नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट, शुद्ध शून्य उत्सर्जन, 2070 तक भारत का शुद्ध शून्य लक्ष्य, कोप-26, अक्षय ऊर्जा लक्ष्य।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के लाभ और संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) तथा केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti) द्वारा संयुक्त रूप से वानिकी संबंधी पहलों के माध्यम से 13 प्रमुख नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Report- DPR) जारी की गई है।

  • 13 प्रमुख नदियों में झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

DPRs के पीछे का विचार:

  • इसे वर्ष 2015-16 में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG) के हिस्से के रूप में किये गए कार्यों की तर्ज पर यह स्वीकार करते हुए तैयार किया गया है कि बढ़ता जल संकट नदी के पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण का कारण है।
  • यह परियोजना रिपोर्ट एक बहु-स्तरीय, बहु-हितधारक, बहु-विषयक और समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है ताकि 'अविरल धारा' (Uninterrupted Flow), 'निर्मल धारा' (Clean Water) और पारिस्थितिक कायाकल्प के व्यापक उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।

शामिल क्षेत्र/परिदृश्य:

  • 13 नदियांँ सामूहिक रूप से 18,90,110 वर्ग किमी. के कुल बेसिन क्षेत्र को आच्छादित करती हैं जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 57.45 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
  • परियोजना के अंतर्गत 202 सहायक नदियों सहित 13 नदियों की कुल लंबाई 42,830 किमी. है।
    • ब्रह्मपुत्र रिवरस्केप में सर्वाधिकसहायक नदियाँ (30) और 1,54,456 वर्ग किमी. का क्षेत्र शामिल हैं।
  • दस्तावेज़ों में नदियों के परिदृश्य में वानिकी पहलों का प्रस्ताव किया गया है जिसमे लकड़ी की प्रजातियों, औषधीय पौधों, घास, झाड़ियों व ईंधन, चारा और फलों वाले पेड़ों सहित वानिकी वृक्षारोपण के विभिन्न मॉडलों द्वारा जल स्तर को बढ़ाना, भूजल में वृद्धि के साथ ही क्षरण को रोकना शामिल है।

नियोजित हस्तक्षेप:

  • DPR तीन प्रकार के परिदृश्यों में वानिकी हस्तक्षेप और आर्द्रभूमि प्रबंधन के लिये एक समग्र रिवरस्केप दृष्टिकोण अपनाने की क्षमता की पहचान करती है।
  • ये कार्य नीति स्तरीय हस्तक्षेप, रणनीतिक और अनुकूली अनुसंधान, क्षमता विकास, जागरूकता निर्माण, परियोजना प्रबंधन एवं भागीदारी निगरानी तथा मूल्यांकन जैसी सहायक गतिविधियों के साथ किये जाते हैं।

प्रस्तावित हस्तक्षेपों के संभावित लाभ:

  • वन आवरण में वृद्धि:
    • इससे 13 नदियों के परिदृश्य में 7,417.36 वर्ग किमी. के संचयी वन क्षेत्र में वृद्धि होने की संभावना है।
  • CO2 के पृथक्करण में सहायता:
    • प्रस्तावित हस्तक्षेप से 10 साल पुराने वृक्षारोपण से 50.21 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड और 20 साल पुराने वृक्षारोपण से 74.76 मिलियन कार्बन डाइऑक्साइड कम करने में मदद मिलेगी।
  • भूजल पुनर्भरण में सहायता:
    • वे भूजल पुनर्भरण में मदद के साथ अवसादन को कम करेंगे, इसके अलावा गैर-लकड़ी और अन्य वन उपज से 449.01 करोड़ रुपए की आय होने की संभावना है।
  • रोज़गार सृजन:
    • उनसे लगभग 344 मिलियन मानव-दिवस कार्य के माध्यम से रोज़गार सृजन की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान की भी संभावना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना:
    • इन प्रयासों से भारत को अपनी अंतर्राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी:
      • संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन CO2 समकक्ष का एक अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना;
      • वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर खराब पड़ी भूमि को पुनर्स्थापित करना।
      • कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) और सतत् विकास लक्ष्यों के तहत वर्ष 2030 तक जैव विविधता के नुकसान को रोकना।
    • COP-26 में भारत ने वर्ष 2030 तक अपने अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक बिलियन टन कम करने, वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा के माध्यम से 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने, वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने, इसकी कार्बन तीव्रता को कम करने एवं वर्ष 2030 तक 45% अर्थव्यवस्था और वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का वादा किया।
    • बॉन चैलेंज के तहत भारत ने वर्ष 2015 में वर्ष 2030 तक 50 लाख हेक्टेयर निम्‍नीकृत भूमि को बहाल करने का भी वादा किया था।

विगत वर्षों के प्रश्न

‘मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” किसके द्वारा शुरू की गई एक पहल है? (2018)

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
(b) यूएनईपी सचिवालय
(c) यूएनएफसीसीसी सचिवालय
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: c

संबंधित चुनौतियाँ

  • नदी पारिस्थितिक तंत्र के सिकुड़ने और क्षरण के कारण पीने योग्य जल संसाधनों के घटने से बढ़ता जल संकट पर्यावरण, संरक्षण, जलवायु परिवर्तन व सतत् विकास से संबंधित राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है।
  • परियोजना की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें वृक्षारोपण की सही विधि और जलवायु में परिवर्तन शामिल हैं।

आगे की राह

  • वृक्षारोपण के जोखिमों एवं जलवायु में परिवर्तन से बचने के लिये वन विभाग को ‘रोपण स्टॉक की गुणवत्ता, विशेष रूप से आयु एवं आकार जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा, साथ ही जोखिम को और कम करने के लिये वृक्षारोपण से पहले मिट्टी एवं नमी का संरक्षण सुनिश्चित किया जाना भी आवश्यक है।

विगत वर्षों के प्रश्न

निम्नलिखित में से कौन 'राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ (NGRBA) की प्रमुख विशेषताएँ हैं? (2016)

  1. नदी बेसिन, नियोजन एवं प्रबंधन की इकाई है।
  2. यह राष्ट्रीय स्तर पर नदी संरक्षण के प्रयासों का नेतृत्व करता है।
  3. उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से एक जिस राज्य से गंगा बहती है, चक्रानुक्रम के आधार पर NGRBA के अध्यक्ष बनते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

स्रोत: पी.आई.बी.