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पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

अप्रैल 2021

  • 07 May 2021
  • 29 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स

कोविड-19

ऑक्सीजन आपूर्ति 

  • केंद्र सरकार ने कोविड-19 महामारी में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु  भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये आपूर्ति योजना को जारी किया है जिसमें राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों को इस योजना का पालन करना होगा।
  • योजना में ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारियों को इसे लागू करने के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है, अन्य मुख्य फैसलों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • परिवहन: राज्यों के बीच मेडिकल ऑक्सीजन के मूवमेंट पर कोई प्रतिबंध लागू नहीं होगा। मंत्रालय के आदेशानुसार, ऑक्सीजन ले जाने वाले वाहनों को रोकने की घटनाएंँ दर्ज  की गई हैं। उसमें कहा गया है कि: 
      (i) ऐसे वाहनों को सुरक्षा दी जानी चाहिये।
      (ii) उनके परिवहन के लिये एक्सक्लूसिव कॉरिडोर्स की व्यवस्था की जानी चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने मोटर वाहन एक्ट, 1988 के अंतर्गत ऑक्सीजन लेकर जाने वाले वाहनों को परमिट्स की कुछ शर्तों से छूट दी है। इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
      (i) गुड्स कैरिएज परमिट।
      (ii) वाहन परमिट।
    • औद्योगिक आपूर्ति: सभी गैर-मेडिकल उद्देश्यों (जैसे औद्योगिक उपयोग) के लिये ऑक्सीजन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है। कुछ उद्योगों को इस प्रतिबंध से छूट दी गई है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
      (i) फार्मास्यूटिकल्स।
      (ii) रक्षा बल।
      (iii) ऑक्सीजन सिलिंडर मैन्युफैक्चरर्स।
  • राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों को स्थानीय स्तर पर आवंटन की योजना बनाने के लिये ऑक्सीजन जनरेटिंग प्लांट्स को मैप करना होगा।
  • आयात: पोर्ट्स, शिपिंग और वॉटरवेज़ मंत्रालय ने ऑक्सीजन संबंधी कनसाइनमेंट लाने वाले सभी जहाज़ों को मुख्य बंदरगाहों पर लगने वाले सभी शुल्कों से छूट दी है।

स्पूतनिक-वी वैक्सीन और विराफिन इंजेक्शन 

  • ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने स्पूतनिक-वी वैक्सीन और विराफिन इंजेक्शन के सीमित आपात उपयोग के लिये मंज़ूरी दे दी है।
  • स्पूतनिक-वी रूस के नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन है।
  • इस वैक्सीन को 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के टीकाकरण के लिये इस्तेमाल किया जाएगा। इसकी दो डोज़ को 21 दिनों के अंतराल में लगाया जाएगा।
  • विराफिन एक इंजेक्शन है जिसे मध्यम लक्षण वाले मरीज़ों के इलाज के लिये इस्तेमाल किया जाता है। इसे जाइडस कैडिला के नेशनल बायोफार्मा मिशन के अंतर्गत विकसित किया गया है।

समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास

लिक्विडिटी और क्रेडिट फ्लो 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कोविड-19 के कारण उत्पन्न वित्तीय तनाव को कम करने हेतु लक्षित क्षेत्रों में लिक्विडिटी और क्रेडिट फ्लो का सहयोग देने के लिये उपायों की घोषणा की।
  • अक्तूबर 2020 में RBI ने ऑन टैप टीएलटीआरओ (टार्गेटेड लॉन्ग टर्म रीपर्चेज़ ऑपरेशंस) योजना की घोषणा की थी। इस योजना का उद्देश्य अर्थव्यवस्था के लक्षित क्षेत्रों में गतिविधियों को चालू करना है। 
  • योजना के अंतर्गत फ्लोटिंग ब्याज दर पर तीन वर्षों के लिये धनराशि उधार ले सकते हैं जो कि रेपो रेट से जुड़ी हुई होगी।
    • इस योजना के अंतर्गत प्राप्त धनराशि को (i) या तो बांड्स या दूसरे वित्तीय उत्पादों में निवेश किया जा सकता है, या (ii) कुछ क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों को ऋण के रूप में दिया जा सकता है। 
    • इन क्षेत्रों में कृषि, निर्माण, एमएसएमई, फार्मास्यूटिकल्स और हेल्थकेयर शामिल हैं। 
  • RBI 2021-22 में नए ऋण के लिये कुछ वित्तीय संस्थानों को 50,000 करोड़ रुपए का लिक्विडिटी सपोर्ट देगा।
  •  इन संस्थानों में नाबार्ड (25,000 करोड़ रुपए), नेशनल हाउसिंग बैंक (10,000 करोड़ रुपए) और सिडबी (15,000 करोड़ रुपए) शामिल हैं।

क्रेडिट गारंटी योजना

  • जून 2020 में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) मंत्रालय द्वारा सबऑर्डिनेट डेट के लिये क्रेडिट गारंटी योजना को शुरू किया गया था।
  • यह केंद्र सरकार की स्ट्रेस्ड MSMEZ में निवेश के लिये प्रमोटर्स को 20,000 करोड़ रुपए मूल्य का गारंटी कवर प्रदान करने की योजना है। मूल नियमों के अनुसार, योजना मार्च 2021 तक लागू थी। अब इसे  30 सितंबर 2021 तक के लिये बढ़ा दिया गया है।  
  • योजना के अंतर्गत स्ट्रेस्ड MSMEZ (जो 30 अप्रैल, 2020 तक एनपीए बन गए हैं) के प्रमोटर्स को उनके स्टेक के 15% के बराबर (इक्विटी जमा डेट) या 75 लाख रुपए तक का क्रेडिट (इनमें से जो भी कम हो) दिया जाता है। 
  • प्रमोटर्स लिक्विडिटी बढ़ाने और डेट-इक्विटी अनुपात बहाल रखने के लिये इक्विटी के तौर पर एमएसएमई में इस राशि को डालेंगे। 
  • मूल राशि के भुगतान पर सात वर्ष का मोराटोरियम दिया जाएगा। 
  • पुनर्भुगतान के लिये अधिकतम अवधि 10 वर्ष होगी। योजना को सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के जरिये संचालित किया जाता है। 

रेपो और रिवर्स रेपो रेट्स

मॉनिटरी पॉलिसी समिति (MPS) ने वर्ष 2021-22 का पहला द्विमासिक मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य जारी किया। MPS के मुख्य निर्णयों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पॉलिसी रेपो रेट (जिस दर पर RBI बैंकों को ऋण देता है) 4% की दर पर बरकरार है।
  • रिवर्स रेपो रेट (जिस दर पर RBI बैंकों से उधार लेता है) 3.35% पर अपरिवर्तनीय है।
  • मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी रेट (जिस दर पर बैंक अतिरिक्त धन उधार ले सकते हैं) और बैंक रेट (जिस दर पर आरबीआई बिल्स ऑफ एक्सचेंज को खरीदता है) 4.25% पर अपरिवर्तनीय है।
  • MPS ने मौद्रिक नीति के समायोजन के रुख को बरकरार रखने का फैसला किया।

रिटेल मुद्रास्फीति 4.9% 

  • जनवरी 2021 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति 4.1% से बढ़कर मार्च 2021 में 5.5% हो गई (वर्ष दर वर्ष)।
  • CPI रिटेल स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में बदलावों को मापता है। CPI बास्केट में आम तौर पर घरेलू स्तर पर इस्तेमाल होने वाली वस्तुएंँ जैसे- खाद्य पदार्थ, ईंधन, कपड़ा, आवास और स्वास्थ्य सामग्री आदि शामिल होते हैं। 
  • इस बास्केट में भोजन और पेय पदार्थों का हिस्सा 46% होता है।
  • खाद्य स्फाति जनवरी 2021 में 2% से बढ़कर मार्च 2021 में 4.9% हो गई (वर्ष दर वर्ष)। 
  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) मुद्रास्फीति जनवरी 2021 में 2.5% से बढ़कर मार्च 2021 में 7.4% हो गई (वर्ष दर वर्ष)। 

WPI

इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2021 

  • इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2021 को 4 अप्रैल, 2021 को जारी किया गया।
  • यह इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 (आईबीसी) में संशोधन करता है।
  • इनसॉल्वेंसी वह स्थिति है, जब व्यक्ति या कंपनियांँ अपना बकाया ऋण नहीं चुका पाते। अध्यादेश की मुख्य विशेषताएंँ निम्नलिखित हैं:
  • प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन: संहिता कॉरपोरेट देनदारों की इनसॉल्वेंसी समस्या को हल करने के लिये एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है जिसे कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (सीआईआरपी) कहते हैं। 
    • अध्यादेश सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमईज़) के लिये वैकल्पिक इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया को पेश करता है जिसे प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (PIRP) कहा गया है।   
  • CIRP देनदार या लेनदार किसी के भी ज़रिये शुरू की जा सकती है, जबकि PIRC सिर्फ देनदारों के ज़रिये ही शुरू की जा सकती है। देनदारों के पास PIRC को शुरू करने से पहले एक बेस रेज़ोल्यूशन प्लान होना चाहिये। रेज़ोल्यूशन प्लान में देनदार की इनसॉल्वेंसी को हल करने का प्रावधान होता है।
  • CIRP के दौरान कंपनी के मामलों का प्रबंधन रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल (RP) द्वारा किया जाता है जो कि CIRP के लिये नियुक्त किया जाता है। इसके विपरीत CIRP में देनदार कंपनी का प्रबंधन करता रहता है।
  • PIRP हेतु डिफॉल्ट की न्यूनतम राशि: कम-से- कम एक लाख रुपए का डिफॉल्ट होने की स्थिति में PIRP शुरू करने के लिए आवेदन किया जा सकता है।
    • केंद्र सरकार अधिसूचना के ज़रिये डिफॉल्ट की न्यूनतम राशि को बढ़ाकर एक करोड़ रुपए तक कर सकती है।
  • फाइनेंशियल क्रेडिटर्स की मंज़ूरी: PIRP के आवेदन के लिये देनदारों को कम- से-कम 66% फाइनेंशियल क्रेडिटर्स (क्रेडिटर्स पर बकाया ऋण के मूल्य में) की मंज़ूरी लेनी होगी जो कि देनदार से संबंधित पक्ष न हों।
    • मंँज़ूरी मांगने से पहले देनदार को क्रेडिटर्स को बेस रेज़ोल्यूशन प्लान देना होगा। देनदार को PIRP के आवेदन के साथ आरपी का नाम भी प्रस्तावित करना होगा।
    • इस आरपी को कम-से-कम 66% फाइनेंशियल क्रेडिटर्स की मंज़ूरी होनी चाहिये।

वाणिज्य एवं उद्योग

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना 

 केंद्रीय कैबिनेट ने एयर कंडीशनर्स (SC) और एलईडी लाइट्स के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना  को मंज़ूरी दे दी है। योजना बड़े निवेश आकर्षित करने के ज़रिये इन वस्तुओं की घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने का प्रयास करती है।

इसका उद्देश्य भारत में एक कंपोनेंट इकोसिस्टम तैयार करना है जो कि विश्वव्यापी आपूर्ति शृंखला का अभिन्न अंग बन सके। योजना के अंतर्गत सरकार भारत में बनने वाली वस्तुओं (जैसे एसी, एलईडी लाइट्स और उनके कंपोनेंट्स) की इन्क्रीमेंटल बिक्री पर 4% से 6% इनसेंटिव देगी।

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कृषि

दक्षिण-पश्चिमी मानसून

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) ने 2021 के लिये दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी वर्षा का लंबी अवधि का पूर्वानुमान जारी किया है।
  • जून-सितंबर 2021 की अवधि के दौरान मानसूनी मौसमी की लंबी अवधि का औसत (LPA) 98% अनुमानित है, जिसमें +/- 5% की त्रुटि संभावित है। एलपीए 1961 से 2010 की अवधि के दौरान क्षेत्र में वर्षा का औसत है जो कि देश के लिये 88 सेंटीमीटर है। अगर वर्षा 96%-104% के बीच होती है तो उसे सामान्य माना जाता है।
  • वर्ष 2020 में मानसूनी वर्षा LPA का 100% अनुमानित थी, जबकि वास्तविक वर्षा LPA की 109% थी।
  • वर्ष 2019 में यह LPA का 110% थी, जबकि अनुमान 96% का था।

पर्यावरण

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग

  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग द्वारा अध्यादेश, 2021 जारी किया गया।
  • अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) तथा निकटवर्ती इलाकों में वायु गुणवत्ता से संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु बेहतर समन्वय, अनुसंधान, उन्हें पहचानने और हल करने के लिये आयोग के गठन का प्रावधान करता है। 

निकटवर्ती इलाकों में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य के क्षेत्र आते हैं जहांँ प्रदूषण के कई स्रोत एनसीआर की वायु गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है। 2021 के अध्यादेश की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • कार्य:
    (i) अध्यादेश के अंतर्गत संबंधित राज्य सरकारों (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) के कार्यों के बीच समन्वय स्थापित करना।
    (ii) एनसीआर में वायु प्रदूषण की रोकथाम और उसे नियंत्रित करने की योजनाएंँ बनाना और उन्हें अमल में लाना। 
    (iii) अनुसंधान और विकास करना। 
  • शक्तियांँ:  
    (i) वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना।
    (ii) वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण की जांँच और उस पर अनुसंधान करना। 
    (iii) वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण हेतु संहिताएंँ, दिशा-निर्देश तैयार करना। इसके अतिरिक्त आयोग पराली जलने से होने वाले प्रदूषण पर किसानों से मुआवज़ा वसूल सकता है। केंद्र सरकार इस पर्यावरणीय मुआवज़ें को निर्दिष्ट करेगी।
  • संयोजन: आयोग में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे: 
    (i) चेयरपर्सन, 
    (ii) मेंबर सेक्रेटेरी और चीफ कोऑर्डिनेटिंग ऑफिसर के तौर पर संयुक्त सचिव पद का अधिकारी, 
    (iii) पूर्णकालिक सदस्य के रूप में केंद्र सरकार का मौजूदा या पूर्व संयुक्त सचिव, 
    (iv) स्वतंत्र तकनीकी सदस्यों के रूप में वायु प्रदूषण से संबंधित ज्ञान और विशेषज्ञता वाले तीन सदस्य, 
    (iv) गैर-सरकारी संगठनों से तीन सदस्य।
  • जुर्माना: 
    (i) अध्यादेश के प्रावधानों या आयोग के आदेशों अथवा निर्देशों का उल्लंघन करने पर पांँच वर्ष तक की कैद या एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना, या दोनों सज़ा भुगतनी पड़ सकती है।
    (ii) आयोग के सभी आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा की जाएगी।

