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Sambhav-2023

  • 19 Nov 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 10

    प्रश्न- 1. संसद के कामकाज में संसदीय समितियों का क्या महत्त्व है? इसकी प्रभावशीलता में सुधार के उपाय सुझाइये।

    प्रश्न- 2. संसदीय मंच और संसदीय समूह क्या हैं? साथ ही, उनके कार्यों पर भी चर्चा कीजिये।

    उत्तर

    उत्तर 1:

    दृष्टिकोण:

    • संसदीय समितियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुये उत्तर की शुरूआत कीजिये।
    • संसदीय समिति प्रणाली के महत्व पर चर्चा कीजिये।
    • संसदीय समितियों के महत्व में आयी गिरावट पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    संसद की जटिल संरचना और इसके समक्ष विस्तृत कार्य होने के कारण वह अपने समक्ष लाये गये सभी विषयों का प्रभावकारी ढंग से निष्पादन नहीं कर सकती है। इस जटिल कार्य में, संसदीय समितियाँ विभिन्न मुद्दों पर प्रभावी ढंग से निपटने में मदद करती हैं।

    किसी भी ऐसी समिति को संसदीय समिति कहा जाता है जो सदन द्वारा गठित जाती है या अध्यक्ष / सभापति द्वारा नामित की जाती है एवं उनके निर्देश पर काम करती है और सदन को रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।

    मुख्य बिन्दु

    संसदीय समिति प्रणाली का महत्व

    • अंतर-मंत्रालयी समन्वय: इन समितियों को संबंधित मंत्रालयों / विभागों की अनुदान मांगों को देखने, उनसे जुड़े विधेयकों की जाँच, उनकी वार्षिक रिपोर्ट और दीर्घकालिक योजनाओं पर विचार करने तथा संसद को रिपोर्ट करने का कार्य सौंपा जाता है।
    • विस्तृत जाँच के लिये साधन: आमतौर पर संसदीय समितियों की रिपोर्टें बहुत ही विस्तृत होती हैं और शासन से संबंधित मामलों पर प्रामाणिक जानकारी प्रदान करती हैं। इन समितियों से संदर्भित विधेयक महत्त्वपूर्ण मूल्यवर्द्धन के साथ सदन में वापस आते हैं। इसके अतिरिक्त इन समितियों को अपने कार्य के निर्वहन के दौरान विशेषज्ञ सलाह और सार्वजनिक राय प्राप्त करने का अधिकार होता है।
    • एक लघु संसद के रूप में कार्य : ये समितियाँ दोनों सदनों के सदस्यों (सांसदों) की छोटी इकाइयाँ होती हैं और ये सदस्य अलग-अलग राजनीतिक दलों से आते हैं। ये समितियाँ पूरे वर्ष कार्य करती हैं।
    • इसके अलावा संसदीय समितियाँ लोकलुभावन मांगों को लेकर बाध्य नहीं होती हैं जो आमतौर पर संसद के काम में बाधा उत्पन्न करती हैं।
    • सदस्य बिना किसी डर के स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं: चूँकि इन समितियों की बैठकें 'गुप्त' होती हैं। ऐसे में समितियों के सदस्य पार्टी व्हिप द्वारा बाध्य नहीं होते हैं। संसदीय समितियाँ बहस तथा चर्चा के लोकाचार पर कार्य करती है। इसके अलावा यह समितियाँ सार्वजनिक लोकप्रियता से दूर रहकर काम करती हैं और संसदीय कार्यवाही को संचालित करने वाली प्रक्रिया की तुलना में अनौपचारिक बने रहने के साथ यह सदन के नए और युवा सदस्यों के लिये महत्त्वपूर्ण प्रशिक्षण संस्था हैं।

    संसदीय समितियों के महत्व में गिरावट

    • निर्दिष्ट मामलों में कमी: संसदीय समिति प्रणाली की अनदेखी: पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आँकड़ों के अनुसार, 14वीं लोकसभा में 60% और 15वीं लोकसभा में 71% विधेयक संबंधित विभागीय स्थायी समितियों (DRSCs) को भेजे गए थे जबकि 16वीं लोकसभा में ऐसे विधेयकों का अनुपात घटकर 27% रह गया। DRSCs के अलावा सदनों की संयुक्त संसदीय समितियों और चयन समितियों को भेजे गए विधेयकों की संख्या भी नगण्य ही रही।
    • सार्वजनिक महत्त्व के विषयों की उपेक्षा: हाल के वर्षों में संसद के कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जैसे अनुच्छेद 370 जो जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को निरस्त करता है तथा जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करता है, की किसी भी संसदीय समिति द्वारा समीक्षा या इसे परिवर्तित नहीं किया गया था।
    • अन्य कमियाँ: समितियों के कामकाज को प्रभावित करने वाले अन्य मुद्दों में: समिति की बैठकों में सांसदों की उपस्थिति का कम होना, एक समिति के अधीन कई मंत्रालयों का शामिल होना, समितियों के गठन के समय सांसदों को नामित करते समय अधिकांश राजनीतिक दलों द्वारा मानदंडों का पालन न किया जाना एवं DRSCs के पास कार्य समीक्षा करने के लिये एक वर्ष की अल्प समयावधि का होना आदि कुछ अन्य मुद्दे हैं।

    आगे की राह:

    • नई समितियों की स्थापना: अर्थव्यवस्था और तकनीकी क्षेत्र में प्रगति के साथ-साथ इससे जुड़े मामलों की जटिलता में वृद्धि को देखते हुए नई संसदीय समितियों की स्थापना की आवश्यकता है।
    • अनिवार्य चर्चा: सभी समितियों द्वारा प्रमुख रिपोर्टों पर संसद में विशेष रूप से उन मामलों पर चर्चा की जानी चाहिये, जहाँ किसी मुद्दे या बिंदु पर समिति एवं सरकार के मध्य मतभेद या असहमति उत्पन्न होती है।
    • आवधिक समीक्षा: संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये गठित राष्ट्रीय आयोग के अनुसार, DRSCs की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये ताकि समितियों की उपयोगिता को नए सिरे से रेखांकित किया जा सके।

