जून 2023 | 30 Jun 2023
PRS के प्रमुख हाइलाइट्स
- इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी
- BSNL हेतु तीसरे पुनरुद्धार पैकेज को मंज़ूरी
- सूचना सुरक्षा संबंधी कार्य पद्धतियों पर दिशा-निर्देश
- कृषि
- उर्वरकों पर सब्सिडी
- गन्ने की कीमतों को मंज़ूरी
- खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य
- ऊर्जा
- विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) संशोधन नियम, 2023
- संसाधन पर्याप्तता योजना
- पंप भंडारण परियोजना
- कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, 2023
- वित्त
- समझौता निपटान और तकनीकी राइट-ऑफ
- लिस्टिंग और प्रकटीकरण नियमों में संशोधन
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक
- वाणिज्य
- नागरिक उपयोग वाले ड्रोन के लिये निर्यात नीति
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
- सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022
- शिक्षा
- UGC (समवत विश्वविद्यालय संस्थान) विनियम, 2023
- माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा कोष का संचालन
- उपभोक्ता मामले
- प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाओं के लिये नियमों में संशोधन
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी
BSNL हेतु तीसरे पुनरुद्धार पैकेज को मंज़ूरी
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत संचार निगम लिमिटेड (Bharat Sanchar Nigam Limited- BSNL) के लिये 89,047 करोड़ रुपए के परिव्यय वाले पुनरुद्धार (रिवाइवल) पैकेज को मंज़ूरी दी है।
- यह पैकेज इक्विटी निवेश के माध्यम से BSNL के लिये 4जी/5जी स्पेक्ट्रम के आवंटन का प्रावधान करता है।
- इसका उद्देश्य BSNL को निम्नलिखित सेवाएँ उपलब्ध कराने में सक्षम बनाना है:
- पूरे भारत में 4जी और 5जी सेवाएँ।
- ग्रामीण और कवर नहीं किये गए गाँवों में 4जी कवरेज।
- फिक्स्ड वायरलेस एक्सेस।
- कैप्टिव गैर-सार्वजनिक नेटवर्क (निजी उपयोग हेतु नेटवर्क) के लिये सेवाएँ/स्पेक्ट्रम।
- BSNL की अधिकृत पूंजी 1,50,000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2,10,000 करोड़ रुपए की जाएगी।
- अधिकृत पूंजी से तात्पर्य किसी कंपनी द्वारा अपने शेयरधारकों को जारी की जाने वाली शेयर पूंजी की अधिकतम राशि से है।
- हाल के वर्षों में यह इस तरह का तीसरा पुनरुद्धार पैकेज है।
- वर्ष 2019 में मंत्रिमंडल ने 69,000 करोड़ रुपए के पैकेज को मंज़ूरी दी थी। इसमें निम्नलिखित के लिये प्रावधान किया गया था:
- BSNL और MTNL का सैद्धांतिक विलय।
- 4जी स्पेक्ट्रम आवंटन के लिये पूंजी निवेश।
- स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना की लागत।
- इसके बाद वर्ष 2022 में 1.64 लाख करोड़ रुपए का एक और पैकेज आया।
- दूसरे पैकेज में निम्नलिखित के लिये प्रावधान किया गया:
- चालू और 4जी सेवाओं के लिये स्पेक्ट्रम का आवंटन।
- इक्विटी में रूपांतरण द्वारा 33,404 करोड़ रुपए के वैधानिक बकाए का निपटान।
- पूंजीगत व्यय के लिये वित्तीय सहायता।
- दूसरे पैकेज में निम्नलिखित के लिये प्रावधान किया गया:
सूचना सुरक्षा संबंधी कार्य पद्धतियों पर दिशा-निर्देश
- भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT-In) ने सरकारी संस्थाओं के लिये सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत "सूचना सुरक्षा संबंधी कार्य पद्धतियों पर दिशा-निर्देश" जारी किये।
- अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा CERT-In को साइबर सुरक्षा घटनाओं के लिये राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया है। यह साइबर सुरक्षा मामलों से निपटने और सुरक्षा संबंधी कार्य पद्धतियों, ऐसे मामलों की रोकथाम तथा रिपोर्टिंग से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- ये दिशा-निर्देश सभी मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और अन्य सरकारी एजेंसियों पर लागू होंगे।
दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- नीतिगत उपाय:
- संगठनों को एक साइबर सुरक्षा नीति बनानी चाहिये और आईटी सुरक्षा के लिये एक मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारी को नामित करना चाहिये।
- अधिकारी के पास एक समर्पित साइबर सुरक्षा टीम होनी चाहिये।
- सूचना और संचार प्रौद्योगिकी अवसंरचना के लिये आंतरिक और बाह्य ऑडिट किये जाने चाहिये।
- समय-समय पर सुरक्षा ऑडिट और जोखिम मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
- साइबर सुरक्षा के मामलों को रोकने और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने के लिये एक मामला प्रबंधन योजना बनाई जानी चाहिये।
- संगठन को प्रत्येक साइबर सुरक्षा मामले का पता चलने के छह घंटे के भीतर CERT-In को इसकी सूचना देनी होगी।
- डेटा सुरक्षा:
- संगठनों को डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कुछ उपाय करने चाहिये।
- इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- व्यक्तिगत डेटा और संवेदनशील डेटा की पहचान करना और उसे एन्क्रिप्ट करना
- डेटा उल्लंघनों का पता लगाने के लिये उपकरण तैनात करना।
- डेटा उल्लंघनों की निगरानी के लिये तीसरे पक्ष का मूल्यांकन करना।
- डेटा बैकअप नीति लागू करना।
- जानकारी तक तीसरे पक्ष की पहुँच प्रतिबंधित होनी चाहिये और ऐसा केवल तीसरे पक्ष के साथ गैर-प्रकटीकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद ही किया जाना चाहिये।
- नेटवर्क और बुनियादी ढाँचा:
- इंटरनेट, अविश्वसनीय नेटवर्क और व्यवसायों द्वारा उपयोग किये जाने वाले नेटवर्क के बीच एक बफर ज़ोन बनाने के लिये फायरवॉल तैनात किया जाना चाहिये।
- नेटवर्क मापदंडों को पोर्ट, प्रोटोकॉल और ट्रैफिक फिल्टर करने वाले एप्लीकेशंस तक नियंत्रित एक्सेस द्वारा प्रबंधित किया जाना चाहिये।
- इसके अलावा नेटवर्क घुसपैठ और रोकथाम प्रणालियाँ तैनात की जानी चाहिये।
- CERT-In और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पहचाने तथा साझा किये गए दुर्भावनापूर्ण इंटरनेट प्रोटोकॉल एवं डोमेन को मॉनीटर/ब्लॉक किया जाना चाहिये।
कृषि
उर्वरकों पर सब्सिडी
- आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने किसानों के लिये सब्सिडी वाले उर्वरक उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कई योजनाओं को मंज़ूरी दी है।
- इनसे उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करने, किसानों के लिये इनपुट लागत कम करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने की उम्मीद है।
योजनाओं की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
- यूरिया सब्सिडी योजना:
- किसानों के उपयोग के लिये यूरिया और नाइट्रोजन जैसे उर्वरकों पर सब्सिडी दी जाती है।
- कैबिनेट ने यूरिया सब्सिडी को वर्ष 2024-25 तक बढ़ाने को मंज़ूरी दे दी है। इसके लिये तीन वर्षों (वर्ष 2022-23 से 2024-25) में 3.68 लाख करोड़ रुपए के खर्च की आवश्यकता होगी।
- किसानों को 242 रुपए प्रति बैग यानी 45 किलोग्राम (करों को छोड़कर) यूरिया मिलती रहेगी।
- केंद्र सरकार को उम्मीद है कि योजना जारी रहने से यूरिया का अधिकतम स्वदेशी उत्पादन होगा।
- केंद्रीय बजट में केंद्र सरकार ने 2023-24 में यूरिया सब्सिडी पर 1.31 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का अनुमान लगाया था, जिसमें से 24% आयात पर खर्च किया जाना है।
- इसके अलावा आठ नैनो-यूरिया संयंत्र वर्ष 2025-26 तक चालू हो जाएंगे।
- संयंत्रों की उत्पादन क्षमता 44 करोड़ बोतलों की होगी, जो 195 लाख मीट्रिक टन पारंपरिक यूरिया के बराबर है। नैनो उर्वरकों (जैसे नैनो यूरिया) में उच्च पोषक तत्त्व उपयोग दक्षता होती है और किसानों के लिये लागत कम होती है।
- देश में सल्फर-लेपित यूरिया (यूरिया गोल्ड) पेश की जाएगी।
- इसे वर्तमान में इस्तेमाल होने वाले नीम-लेपित यूरिया की तुलना में अधिक किफायती और कुशल माना जाता है।
- देश में सल्फर-लेपित यूरिया (यूरिया गोल्ड) पेश की जाएगी।
- इससे मिट्टी में सल्फर की कमी भी दूर होने की उम्मीद है।
- संयंत्रों की उत्पादन क्षमता 44 करोड़ बोतलों की होगी, जो 195 लाख मीट्रिक टन पारंपरिक यूरिया के बराबर है। नैनो उर्वरकों (जैसे नैनो यूरिया) में उच्च पोषक तत्त्व उपयोग दक्षता होती है और किसानों के लिये लागत कम होती है।
- जैविक उर्वरकों को बढ़ावा:
- कैबिनेट ने जैविक उर्वरकों की मार्केटिंग के लिये एक योजना को भी मंज़ूरी दी।
- इसमें फर्मेंटेड जैविक खाद और फॉस्फेट युक्त जैविक खाद शामिल हैं।
- प्रति मीट्रिक टन 1,500 रुपए की बाज़ार विकास सहायता प्रदान की जाएगी।
- योजना पर कुल अपेक्षित परिव्यय 1,452 करोड़ रुपए होने का अनुमान है।
- इस योजना से फसल अवशेषों के प्रबंधन, पराली जलाने और किसानों को आय का अतिरिक्त स्रोत प्रदान करने जैसी चुनौतियों के हल होने की उम्मीद है।
गन्ने की कीमतों को मंज़ूरी
- आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने चीनी सीज़न (अक्तूबर-सितंबर) 2023-24 में गन्ने के लिये उचित और लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price- FRP) 315 रुपए प्रति क्विंटल को मंज़ूरी दी है।
- यह वर्ष 2022-23 चीनी सीज़न के FRP (305 रुपए प्रति क्विंटल) में लगभग 3% की वृद्धि है।
- FRP वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर चीनी मिलें किसानों से गन्ना खरीद सकती हैं।
- FRP, रिकवरी दर के आधार पर भिन्न होता है।
- रिकवरी दर गन्ने से प्राप्त चीनी की मात्रा को दर्शाती है।
- 10.25% की मूल रिकवरी दर के लिये 315 रुपए प्रति क्विंटल FRP देय होगा।
- 10.25% की सीमा से रिकवरी दर में प्रत्येक 0.1% वृद्धि/कमी के लिये 3.07 रुपए प्रति क्विंटल के प्रीमियम/छूट का भुगतान किया जाएगा।
- 9.5% से कम की रिकवरी दर पर किसानों को न्यूनतम सुनिश्चित मूल्य 292 रुपए प्रति क्विंटल मिलेगा।
- FRP वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर चीनी मिलें किसानों से गन्ना खरीद सकती हैं।
खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य
- आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने विपणन सीज़न वर्ष 2023-24 (अक्तूबर से सितंबर) में अनिवार्य खरीफ फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि को मंज़ूरी दे दी है।
- धान का MSP 7% बढ़ाया गया है। मूँग, तिल और लंबे रेशे वाली कपास जैसी फसलों के MSP में सबसे अधिक वृद्धि (प्रत्येक में 10%) देखी गई है।
- MSP का तात्पर्य उस सुनिश्चित मूल्य से है जिस पर केंद्र सरकार द्वारा किसानों से फसल खरीदी जाती है।
खरीफ फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य वर्ष 2023-24 (रुपए प्रति क्विंटल में)
फसल |
न्यूनतम समर्थन मूल्य 2022-23 |
न्यूनतम समर्थन मूल्य 2023-24 |
% परिवर्तन |
मूँग |
7,755 |
8,558 |
10% |
तिल |
7,830 |
8,635 |
10% |
कपास (लंबा रेशा) |
6,380 |
7,020 |
10% |
मूँगफली |
5,850 |
6,377 |
9% |
कपास (मध्यम रेशा) |
6,080 |
6,620 |
9% |
ज्वार- मालदांडी |
2,990 |
3,225 |
8% |
ज्वार- हाइब्रिड |
2,970 |
3,180 |
7% |
धान-सामान्य |
2,040 |
2,183 |
7% |
रागी |
3,578 |
3,846 |
7% |
मक्का |
1,962 |
2,090 |
7% |
सोयाबीन (पीली) |
4,300 |
4,600 |
7% |
बाजरा |
2,350 |
2,500 |
6% |
तुअर/अरहर |
6,600 |
7,000 |
6% |
सूरजमुखी के बीज |
6,400 |
6,760 |
6% |
रामतिल |
7,287 |
7,734 |
6% |
उड़द |
6,600 |
6,950 |
5% |
ऊर्जा
विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) संशोधन नियम, 2023
- ऊर्जा मंत्रालय ने विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) संशोधन नियम, 2023 जारी किये हैं।
- नियम विद्युत उपभोक्ताओं के अधिकारों और दायित्वों को निर्दिष्ट करते हैं।
- ये सेवा के मानकों, मीटरिंग और बिलों के भुगतान जैसे विषयों से संबंधित हैं।
- संशोधित नियम टाइम-ऑफ-डे टैरिफ की शुरुआत को अनिवार्य करते हैं, यानी ऐसे शुल्क जो समय के आधार पर भिन्न होते हैं।
- यह स्वीकृत भार (लोड) से अधिक मांग की स्थिति में बिलों की गणना के लिये एक तंत्र भी प्रदान करता है।
- स्वीकृत भार विद्युत की वह अधिकतम मात्रा होती है जिसे एक वितरक उपभोक्ता को आपूर्ति करने के लिये सहमत हुआ है।
- टाइम-ऑफ-डे टैरिफ अनिवार्य:
- संशोधनों में कृषि उपभोक्ताओं को छोड़कर खुदरा उपभोक्ताओं के लिये टाइम-ऑफ-डे टैरिफ लागू करना अनिवार्य है।
- टाइम-ऑफ-डे टैरिफ का तात्पर्य यह है कि एक ही दिन के दौरान टैरिफ अलग-अलग समय पर भिन्न हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिये पीक ऑवर्स के दौरान टैरिफ अधिक हो सकते हैं और सौर घंटों के दौरान कम हो सकते हैं (जब सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है)।
- यह निम्नलिखित से प्रभावी होगा:
- 10 किलोवाट तक की अधिकतम मांग वाले औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं के लिये 1 अप्रैल, 2024।
- अन्य उपभोक्ताओं के लिये 1 अप्रैल, 2025। स्मार्ट मीटर वाले उपभोक्ताओं हेतु यह तुरंत लागू होगा।
- टाइम-ऑफ-डे टैरिफ के लिये सीमा:
- टाइम-ऑफ-डे टैरिफ ऊर्जा शुल्क पर लागू होंगे।
- ऊर्जा शुल्क एक बिलिंग चक्र में खपत की गई कुल ऊर्जा के आधार पर देय होता है।
- दिन के समय का टैरिफ इससे कम नहीं होना चाहिये:
- औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं के लिये सामान्य टैरिफ का 1.2 गुना।
- अन्य उपभोक्ताओं के लिये 1.1 गुना।
- सौर घंटों के दौरान टैरिफ सामान्य टैरिफ से कम-से-कम 20% कम होना चाहिये।
- पीक आवर्स सौर घंटों से अधिक लंबे नहीं होने चाहिये।
- बिलिंग के उद्देश्य के लिये स्वीकृत भार का प्रबंध:
- 2020 के नियमों में मीटर लगाना अनिवार्य है।
- संशोधनों में निर्दिष्ट किया गया है कि स्मार्ट मीटर लगाने पर उस स्थिति में कोई ज़ुर्माना नहीं लगाया जाएगा, अगर वास्तव में दर्ज की गई अधिकतम मांग स्वीकृत भार से अधिक है।
- बिलिंग के लिये वास्तव में दर्ज की गई अधिकतम मांग को स्वीकृत भार माना जाएगा।
- अधिक स्वीकृत भार पर अधिक टैरिफ स्लैब लग सकता है।
- स्वीकृत भार में संशोधन:
- अगर मासिक अधिकतम मांग एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम तीन बार स्वीकृत भार से अधिक हो जाती है, तो वितरण कंपनी द्वारा स्वीकृत भार को संशोधित किया जाएगा।
- नया स्वीकृत भार मासिक अधिकतम मांग में से सबसे कम होगा।
- तद्नुसार, अधिकतम भार कम होने पर वितरण कंपनी स्वीकृत भार को संशोधित कर सकती है।
संसाधन पर्याप्तता योजना
- ऊर्जा मंत्रालय ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority- CEA) के परामर्श से विद्युत क्षेत्र के लिये संसाधन पर्याप्तता योजना पर दिशा-निर्देश जारी किये।
- संसाधन पर्याप्तता योजना न्यूनतम संभव लागत पर 24x7 बिजली की मांग को पूरा करने के लिये इष्टतम क्षमता निर्धारित करती है।
दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- संसाधन पर्याप्तता पर दीर्घकालीन राष्ट्रीय योजना:
- CEA एक दीर्घकालिक राष्ट्रीय संसाधन पर्याप्तता योजना प्रकाशित करेगा।
- यह योजना विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर इष्टतम क्षमता की आवश्यकता का निर्धारण करेगी।
- यह राष्ट्रीय चरम मांग के लिये राज्यवार योगदान को निर्दिष्ट करेगी।
- इसके अलावा योजना 10 वर्षों के लिये इष्टतम उत्पादन प्रदान करेगी।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कम-से-कम लागत पर राष्ट्रीय स्तर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये संसाधन उपलब्ध हों।
- यह योजना प्रतिवर्ष अपडेट की जाएगी।
- डिस्कॉम्स द्वारा संसाधन पर्याप्तता योजना:
- राष्ट्रीय स्तर पर बिजली की चरम मांग में हिस्सेदारी के आधार पर क्षमताओं की योजना बनानी होगी।
- प्रत्येक वितरण लाइसेंसधारी (डिस्कॉम) को राष्ट्रीय चरम मांग या उससे अधिक की अपनी हिस्सेदारी को पूरा करने के लिये क्षमताओं का अनुबंध करने की आवश्यकता होगी।
- इस उद्देश्य के लिये केवल दीर्घकालिक, मध्यम अवधि और अल्पकालिक अनुबंध वाले संसाधनों पर ही विचार किया जाएगा।
- पावर एक्सचेंजों के माध्यम से खरीदी गई बिजली को संसाधन पर्याप्तता योजना के तहत नहीं माना जाएगा।
- लंबी अवधि के अनुबंधों की हिस्सेदारी 75-80% और मध्यम अवधि के अनुबंधों की हिस्सेदारी 10-20% होगी।
- अनुशंसित हिस्सेदारी को राज्य विद्युत नियामक आयोगों द्वारा बदला जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त प्रत्येक डिस्कॉम 10 वर्ष की अवधि के लिये संसाधन पर्याप्तता योजना अपनाएगा।
- इस योजना की जाँच CEA द्वारा की जाएगी और इसे राज्य विद्युत नियामक आयोग द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये।
- संसाधन पर्याप्तता पर अल्पावधि की योजनाएँ:
- नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) एक वार्षिक अल्पकालिक राष्ट्रीय संसाधन पर्याप्तता योजना प्रकाशित करेगा।
- यह मांग पूर्वानुमान, नियोजित रख-रखाव कार्यक्रम, स्टेशन-वार ऐतिहासिक आउटेज दरें और उत्पादकों की डीकमीशनिंग जैसे मानदंड प्रदान करेगा।
- राज्य लोड डिस्पैच केंद्र NLDC द्वारा विकसित राष्ट्रीय स्तर की योजना के आधार पर अल्पकालिक वितरण संसाधन पर्याप्तता के लिये एक वार्षिक योजना बनाएंगे।
पंप भंडारण परियोजना
- केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) ने पंप भंडारण परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) पर सहमति के लिये प्रक्रिया को संशोधित किया है।
- इसके लिये CEA, केंद्रीय जल आयोग और भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण सहित कई प्राधिकरणों से सहमति आवश्यक होती है।
- अधिशेष विद्युत उपलब्ध होने पर पंप स्टोरेज/भंडारण परियोजनाएँ जलाशय में पानी को पंप करती हैं।
- विद्युत की कमी होने पर इस संग्रहीत पानी का उपयोग विद्युत पैदा करने के लिये किया जाता है। मुख्य परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- मंज़ूरी के लिये सिंगल विंडो:
- CEA ने पंप स्टोरेज परियोजना हेतु मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये सिंगल विंडो बनाई है।
- केंद्रीय जल आयोग और भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण परियोजनाओं के संबंधित पहलुओं को देखने और मंज़ूरी में तेज़ी लाने के लिये अधिकारियों को नामित करेंगे।
- सहमति के लिये कम समय-सीमा:
- उन पंप स्टोरेज परियोजनाओं के DPR पर सहमति प्राप्त करने का समय 90 दिन से घटाकर 50 दिन कर दिया गया है:
- जिनका टैरिफ प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से निर्धारित किया गया है।
- जिन्हें अक्षय ऊर्जा उत्पादन परियोजनाओं के साथ कर दिया गया है।
- जो कैप्टिव उद्देश्यों के लिये विकसित की जा रही हैं।
- अन्य पंप स्टोरेज परियोजनाओं के लिये समय सीमा 125 दिन से घटाकर 90 दिन कर दी गई है।
- उन पंप स्टोरेज परियोजनाओं के DPR पर सहमति प्राप्त करने का समय 90 दिन से घटाकर 50 दिन कर दिया गया है:
- पर्यावरणीय मंज़ूरी:
- मौजूदा जलाशयों पर पंप स्टोरेज परियोजनाओं के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की आवश्यकता नहीं होगी।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन से तात्पर्य पर्यावरण पर प्रस्तावित परियोजना/गतिविधि के प्रभाव के अनुमान का आकलन करने से है।
- मंज़ूरी के लिये सिंगल विंडो:
कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, 2023
- ऊर्जा मंत्रालय ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना, 2023 को अधिसूचित किया है।
- कार्बन क्रेडिट का तात्पर्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये एक निर्दिष्ट मूल्य से है।
- कार्बन क्रेडिट जारी करना:
- ऊर्जा मंत्रालय, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के सुझावों के आधार पर ट्रेडिंग योजना का अनुपालन करने के लिये बाध्य संस्थाओं को अधिसूचित करेगा।
- ऊर्जा मंत्रालय के सुझाव पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय बाध्य संस्थाओं के लिये उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य को अधिसूचित करेगा।
- उत्सर्जन तीव्रता सकल घरेलू उत्पाद की प्रत्येक इकाई के लिये उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की कुल मात्रा है।
- यदि बाध्य संस्थाएँ उन्हें सौंपे गए लक्ष्य से आगे बढ़ जाती हैं तो वे कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र अर्जित करेंगी।
- प्रमाणपत्र BEE द्वारा जारी किया जाएगा।
- अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ बाध्य संस्थाओं को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र खरीदकर कमी को पूरा करना होगा।
- गैर-बाध्यकारी संस्थाएँ भी योजना के तहत पंजीकरण कर सकती हैं और स्वेच्छा से अनुपालन कर सकती हैं।
- कार्बन क्रेडिट का व्यापार:
- इस उद्देश्य के लिये केंद्रीय विद्युत रेगुलेटरी आयोग (CERC) के साथ पंजीकृत बिजली एक्सचेंजों पर कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों का कारोबार किया जाएगा।
- CERC कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग गतिविधियों को भी विनियमित करेगा।
- बाध्य या गैर-बाध्यकारी संस्थाओं का पंजीकरण करेगा।
- लेन-देन का रिकॉर्ड बनाएगा तथा उन्हें पावर एक्सचेंजों और BEE के साथ साझा करेगा।
- प्रशासनिक तंत्र:
- केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन करेगी जो समग्र कार्बन बाज़ार के प्रशासन और निगरानी के लिये ज़िम्मेदार होगी।
- समिति की अध्यक्षता बिजली सचिव करेंगे और इसमें पर्यावरण एवं इस्पात सहित कई मंत्रालयों तथा BEE और GCIL सहित सरकारी संस्थाओं का प्रतिनिधित्व होगा।
- समिति के प्रमुख कार्यों में BEE को कुछ मामलों पर सुझाव देना शामिल है:
- कार्बन बाज़ार के लिये प्रक्रियाओं, नियमों और विनियमों का निर्माण।
- लक्ष्यों का निर्धारण और कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र जारी करना।
- BEE इस योजना का संचालन करेगा।
- इसके कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- उत्सर्जन में कमी के लिये क्षेत्रों और संभावनाओं की पहचान करना।
- कटौती के लिये ट्राजेक्टरी और लक्ष्य तय करना।
- कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र जारी करना।
वित्त
समझौता निपटान और तकनीकी राइट-ऑफ
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने समझौता निपटान और तकनीकी राइट-ऑफ के लिये एक रूपरेखा जारी की है।
- समझौता निपटान से तात्पर्य एक उधारकर्ता के खिलाफ किसी विनियमित इकाई (जैसे बैंक) के दावों को पूरी तरह से नकद में निपटाने की व्यवस्था से है।
- इसमें उधारकर्ता के बकाए का एक निश्चित प्रतिशत राइट-ऑफ हो सकता है। समझौता निपटान को ऋण पुनर्गठन के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
- तकनीकी राइट-ऑफ में उधारकर्ता के खिलाफ दावों में छूट के बिना विनियमित इकाई के खातों से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (ऋण) को राइट-ऑफ करना शामिल है।
- प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- निपटान के लिये नीति:
- समझौता निपटान और तकनीकी राइट-ऑफ हेतु विनियमित संस्थाओं के पास बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति होनी चाहिये।
- नीति में ऐसे निपटानों के लिये अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का प्रावधान होना चाहिये।
- समझौता निपटान के मामले में नीति को निपटान राशि तय करते समय, राइट-ऑफ का स्वीकृत स्तर का प्रावधान करना चाहिये।
- कूलिंग पीरियड:
- समझौता निपटान में शामिल उधारकर्ताओं के मामले में विनियमित संस्थाओं के नए ऋण प्रदान करने से पहले एक कूलिंग पीरियड होना चाहिये।
- कृषि ऋण के अलावा अन्य ऋणों हेतु यह कूलिंग पीरियड कम-से-कम 12 महीने का होना चाहिये।
- तकनीकी राइट-ऑफ के लिये कूलिंग पीरियड विनियमित संस्थाओं की बोर्ड-अनुमोदित नीतियों के अनुसार होगा।
- धोखाधड़ी वाले खाते:
- विनियमित संस्थाएँ धोखाधड़ी या जान-बूझकर चूक करने वालों के रूप में वर्गीकृत खातों के संबंध में समझौता निपटान या तकनीकी राइट-ऑफ कर सकती हैं।
- इससे देनदारों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
- निपटान के लिये नीति:
लिस्टिंग और प्रकटीकरण नियमों में संशोधन
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सेबी (सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएँ) (दूसरा संशोधन) विनियम, 2023 को अधिसूचित किया है।
- यह सेबी (सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएँ) विनियम, 2015 में संशोधन करता है।
- विनियम सूचीबद्ध संस्थाओं द्वारा कुछ जानकारियों के प्रकटीकरण के लिये रूपरेखा प्रदान करता है।
- संशोधनों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- मुख्य रिक्तियों को भरना:
- प्रमुख प्रबंधन कर्मियों (जैसे मुख्य कार्यकारी अधिकारी, प्रबंध निदेशक और पूर्णकालिक निदेशक) के कार्यालय में कोई भी रिक्ति तीन महीने के भीतर सूचीबद्ध संस्था द्वारा भरी जानी चाहिये।
- भौतिक घटनाओं का खुलासा: संशोधन सूचीबद्ध संस्थाओं द्वारा भौतिक घटनाओं के प्रकटीकरण के लिये सीमाएँ निर्दिष्ट करता है। सूचीबद्ध संस्थाओं को उन घटनाओं या सूचनाओं का खुलासा करना होगा जिनका मूल्य या मूल्य के संदर्भ में अपेक्षित प्रभाव निम्नलिखित में निम्नतम से अधिक हो जाता है:
- टर्नओवर का 2%।
- निवल मूल्य का 2%।
- पिछले तीन समेकित वित्तीय विवरणों के अनुसार कर के बाद लाभ या हानि के औसत का 5%।
- इसके अलावा त्रैमासिक अनुपालन रिपोर्ट में साइबर सुरक्षा के मामलों और डेटा उल्लंघनों के विवरण का उल्लेख किया जाना चाहिये।
- भौतिक घटनाओं के प्रकटीकरण हेतु समय-सीमा:
- 2015 के विनियमों में प्रावधान है कि सूचीबद्ध कंपनियों को 24 घंटों के भीतर स्टॉक एक्सचेंजों को कुछ घटनाओं का खुलासा करना होगा।
- संशोधित नियमों में प्रावधान है कि स्टॉक एक्सचेंजों को सभी महत्त्वपूर्ण जानकारी के बारे में सूचित किया जाना चाहिये:
- घटना घटित होने के 12 घंटे के भीतर, यदि यह कंपनी के भीतर घटित हो।
- अन्य मामलों में घटना घटित होने के 24 घंटे के भीतर। बोर्ड बैठकों के निर्णयों से मिलने वाली भौतिक जानकारी के बारे में बैठक के समापन के 30 मिनट के भीतर सूचित किया जाना चाहिये।
- रिपोर्ट की गई जानकारी का खुलासा:
- 2015 के रेगुलेशंस में प्रावधान है कि सूचीबद्ध कंपनियाँ स्टॉक एक्सचेंजों को रिपोर्ट की गई किसी भी घटना या जानकारी की पुष्टि या खंडन कर सकती हैं।
- 1 अक्तूबर, 2023 से शीर्ष 100 सूचीबद्ध संस्थाओं को 24 घंटों के भीतर मुख्यधारा मीडिया में किसी भी महत्त्वपूर्ण घटना या जानकारी की पुष्टि या खंडन करना होगा।
- 1 अप्रैल, 2024 से यह शीर्ष 250 सूचीबद्ध संस्थाओं पर लागू होगा।
- ऐसी संस्थाओं का निर्धारण उनके बाज़ार पूंजीकरण के आधार पर किया जाएगा।
