कानून प्रणाली में क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 343, राष्ट्रपति, अनुच्छेद 348 मेन्स के लिये:कानूनी प्रणाली में क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन का उद्घाटन किया।
- सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने न्याय प्रदान करने में आसानी के लिये कानूनी प्रणाली में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की वकालत की।
- उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि "न्याय में आसानी" के लिये नए कानूनों को स्पष्ट तरीके से और क्षेत्रीय भाषाओं में लिखा जाना चाहिये ताकि गरीब भी उन्हें आसानी से समझ सकें एवं कानूनी भाषा नागरिकों के लिये बाधा न बने।
कानूनी प्रणाली में भाषाओं की पृष्ठभूमि:
- पृष्ठभूमि:
- भारत में न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा ने मुगल काल के दौरान उर्दू से फारसी और फारसी लिपियों में बदलाव के साथ सदियों से एक संक्रमण देखा है जो ब्रिटिश शासन के दौरान भी अधीनस्थ न्यायालयों में जारी रहा।
- अंग्रेज़ों ने भारत में राजभाषा के रूप में अंग्रेज़ी के साथ कानून की एक संहिताबद्ध प्रणाली की शुरुआत की।
- स्वतंत्रता के बाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 में प्रावधान किया गया है कि संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी।
- हालाँकि यह अनिवार्य किया गया है कि भारत के संविधान के प्रारंभ होने के बाद 15 वर्षों तक संघ के सभी आधिकारिक उद्देश्यों हेतु अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग जारी रहेगा।
- यह आगे प्रावधान करता है कि राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान अंग्रेज़ी भाषा के अलावा संघ के किसी भी आधिकारिक उद्देश्य के लिये हिंदी भाषा के उपयोग को अधिकृत कर सकता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 348 (1) (A), इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक सर्वोच्च न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय के समक्ष सभी कार्यवाही अंग्रेज़ी में की जाएगी।
- अनुच्छेद 348 (2) यह भी प्रावधान करता है कि अनुच्छेद 348 (1) के प्रावधानों के बावजूद किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिंदी या किसी भी आधिकारिक उद्देश्य के लिये इस्तेमाल की जाने वाली किसी अन्य भाषा के उपयोग को अधिकृत कर सकता है।
- उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश राज्यों ने पहले ही अपने-अपने उच्च न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही में हिंदी के उपयोग को अधिकृत कर दिया है और तमिलनाडु भी अपने उच्च न्यायालय के समक्ष तमिल भाषा के उपयोग को अधिकृत करने के लिये उसी दिशा में काम कर रहा है
- एक अन्य प्रावधान में यह कहा गया है कि इस खंड का कोई भी भाग उच्च न्यायालय द्वारा किये गए किसी भी निर्णय, डिक्री या आदेश पर लागू नहीं होगा।
- इसलिये संविधान इस चेतावनी के साथ अंग्रेज़ी को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की प्राथमिक भाषा के रूप में मान्यता देता है कि भले ही उच्च न्यायालयों की कार्यवाही में किसी अन्य भाषा का उपयोग किया जाए लेकिन उच्च न्यायालयों के निर्णय अंग्रेज़ी में दिये जाने चाहये।
- राजभाषा अधिनियम 1963:
- राजभाषा अधिनियम- 1963 राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए निर्णयों, पारित आदेशों में हिंदी अथवा राज्य की किसी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति दे सकता है, परंतु इसके साथ ही इसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी संलग्न करना होगा।
- यह प्रावधान करता है कि जहाँ कोई निर्णय/आदेश ऐसी किसी भी भाषा में पारित किया जाता है, तो उसके साथ उसका अंग्रेज़ी में अनुवाद होना चाहिये।
- यदि इसे संवैधानिक प्रावधानों के साथ पढ़ें तो यह स्पष्ट है कि इस अधिनियम द्वारा भी अंग्रेज़ी को प्रधानता दी गई है।
- राजभाषा अधिनियम में सर्वोच्च न्यायालय का कोई उल्लेख नहीं है,जहाँ अंग्रेज़ी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें कार्यवाही की जाती है।
- अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा:
- उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ सभी न्यायालयों की भाषा आमतौर पर वही रहती है जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये जाने तक सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रारंभ पर भाषा के रूप में होती है।
- अधीनस्थ न्यायालयों में भाषा के प्रयोग के संबंध में प्रावधान में यह शामिल है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 137 के तहत ज़िला न्यायालयों की भाषा अधिनियम की भाषा के समान होगी।
- राज्य सरकार के पास न्यायालय की कार्यवाही के विकल्प के रूप में किसी भी क्षेत्रीय भाषा को घोषित करने की शक्ति है।
- हालाँकि मजिस्ट्रेट द्वारा अंग्रेज़ी में निर्णय, आदेश और डिक्री पारित की जा सकती है।
- साक्ष्यों को दर्ज करने का कार्य राज्य की प्रचलित भाषा में किया जाएगा।
- अभिवक्ता के अंग्रेज़ी से अनभिज्ञ होने की स्थिति में उसके अनुरोध पर अदालत की भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराया जाएगा और इस तरह की लागत अदालत द्वारा वहन की जाएगी।
- दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 272 में कहा गया है कि राज्य सरकार उच्च न्यायालयों के अलावा अन्य सभी न्यायालयों की भाषा का निर्धारण करेगी। मोटे तौर पर इसका तात्पर्य यह है कि ज़िला अदालतों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा राज्य सरकार के निर्देशानुसार क्षेत्रीय भाषा होगी।
कानूनी प्रणाली में अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग करने के कारण:
- परिचय:
- जिस तरह पूरे देश से मामले सर्वोच्च न्यायालय में आते हैं, उसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के जज और वकील भी भारत के सभी हिस्सों से आते हैं।
- न्यायाधीशों से शायद ही उन भाषाओं में दस्तावेज़ पढ़ने और तर्क सुनने की उम्मीद की जा सकती है जिनसे वे परिचित नहीं हैं।
- अंग्रेज़ी के प्रयोग के बिना अपने कर्तव्य का निर्वहन करना असंभव होगा। सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय भी अंग्रेज़ी में दिये जाते हैं।
- हालाँकि वर्ष 2019 में न्यायालय ने अपने निर्णयों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिये एक पहल की शुरुआत की, बल्कि यह एक लंबा आदेश है, जो न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों की भारी मात्रा को देखते हुए दिया गया है।
- अंग्रेज़ी का उपयोग करने का महत्त्व:
- एकरूपता: वर्तमान में भारत में न्यायिक प्रणाली पूरे देश में अच्छी तरह से विकसित, एकीकृत और एक समान है।
- आसान पहुँच: वकीलों के साथ-साथ न्यायाधीशों को समान कानूनों और कानून व संविधान के अन्य मामलों पर अन्य उच्च न्यायालयों के विचारों तक आसान पहुँच का लाभ मिलता है।
- निर्बाध स्थानांतरण: वर्तमान में एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अन्य उच्च न्यायालयों में निर्बाध रूप से स्थानांतरित किया जाता है।
- एकीकृत संरचना: इसने भारतीय न्यायिक प्रणाली को एक एकीकृत संरचना प्रदान की है। किसी भी मज़बूत कानूनी प्रणाली की पहचान यह है कि कानून निश्चित, सटीक और अनुमानित होना चाहिये तथा हमने भारत में इसे लगभग हासिल कर लिया है।
- संपर्क भाषा: बहुत हद तक हम अंग्रेज़ी भाषा के लिये ऋणी हैं, जिसने भारत के लिये एक संपर्क भाषा के रूप में कार्य किया है जहाँ हमारे पास लगभग दो दर्जन आधिकारिक राज्य भाषाएँ हैं।
आगे की राह:
- अब आवश्यकता है कि न्यायालयों में स्थानीय भाषा के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए, इससे न केवल आम नागरिकों का न्याय व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा, बल्कि वे अधिक जुड़ाव महसूस करेंगे।
- भारत स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है, एक ऐसी न्यायिक प्रणाली के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये जहाँ न्याय सरलता से सभी को त्वरित और समान रूप से उपलब्ध हो।
- न्यायपालिका और विधायिका का समन्वय देश में प्रभावी और समयबद्ध न्यायिक व्यवस्था का खाका तैयार करेगा।