एश के उपयोग संबंधी ड्राफ्ट

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एश के उपयोग संबंधी ड्राफ्ट अधिसूचना पर टिप्पणियांँ आमंत्रित की हैं। इस अधिसूचना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • एश का उपयोग: कोयला या लिग्नाइट आधारित प्रत्येक थर्मल पावर प्लांट को यह सुनिश्चित करना होगा कि साल में उत्पन्न होने वाली एश (जैसे फ्लाई एश) का कम-से-कम 80% इको फ्रेंडली उपयोग हो। एश के इको फ्रेंडली उपयोग में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    (i) ईंटों का निर्माण
    (ii) फ्लाई एश का इस्तेमाल करके सड़कों और बांँधों का निर्माण।
  • तीन वर्षीय चक्र में एश का औसत उपयोग 100% होना चाहिये। इस चक्र अवधि का निर्धारण इस प्रकार हो- 
    (i) थर्मल पावर प्लांट्स के लिये एक वर्ष जिसमें एश का वार्षिक उपयोग 60-80% हो। 
    (ii) पावर प्लांट्स के लिये दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है जिसमें एश का वार्षिक उपयोग 60% से कम हो। अधिसूचना से पहले जमा एश (लीगेसी एश) को अधिसूचना की तारीख से अगले 10 वर्षों में उपयोग करना होगा।
  • एश उपयोग के इको-फ्रेंडली तरीकों की समीक्षा हेतु समिति: एश उपयोग के इको-फ्रेंडली तरीकों की जांँच, समीक्षा और उसके संबंध में सुझाव देने के लिये एक समिति बनाई जाएगी। इस समिति  की अध्यक्षता केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का चेयरपर्सन करेगा। इसमें निम्नलिखित मंत्रालयों के प्रतिनिधि सदस्य के तौर पर शामिल होंगे:
    (i) पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन। 
    (ii) कोयला मंत्रालय। 
    (iii) कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग।
  • जुर्माना: अगर संबंधित पावर प्लांट्स तीन वर्षीय चक्र के पहले दो वर्षों में कम- से-कम 80% एश का उपयोग नहीं कर पाते तो उन्हें जुर्माना देना होगा। 
    • यह जुर्माना वित्तीय वर्ष के अंत में उपयोग न होने वाली एश के मामले में 1,000 रुपए प्रति टन होगा। 
    • अगर तीसरे वर्ष के अंत तक 100% उपयोग का लक्ष्य हासिल नहीं किया जाता तो उपयोग न होने वाली उतनी एश पर 1,000 रुपए प्रति टन का जुर्माना लगेगा जिस पर पहले जुर्माना नहीं लगाया गया था। 
    • इसके अतिरिक्त अधिसूचना में लीगेसी एश का उपयोग न होने पर जुर्माना भी निर्दिष्ट किया गया है।

नवीन और अक्षय ऊर्जा

सोलर मॉड्यूल्स पर राष्ट्रीय कार्यक्रम 

  • कैबिनेट ने उच्च दक्षता वाले सोलर फोटो वॉल्टेइक (Photo Voltaic-PV) मॉड्यूल्स पर राष्ट्रीय कार्यक्रम को मंज़ूरी दे दी है। 
  • कार्यक्रम उच्च दक्षता वाले सोलर PV मॉड्यूल्स के मैन्युफैक्चरर्स को प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव प्रदान करेगा। योजना का लक्ष्य आयात निर्भरता को कम करना है। 
  • योजना के अंतर्गत मैन्युफैक्चरर्स को पारदर्शी प्रतिस्पर्द्धी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाएगा। चुनींदा मैन्युफैक्चरर्स को मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की कमीशनिंग के बाद पांँच वर्षों के लिये इनसेंटिव दिया जाएगा। 
  • मॉड्यूल की दक्षता और स्थानीय वैल्यू एडिशन के बढ़ने के साथ इनसेंटिव भी बढ़ा दिया जाएगा।
  • योजना का कुल परिव्यय 4,500 करोड़ रुपए अनुमानित है।

सड़क परिवहन

नेटवर्क सर्वे वाहनों का प्रयोग 

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी (National Highways Authority of India- NHAI) ने सड़कों की स्थिति के सर्वेक्षण हेतु नेटवर्क सर्वे वाहनों (Network Survey Vehicle-NSVs) के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया है ताकि बेहतर अनुरक्षण किया जा सके।

 NSVs को निम्नलिखित के लिये रोड इनवेंटरी और डेटा के ऑटोमैटिक कलेक्शन हेतु  इस्तेमाल किया जाता है: 

(i) सड़क की सतह।
(ii) फुटपाथों की स्थिति। 
(iii) रोड फर्नीचर।

NSVs के इस्तेमाल को प्रोजेक्ट के पूरा होने पर हर छह महीने में किया जाना अनिवार्य है। NSVs द्वारा जमा कये गए डेटा को एनएचएआई के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा और उसका विश्लेषण रोड एसेट मैनेजमेंट सेल करेगी।