    उत्तर 2:

    दृष्टिकोण:

    • संसदीय मंचों और संसदीय समूह के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुये उत्तर की शुरूआत कीजिये।
    • संसदीय मंचों और संसदीय समूह के कार्यों पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    • संसदीय मंचों की स्थापना सदस्यों को महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत और चर्चा करने के लिये एक मंच प्रदान करने के लिये की गयी थी। लोकसभा अध्यक्ष, जनसंख्या और सार्वजनकि स्वास्थ्य संबंधी संसदीय मंच को छोड़कर अन्य सभी मंचों के पदेन अध्यक्ष होते हैं।
    • संसदीय समूह एक स्वायत्त निकाय है, जिसमें विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के सांसद अपनी सामान्य समस्याओं पर चर्चा करने और समाधान खोजने हेतु मिलते हैं।
      • इस समूह का उद्देश्य लोकतंत्र को मज़बूत करने और विश्व के समक्ष आने वाली चुनौतियों का सामना करने और इन्हें अवसरों में बदलने के क्रम में समन्वय स्थापित करना है जिससे विश्व स्तर पर शांति और समृद्धि को बढ़ावा दिया जा सके।
      • यह समूह विश्व की विभिन्न संसदों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करता है।
      • इसका गठन वर्ष 1949 में संविधान सभा के एक प्रस्ताव के अनुपालन में हुआ था। भारतीय -संसद समूह (IPG) की सदस्यता संसद के सभी सदस्यों के लिये उपलब्ध होती है। संसद के पूर्व सदस्य भी इस समूह के सहयोगी सदस्य बन सकते हैं। लेकिन सहयोगी या सम्बद्ध सदस्यों को सीमित अधिकार ही प्राप्त होतें हैं।

    मुख्य बिन्दु

    संसदीय मंचों के कार्य

    जल संरक्षण एवं प्रबंधन पर संसदीय मंच: इस मंच के निम्नलिखित कार्य हैं जैसे कि

    • जल से संबन्धित समस्याओं की पहचान करना तथा उन पर अपना सुझाव देना ताकि उन पर विचारोपरांत सरकार या संबन्धित संगठन द्वारा उपयुक्त कार्यवाही की जा सके।
    • जल संरक्षण एवं उसके कुशल प्रबंधन के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये सेमिनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन करना तथा अन्य संबन्धित कार्य जिसे उचित समझा जाए उस पर भी संज्ञान लेना।

    युवाओं के लिये संसदीय मंच: इस मंच के निम्नलिखित कार्य है:

    • युवाओं के अंदर मौजूद मानव पूंजी के उपयोग की रणनीतियों पर सार्थक चर्चा करना ताकि युवाओं के विकासात्मक पहलुओं को आगे बढ़ाया जा सके।
    • युवा की क्षमताओं के बारे में जागरूकता पैदा करना तथा युवा प्रतिनिधियों एवं नेताओं के साथ नियमित अन्तःक्रिया करना, जिससे की उनकी आशाओं, आकांक्षाओं, चिंताओं एवं समस्याओं पर विचार किया जा सके|
    • विशेषज्ञों, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा सरकारी एजेंसियों से चर्चा करके युवा सशक्तिकरण से संबन्धित नीतियों की पुनर्रचना पर बल देना।
    • महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक डेटाबेस तैयार करना: संसदीय मंच, सदस्यों को एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहाँ वे संबंधित मंत्रियों, विशेषज्ञों, मंत्रालयों के प्रमुख अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण विषयों पर संकेंद्रित और सार्थक चर्चा कर सकते हैं। महत्वपूर्ण मुद्दों पर संबन्धित मंत्रालय, गैर-सरकारी संगठनों, समाचार पत्रों, इंटरनेट आदि के माध्यम से आंकड़े एकत्रित कर एक डेटाबेस तैयार करता है और उन्हे सदस्यों के बीच वितरित करता है ताकि सदस्य फोरम की बैठकों में सार्थक ढंग से भाग लें सकें।

    संसदीय समूह के कार्य

    • यह समूह भारत की संसद तथा विश्व की अन्य संसदों के बीच एक कड़ी का काम करता है। इस कड़ी को बनाए रखने के लिये शुभेच्छा मिशनों, पत्राचार एवं दस्तावेजों का आदान-प्रदान किया जाता है।
    • विदेशी संसद सदस्यों के राज्याध्यक्षों का संबोधन एवं प्रमुख व्यक्तियों द्वारा वार्ताओं का आयोजन इस समूह द्वारा किया जाता है।
    • सामायिक रुचि एवं सामाजिक महत्व के संसदीय विषयों पर संगोष्ठियों का समय-समय पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन किया जाता है।
    • विदेशी दौरों पर जाने वाले समूह के सदस्यों का परिचय अंतर-संसदीय समूह (IPU) और राष्ट्रमंडल संसदीय समूह (CPA) की शाखाओं के सचिवों को भेजा जाता है। |
    • विदेश जाने वाले भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल में उन्ही सांसदों को सम्मिलित किया जाता है जो प्रतिनिधिमंडल के गठन के छह माह पूर्व समूह के सदस्य बन चुके होते है।

    निष्कर्ष

    संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने और विशेषज्ञता को बढ़ावा देने मे संसदीय मंच और संसदीय समूह दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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