- मुख्यधारा मीडिया का तात्पर्य समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों से है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के लिये कुछ अतिरिक्त खुलासे करना अनिवार्य कर दिया है।
- ये खुलासे उन FPI को करने होंगे:
- जिनके भारतीय इक्विटी निवेश का 50% से अधिक एक ही कॉरपोरेट समूह में है
- जो व्यक्तिगत रूप से या अपने निवेशक समूह के माध्यम से भारतीय बाज़ारों में 25,000 करोड़ रुपए से अधिक इक्विटी निवेश करते हैं।
- अतिरिक्त खुलासों में स्वामित्व, नियंत्रण और आर्थिक हित का विवरण शामिल है।
- प्रकटीकरण से छूट प्राप्त संस्थाओं में सरकार और संबंधित निवेशक, पेंशन फंड और कॉरपोरेट संस्थाएँ शामिल हैं जो कुछ शर्तों को पूरा करती हैं।
वाणिज्य
नागरिक उपयोग वाले ड्रोन के लिये निर्यात नीति
- विदेश व्यापार महानिदेशालय ने नागरिक उपयोग के लिये ड्रोन/मानवरहित हवाई वाहनों (Unmanned Aerial Vehicles- UAV) के निर्यात की नीति को उदार बना दिया है।
- पहले सभी ड्रोन/UAV के निर्यात को विशेष रसायन जीव सामग्री, उपकरण और प्रौद्योगिकी (Special Chemicals Organisms Materials, Equipment and Technology- SCOMET) सूची के अनुसार विनियमित किया जाता था।
- यह उन वस्तुओं पर लागू होता है जिनका नागरिक और सैन्य दोनों तरह से उपयोग होता है।
- सूची के अंतर्गत वस्तुओं के निर्यात के लिये प्राधिकरण की आवश्यकता होती है, जब तक कि उसके निर्यात पर प्रतिबंध है या कुछ शर्तों के अधीन प्राधिकरण के बिना उसकी अनुमति है।
- उदारीकृत नीति के साथ ड्रोन के निर्यात के लिये सामान्य ऑथराइज़ेशन के तहत 25 किलोग्राम तक के पेलोड के साथ 25 किमी. तक की रेंज वाले ड्रोन/UAV का निर्यात किया जा सकता है। इन्हें भी कुछ निर्दिष्ट श्रेणियों के अंतर्गत नहीं आना चाहिये।
- यह एक बार के सामान्य लाइसेंस के साथ किया जा सकता है जो तीन वर्ष के लिये वैध है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 में संशोधन को अधिसूचित किया।
- ये नियम सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत जारी किये गए हैं।
- यह अधिनियम सरोगेसी को विनियमित करता है। सेरोगेसी को एक ऐसी पद्धति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें एक महिला इच्छुक कपल या महिला के लिये बच्चे को जन्म देती है और जन्म के बाद बच्चे को उन्हें सौंपने के लिये सहमत होती है।
- अधिनियम में प्रावधान है कि सरोगेसी केवल उन कपल्स के लिये उपलब्ध होगी जिनकी कोई चिकित्सीय स्थिति है जिसके कारण वे माता-पिता बनने हेतु सरोगेसी पर निर्भर हैं।
- इसमें यह भी प्रावधान है कि भारतीय मूल के कपल्स या सरोगेसी का लाभ उठाने की इच्छुक महिला को सेरोगेसी का पात्र होने के लिये राष्ट्रीय असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी बोर्ड की सिफारिश हासिल करनी होगी।
- संबंधित अधिनियम और मौजूदा नियम दोनों ही "भारतीय मूल के कपल" को परिभाषित नहीं करते हैं।
- वर्ष 2023 का संशोधन भारतीय मूल के कपल को ऐसे कपल के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें पति और पत्नी, दोनों भारत के विदेशी नागरिक कार्डधारक हैं।
शिक्षा
UGC (समवत विश्वविद्यालय संस्थान) विनियम, 2023
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने UGC (समवत विश्वविद्यालय संस्थान) विनियम, 2023 जारी किये हैं।
- ये विनियम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 के तहत शैक्षणिक संस्थानों को मानद विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करने का प्रावधान करते हैं।
- वर्ष 2023 के विनियम UGC (समवत विश्वविद्यालय संस्थान) विनियम, 2019 के स्थान लेते हैं।
वर्ष 2023 के विनियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पात्रता मानदंड:
- एक विश्वविद्यालय की मान्यता के लिये संस्थान को कुछ पात्रता मानदंडों को पूरा करना होगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- कम-से-कम पाँच विभाग।
- राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) से मान्यता।
- 1:20 के बराबर या उससे कम विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात।
- कम-से-कम एक विषय में राष्ट्रीय संस्थान रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) में टॉप 50 रैंक।
- ये मानदंड 'विशिष्ट श्रेणी' संस्थानों के रूप में वर्गीकृत कुछ संस्थानों पर लागू नहीं होंगे।
- ये ऐसे संस्थान हैं जो अन्य मानदंडों को पूरा करते हैं, जैसे रणनीतिक आवश्यकताओं को पूरा करना या भारतीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना।
- 2023 के विनियम में क्लस्टर संस्थानों को एक विश्वविद्यालय माना गया है।
- ये संस्थानों के ऐसे समूह होते हैं जिनमें कम-से-कम पाँच विभाग होते हैं।
- एक विश्वविद्यालय की मान्यता के लिये संस्थान को कुछ पात्रता मानदंडों को पूरा करना होगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रशासनिक प्रणालियाँ:
- विश्वविद्यालय माने जाने वाले संस्थानों को एक शीर्ष निकाय, कार्यकारी परिषद द्वारा शासित किया जाना चाहिये। इसमें निम्नलिखित शामिल होंगे:
- कुलपति (वीसी)
- संकाय के दो डीन
- डीन के अलावा दो शिक्षक
- प्रायोजक निकाय के अधिकतम चार नामांकित व्यक्ति
- यूजीसी या राज्य सरकार या केंद्र सरकार का एक प्रतिनिधि
- परिषद की शक्तियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- शैक्षणिक पदों का निर्माण और नियुक्ति करना
- नियम बनाना
- कर्मचारियों पर नियमों को लागू करना।
- संस्थान में एक अकादमिक परिषद भी होगी जो प्रवेश और परीक्षाओं जैसे शैक्षणिक मामलों की निगरानी करेगी एवं नियम बनाएगी।
- यह विभागों और शिक्षण पदों के निर्माण तथा समाप्ति के संबंध में सुझाव भी दे सकती है।
- इसकी अन्य शक्तियों में डिग्री या डिप्लोमा के लिये पाठ्यक्रम निर्धारित करना शामिल है। इसके सदस्यों में वीसी, संकायों के डीन, 20 शिक्षक और छह विशेषज्ञ शामिल हैं।
- विश्वविद्यालय माने जाने वाले संस्थानों को एक शीर्ष निकाय, कार्यकारी परिषद द्वारा शासित किया जाना चाहिये। इसमें निम्नलिखित शामिल होंगे:
- प्रवेश:
- प्रवेश परीक्षा संस्थान के प्रॉस्पेक्टस में निर्दिष्ट तरीके पर आधारित होनी चाहिये।
- प्रवेश परीक्षा संस्थान या सरकारी परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित की जानी चाहिये।
- संस्थानों में भारत के संविधान और केंद्रीय कानूनों के अनुसार आरक्षण नीतियाँ होनी चाहिये।
माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा कोष का संचालन
- शिक्षा मंत्रालय ने माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा कोष (MUSK) की स्थापना को अधिसूचित किया।
- MUSK आयकर पर 4% स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर के माध्यम से एकत्रित धन प्राप्त करने के लिये एक फंड है। 4% उपकर में से 1% MUSK के लिये रखा जाएगा।
- इन फंडों का उपयोग माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिये किया जाएगा।
- यह एक गैर-व्यपगत आरक्षित निधि है।
- मंत्रालय ने लेखांकन प्रक्रियाएँ और खाता प्रविष्टियाँ करने का तरीका स्थापित किया है।
- उदाहरण के लिये किसी वित्तीय वर्ष में मस्क को हस्तांतरण में कमी को अगले वर्ष के लिये अनुदान की विस्तृत मांगों में पूरा किया जाना चाहिये।
- MUSK को आवंटित धनराशि को स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग तथा उच्च शिक्षा विभाग के बीच क्रमशः 40:60 के अनुपात में विभाजित किया जाता है।
- मंत्रालय ने ऐसी योजनाएँ और निकाय भी निर्दिष्ट किये हैं जिनके लिये MUSK फंड का उपयोग किया जाना है।
- इनमें समग्र शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय साधन-सह-मेरिट छात्रवृत्ति योजना शामिल है।
उपभोक्ता मामले
प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाओं के लिये नियमों में संशोधन
- उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम, 2021 में संशोधन अधिसूचित किये हैं।
- नियमों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत अधिसूचित किया गया है।
- अधिनियम प्रत्यक्ष बिक्री को प्रत्यक्ष विक्रेताओं के माध्यम से की जाने वाली वस्तुओं की बिक्री/विपणन के रूप में परिभाषित करता है।
- प्रत्यक्ष बिक्री किसी स्थायी खुदरा के माध्यम से नहीं की जाती और इसमें पिरामिड योजनाएँ भी शामिल नहीं हैं।
- नियम प्रत्यक्ष बिक्री संस्थाओं के दायित्वों और कर्तव्यों को निर्दिष्ट करते हैं।
- संशोधनों में प्रत्यक्ष बिक्री संस्था की परिभाषा को सीमित किया गया है।
- प्रत्यक्ष बिक्री संस्था को अब एक ऐसी संस्था के रूप में परिभाषित किया गया है जो संस्था द्वारा गठित प्रत्यक्ष विक्रेताओं के नेटवर्क के माध्यम से सामान बेचती है।
- प्रत्यक्ष विक्रेताओं के इस नेटवर्क को प्रतिफल प्राप्त करने के एकमात्र उद्देश्य के लिये सामान बेचना चाहिये।
- इससे पहले प्रत्यक्ष बिक्री संस्था को ऐसी संस्था के रूप में परिभाषित किया गया था जो प्रत्यक्ष विक्रेताओं के माध्यम से बिक्री करती है।