शहरी मामले

सार्वजनिक परिवहन और स्वस्थ भोजन की ज़रूरत हेतु पहल 

आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरों में सार्वजनिक परिवहन तथा स्वस्थ एवं सतत् रूप से उत्पादित खाद्य पदार्थों को मज़बूती प्रदान करने हेतु दो नए चैलेंज (ईट स्मार्ट चैलेंज तथा  टी4ऑल चैलेंज) को निम्नलिखित के लिये शुरू किया है: 

(i) स्मार्ट सिटीज़ मिशन के अंतर्गत चिह्नित शहर
(ii) सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की राजधानियांँ
(iii) पांँच लाख लोगों से अधिक की आबादियों वाले सभी शहर। 

ईट स्मार्ट चैलेंज:

  • यह चैलेंज शहरों के मध्य है, जो कि ईट राइट इंडिया अभियान के अंतर्गत पहल करने का प्रयास करेंगे। 
  • यह अभियान स्वच्छ, स्वस्थ और सतत् खाद्य पदार्थ प्रदान करने वाले इस्टैबलिशमेंट्स और एंटिटीज़ को मान्यता देकर स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। इसके अतंर्गत पहल में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    (i) फूड हब्स के क्लस्टर सर्टिफिकेशंस और फूड इस्टैबलिशमेंट्स की हाइजीन रेटिंग। 
    (ii) सुरक्षित पैकेजिंग। 
    (iii) स्कूल्स और दूसरे परिसरों के लिये सर्टिफिकेशन। 

चैलेंज के पहले चरण में शहरों को एक विज़न डॉक्यूमेंट को विकसित करना होगा। दस शहरों को अपनी रणनीतियों को लागू करने के लिये वित्तपोषण और तकनीकी सहयोग मिलेगा। 

टी4ऑल चैलेंज: 

  • इस चैलेंज में डिजिटल इनोवेशन के माध्यम से सार्वजनिक परिवहन को सभी के लिये सुरक्षित, सुविधाजनक और सस्ता बनाने का प्रयास किया जाएगा।
  • प्रतिभागी शहर को एक टास्क फोर्स बनानी होगी जिसमें स्टेकहोल्डर्स के प्रतिनिधि शामिल होंगे, इस चैलेंज के अंतर्गत: 
    (i) शहरों द्वारा सतत् परिवहन में समस्याओं को चिह्नित किया जाएगा। 
    (ii) स्टार्टअप्स स्टेकहोल्डर्स के इनपुट्स की मदद से प्रोटोटाइप सॉल्यूशंस विकसित करेंगे। 
    (iii) नागरिकों के फीडबैक के आधार पर सॉल्यूशंस को रीफाइन करने के लिए बड़े पैमाने पर पायलट टेस्टिंग मैकेनिज्म विकसित किया जाएगा। 

कार्मिक और प्रशिक्षण

क्षमता निर्माण आयोग 

कार्मिक, जन शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने राष्ट्रीय लोक सेवा क्षमता निर्माण कार्यक्रम ((National Programme for Civil Services Capacity Building- NPCSSB) के अंतर्गत क्षमता निर्माण आयोग का गठन किया है। NPCSSB लोक सेवाओं के सदस्यों हेतु एक क्षमता निर्माण योजना है। 

  • NPCSSB के सिद्धांत: 
    (i) लोक सेवकों की क्षमताओं और पद की ज़रूरतों के आधार पर उन्हें काम सौंपना। 
    (ii) ‘ऑफ साइट’ लर्निंग के हिसाब से ‘ऑनसाइट लर्निंग’ पर ज़ोर देना। 
    (iii) लोक सेवा के सभी पदों की भूमिकाओं, गतिविधियों और दक्षताओं के ढांँचे में समन्वय करना।  
  • आयोग के कार्य: 
    (i) वार्षिक क्षमता निर्माण योजनाओं की तैयारियों के लिये समन्वय करना।   
    (ii) प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, शिक्षाशास्त्र तथा योग्यता ढांँचे के मानकीकरण पर सुझाव देना।  
    (iii) लोक सेवकों को प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थानों के बीच साझा संसाधनों के निर्माण की सुविधा देना।
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