियों को तिनकठिया व्यवस्था को समाप्त करने और किसानों से वसूल किये जाने वाले अवैध बकाये की छूट सुनिश्चित कराने में सफल हुए थे।
- अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918)- प्रथम भूख हड़ताल: इसमें प्लेग बोनस को बंद करने के मुद्दे पर अहमदाबाद के सूती मिल मालिकों और श्रमिकों के बीच विवाद हुआ था।
- अंत में मिल मालिक इस मुद्दे को एक न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये सहमत हुए और इससे श्रमिकों को 35 प्रतिशत वेतन वृद्धि मिली थी।
- खेड़ा सत्याग्रह (1918)-प्रथम असहयोग आंदोलन: इसमें गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों ने फसलों के खराब होने के कारण कर माफी की मांग की थी।
- अंततः सरकार किसानों के साथ एक समझौते के माध्यम से उस वर्ष के लिये कर को निलंबित करने के साथ अगले वर्ष के लिये कर की दर में कमी और जब्त की गई सारी संपत्ति वापस करने हेतु सहमत हुई थी।
निष्कर्ष:
आंदोलन की रणनीति और लक्ष्यों के संदर्भ में आंतरिक मतभेद और असहमति के कारण इनकी प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न हुई थी। इन चुनौतियों के बावजूद अखिल भारतीय आंदोलन से भविष्य के संघर्षों की नींव रखी गई और अंततः इससे भारत की स्वतंत्रता में योगदान मिला था।
प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि अखिल भारतीय आंदोलनों की सफलता सीमित रही थी लेकिन इन्होंने लोगों को एकजुट करके, पहचान और राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने के साथ सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक जागरूकता लाकर राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भी योगदान दिया था।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिशों द्वारा प्रयोग की जाने वाली 'कैरट एंड स्टिक' नीति को परिभाषित कीजिये।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर ब्रिटिशों की 'कैरट एंड स्टिक' नीति के प्रभाव की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने और भारत पर नियंत्रण बनाए रखने के प्रयास में "कैरट एंड स्टिक" की नीति का इस्तेमाल किया था। इस नीति में ब्रिटिश शासन के साथ सहयोग करने वालों को प्रोत्साहन या पुरस्कार देना और ब्रिटिश शासन का विरोध करने वालों को दंड देना शामिल था।
मुख्य भाग:
1857 का विद्रोह और उसके बाद:
1857 का विद्रोह भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था। इससे प्रशासनिक व्यवस्था और ब्रिटिश सरकार की नीतियों में दूरगामी परिवर्तन हुए थे।
- प्रोत्साहन या पुरस्कार: ब्रिटिश संसद ने भारत में बेहतर सरकार के लिये एक अधिनियम पारित किया था और महारानी विक्टोरिया को ब्रिटिश भारत का संप्रभु शासक घोषित किया गया था जिससे कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया था।
- इस उद्घोषणा में किये गए कई वादे भारतीयों के लिये सकारात्मक प्रकृति के प्रतीत हुए जैसे कि विलय और विस्तार का युग समाप्त हो गया था और ब्रिटिशों ने स्थानीय शासकों की गरिमा और अधिकारों का सम्मान करने का वादा किया था। भारत के लोगों को स्वतंत्रता देने का वादा किया गया था। सभी भारतीयों को कानून के तहत समानता और जाति या पंथ से परे होकर सरकारी सेवाओं में समान अवसर देने का वादा किया गया था।
- दंड: ब्रिटिश सेना में भारतीय सैनिकों की संख्या कम करने के साथ बाँटो और राज करो की नीति को अपनाया गया था। इसमें जाति/समुदाय/क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग इकाइयों का निर्माण किया गया था।
- कुछ पहाड़ी इकाइयों को छोड़कर सभी भारतीय तोपखाना इकाइयों को निष्क्रिय कर दिया गया था। सेना और तोपखाना विभागों में सभी उच्च पद यूरोपियों के लिये आरक्षित कर दिये गए थे। 20वीं सदी के पहले दशक तक किसी भी भारतीय को शासक की कमीशन के योग्य नहीं समझा जाता था।
- 1857 के विद्रोह के बाद बाँटो और राज करो की नीति तीव्रता से शुरू हुई थी। ब्रिटिशों ने एक वर्ग/समुदाय का दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल कर आर्थिक लूट को बढ़ावा दिया था।
आईएनसी (INC) का गठन: कॉन्ग्रेस के नरमपंथी तरीकों और ब्रिटिश ताज के प्रति वफादारी के बावजूद ब्रिटिश सरकार शुरू से ही कॉन्ग्रेस के प्रति शत्रुतापूर्ण थी।
- दंड: अधिकारियों ने सर सैय्यद अहमद खान और बनारस के राजा शिव प्रसाद सिंह जैसे प्रतिक्रियावादी लोगों को कॉन्ग्रेस के प्रचार के प्रतिरोध के तौर पर, यूनाइटेड इंडियन पैट्रियोटिक एसोसिएशन को गठित करने के लिये प्रोत्साहित किया था।
- सरकार ने राष्ट्रवादियों को धर्म के आधार पर बाँटने की कोशिश करने के साथ 'कैरट एंड स्टिक' की नीति के माध्यम से नरमपंथियों और गरमपंथियों के बीच संघर्ष को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया था। सरकार फिर भी राष्ट्रवाद के बढ़ते प्रसार को रोकने में विफल रही थी।
सूरत विभाजन: यह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के उदारवादी और क्रांतिकारी गुट के खिलाफ सरकार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली 'कैरट एंड स्टिक' नीति का परिणाम था।
- पुरस्कार: वर्ष 1909 का मार्ले-मिंटो सुधार या वर्ष 1909 का भारतीय परिषद अधिनियम भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के उदारवादी नेताओं के लिये एक प्रोत्साहन ही था इससे यह संकेत दिये गए कि अगर यह चरमपंथियों से दूरी बनाए रखें तो और सुधार भी किये जायेंगे।
- इसका उद्देश्य नरमपंथियों को अपने पक्ष में लेकर क्रांतिकारियों को अलग-थलग करना था। जिससे सरकार विभिन्न रणनीतियों का प्रयोग कर क्रांतिकारियों को दबा सकती थी। जैसे:
- दंड: इस दौरान कई दमनकारी कानून पारित किये गए जैसे: उग्रवादी राष्ट्रवादी गतिविधि के खिलाफ समाचार पत्र (अपराधों के लिये प्रोत्साहन) अधिनियम, 1908 लाया गया था। क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों के नेता के रूप में तिलक पर राजद्रोह के आरोप में मुकदमा चलाया गया और छह साल के लिये मांडले (बर्मा) भेजा गया था।
- भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910 द्वारा प्रेस गतिविधियों को नियंत्रित किया गया था।
- दुर्भाग्य से न तो नरमपंथी और न ही चरमपंथी इस रणनीति के पीछे के उद्देश्य को समझ पाए थे। सूरत विभाजन से संकेत मिलता है कि कैरट एंड स्टिक की नीति से ने ब्रिटिश सरकार को लाभ मिला था।
मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1919 द्वारा ब्रिटिश सरकार, भारतीयों के साथ अपनी शक्ति को साझा करने के लिये तैयार नहीं थी और फिर से इसमें 'कैरट एंड स्टिक' की नीति का सहारा लिया था।
- मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों द्वारा कैरट नीति का प्रदर्शन किया गया था जबकि रॉलेट एक्ट जैसे उपाय स्टिक नीति का उदाहरण थे।
- हालाँकि 1919 के भारत सरकार अधिनियम से कई बदलाव किये गए लेकिन इसमें बहुत सीमित मताधिकार के साथ, वायसराय और उसकी कार्यकारी परिषद के उत्तरदायित्व के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं किये गए थे। जिससे इस अधिनियम को बिना महत्त्व वाले प्रोत्साहन के रुप में संदर्भित किया गया था।
- दूसरी ओर रॉलेट एक्ट जैसे अराजक कानून ने कार्यकर्ताओं को बिना मुकदमे के कैद करना संभव बना दिया था।
निष्कर्ष:
कुल मिलाकर ब्रिटिश सरकार द्वारा "कैरट एंड स्टिक" नीति का उपयोग भारतीय लोगों की वैध शिकायतों को दूर करने और संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने के बजाय, भारत पर नियंत्रण बनाए रखने और स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के एक तरीके के रूप में किया गया था।