उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश संशोधन विधेयक 2021
प्रिलिम्स के लिये:उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:कॉलेजियम प्रणाली का परिचय, आवश्यकता, आलोचना एवं सुधार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 ’लोकसभा में पेश किया गया था।
- यह विधेयक ‘उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1954’ और ‘उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1958’ में संशोधन करना चाहता है।
प्रमुख बिंदु
- विधेयक के विषय में:
- विधेयक यह स्पष्ट करने का प्रयास करता है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर कब पेंशन या पारिवारिक पेंशन की अतिरिक्त मात्रा पाने के हकदार होते हैं।
- विधेयक स्पष्ट करता है कि एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद सेवानिवृत्त होने वाले न्यायाधीशों की पेंशन में वृद्धि उस महीने के पहले दिन से लागू की जाएगी जिसमें वे निर्दिष्ट आयु पूरी करते हैं, न कि उनके द्वारा निर्दिष्ट आयु में प्रवेश करने के पहले दिन से।
- मौजूदा प्रावधान:
- उच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1954 तथा सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1958 उच्च न्यायालयों एवं भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और सेवा की शर्तों को विनियमित करते हैं।
- उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन अधिनियम, 2009 के माध्यम से क्रमशः धारा 16B और धारा 17B को शामिल किया गया (1954 के अधिनियम और 1958 के अधिनियम में)।
- वर्ष 2009 के अधिनियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उसकी मृत्यु के बाद उसका परिवार निर्दिष्ट पैमाने के अनुसार अतिरिक्त पेंशन या पारिवारिक पेंशन पाने का हकदार होगा।
- तद्नुसार, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को 80 वर्ष, 85 वर्ष, 90 वर्ष, 95 वर्ष और 100 वर्ष, जैसा भी मामला हो, की आयु पूरी करने पर पेंशन की अतिरिक्त राशि प्रदान की जा जाती है।
- अतिरिक्त मात्रा आयु के साथ बढ़ती है (पेंशन या पारिवारिक पेंशन के 20% से 100% तक)।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश:
- संविधान का अनुच्छेद 217: यह कहता है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI), राज्य के राज्यपाल के परामर्श से की जाएगी।
- मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किया जाता है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।
- परामर्श प्रक्रिया: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश एक कॉलेजियम द्वारा की जाती है जिसमें CJI और दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- यह प्रस्ताव दो वरिष्ठतम सहयोगियों के परामर्श से संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिया जाता है।
- सिफारिश मुख्यमंत्री को भेजी जाती है, जो केंद्रीय कानून मंत्री को इस प्रस्ताव को राज्यपाल के पास भेजने की सलाह देता है।
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति इस नीति के आधार पर की जाती है कि राज्य का मुख्य न्यायाधीश संबंधित राज्य से बाहर का होगा।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश:
- संविधान का अनुच्छेद 124:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 124 के खंड (2) के तहत की जाती है।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर सेवानिवृत्त होते हैं।
- उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालयों के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से विचार-विमर्श करने के पश्चात् ही राष्ट्रपति को परामर्श देगा।
- अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI और सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों से परामर्श करने के बाद की जाती है जिन्हें वह आवश्यक समझता है। मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना अनिवार्य है।
- सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता CJI द्वारा की जाती है और इसमें सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व उसके मुख्य न्यायाधीश और उस न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
- 1950 से 1973 तक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति:
- सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की परंपरा रही है। वर्ष 1973 में इस परंपरा का उल्लंघन किया गया था जब तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों को छोड़कर ए.एन. रे को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। वर्ष 1977 में इसका पुनः उल्लंघन किया गया जब तत्कालीन 10 वरिष्ठतम न्यायाधीशों को छोड़कर एम.यू. बेग को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
- सरकार की इस स्वायत्तता को सर्वोच्च न्यायालय ने द्वितीय न्यायाधीश मामले (1993) में रद्द कर दिया था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिये।