भूमि क्षरण को रोकने के लिये भारत की प्रतिबद्धता
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) के पक्षकारों के 14वें सम्मेलन (COP14) से पूर्व भारत ने एक बार फिर से मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु अपने संकल्प को दोहराया।
भारत की प्रतिबद्धता
- मरुस्थलीकरण एक विश्वव्यापी समस्या है जिससे 250 मिलियन लोग और भूमि का एक तिहाई हिस्सा प्रभावित है।
- इसका मुकाबला करने के लिये भारत अगले दस वर्षों में ऊर्वर क्षमता खो चुकी लगभग 5 मिलियन हेक्टेयर भूमि को ऊर्वर भूमि में बदल देगा।
- भारत के पर्यावरण मंत्री द्वारा भूमि के उपयोग और उसके प्रबंधन की दिशा में निरंतर कार्य करने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की गई है।
- द हिंदू के अनुसार, 5 मिलियन हेक्टेयर भूमि को ऊर्वर भूमि में बदलने की प्रतिबद्धता बॉन चुनौती का हिस्सा थी। उल्लेखनीय है कि पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, 2015 में भारत ने स्वैच्छिक रूप से बॉन चुनौती पर स्वीकृति दी थी।
- भारत ने वर्ष 2020 तक 13 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक अतिरिक्त 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
बॉन चुनौती (Bonn Challenge) एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत वर्ष 2020 तक दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
भारत में भूमि क्षरण
- भारत ने वर्ष 2020 तक 13 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर और वर्ष 2030 तक अतिरिक्त 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana), मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme), मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना (Soil Health Management Scheme) और प्रधान मंत्री कृषि सिचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana) जैसी योजनाओं को इस भूमि क्षरण से निपटने के प्रयासों के रूप में देखा जाता है।
आगे की राह
कुछ ही समय पूर्व शुरुआत में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह रेखांकित किया गया था कि भूमि को गंभीर जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यदि ऐसे में उचित कदम नहीं उठाए गए तो इससे खाद्य असुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।