शीतकालीन प्रदूषण पर रिपोर्ट: CSE
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ (Centre for Science and Environment- CSE) ने एक रिपोर्ट में बताया कि 99 में से 43 शहरों में PM2.5 का स्तर बहुत खराब पाया गया है, इस रिपोर्ट में वर्ष 2019 और 2020 की शीतकालीन वायु गुणवत्ता में तुलना की गई थी।
- PM2.5 का आशय 2.5 माइक्रोमीटर व्यास से छोटे सूक्ष्म पदार्थों से है, यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बनता है और दृश्यता को भी कम करता है। यह एक अंतःस्रावी व्यवधान है जो इंसुलिन स्राव और इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकता है, इस कारण यह मधुमेह का कारण बन सकता है।
- CSE नई दिल्ली स्थित एक सार्वजनिक हित अनुसंधान संगठन है। यह ऐसे विषयों पर शोध करता है, जिनके लिये स्थायी और न्यायसंगत दोनों तरह के विकास की तात्कालिक आवश्यकता होती है।
प्रमुख बिंदु:
- निष्कर्ष:
- सबसे खराब प्रदर्शन:
- वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गुरुग्राम, लखनऊ, जयपुर, विशाखापत्तनम, आगरा, नवी मुंबई और जोधपुर शामिल हैं।
- अगर शहरों को रैंक प्रदान की जाए तो सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 23 शहर उत्तर भारत के हैं।
- उत्तरी क्षेत्र में गाजियाबाद सबसे प्रदूषित शहर है।
- सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन:
- केवल 19 पंजीकृत शहरों के PM2.5 स्तर में ‘पर्याप्त सुधार देखा गया। इनमें से एक चेन्नई है।
- केवल चार शहर (सतना, मैसूर, विजयपुरा और चिक्कमंगलूरु) ऐसे हैं जो शीतकालीन मौसम के दौरान ‘नेशनल 24 ऑवर स्टैंडर्ड’ (60 μg/m3) से मेल खाते हैं।
- मध्य प्रदेश में सतना और मैहर एवं कर्नाटक में मैसूर देश के सर्वाधिक स्वच्छ शहर हैं।
- चरम मौसमी स्तर:
- 37 ऐसे शहर हैं जिनमें प्रदूषण का मौसमी औसत स्तर स्थिर या गिरता हुआ देखा गया, सर्दियों के दौरान उनके प्रदूषण स्तर में काफी वृद्धि हुई है।
- इनमें औरंगाबाद, इंदौर, नासिक, जबलपुर, रूपनगर, भोपाल, देवास, कोच्चि, और कोझीकोड शामिल हैं।
- उत्तर भारत में दिल्ली सहित अन्य शहरों ने विपरीत स्थिति का अनुभव किया है, अर्थात् मौसमी औसत स्तर में तो वृद्धि हुई लेकिन चरम मौसमी स्तर में गिरावट आई।
- 37 ऐसे शहर हैं जिनमें प्रदूषण का मौसमी औसत स्तर स्थिर या गिरता हुआ देखा गया, सर्दियों के दौरान उनके प्रदूषण स्तर में काफी वृद्धि हुई है।
- सबसे खराब प्रदर्शन:
- शीतकालीन प्रदूषण में परिवर्तन का कारण:
- लॉकडाउन और अन्य क्षेत्रीय कारक: लॉकडाउन के बाद कई शहरों में प्रदूषण के स्तर में सुधार देखा गया लेकिन सर्दियों में जब लॉकडाउन में काफी ढील दी गई, प्रदूषण का स्तर पूर्व कोविड-19 के स्तर पर वापस आ गया।
- यह शहरों के प्रदूषण स्तर में स्थानीय और क्षेत्रीय कारकों के महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करता है।
- शांत मौसम: उत्तर भारतीय शहरों के इंडो गंगेटिक प्लेन में स्थित होने के कारण सर्दियों के दौरान यहाँ के शांत और स्थिर मौसम से दैनिक प्रदूषण में वृद्धि होती है।
- वर्ष 2020 में गर्मियों और मानसून के महीनों के दौरान PM 2.5 का औसत स्तर लॉकडाउन के कारण पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम था।
- हालाँकि विभिन्न क्षेत्रों के कई शहरों में वर्ष 2019 की सर्दियों की तुलना में शीतकाल में PM2.5 की सांद्रता बढ़ी है।
- लॉकडाउन और अन्य क्षेत्रीय कारक: लॉकडाउन के बाद कई शहरों में प्रदूषण के स्तर में सुधार देखा गया लेकिन सर्दियों में जब लॉकडाउन में काफी ढील दी गई, प्रदूषण का स्तर पूर्व कोविड-19 के स्तर पर वापस आ गया।
- विश्लेषण का आधार:
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का विश्लेषण: यह विश्लेषण CSE की वायु प्रदूषण ट्रैकर पहल का एक हिस्सा है। यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वास्तविक समय आधारित आँकड़ों पर आधारित है।
- CAAQMS के आँकड़े: यह डेटा 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 115 शहरों में विस्तृत ‘निरंतर परिवेश वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली’ (CAAQMS) के तहत 248 आधिकारिक स्टेशनों से प्राप्त किया गया है।
- CAAQMS वायु प्रदूषण की वास्तविक समय निगरानी सुविधा प्रदान करता है, जिसमें पार्टिकुलेट मैटर भी शामिल है, यह वर्ष भर कार्य करता है।
- यह हवा की गति, दिशा, परिवेश का तापमान, सापेक्षिक आर्द्रता, सौर विकिरण, बैरोमीटर का दबाव और वर्षा गेज को शामिल करते हुए डिजिटल रूप से मौसम के अन्य आँकड़ों को भी प्रदर्शित करता है।
- महत्त्व:
- इस रिपोर्ट में ज़ोर दिया गया कि बड़े शहरों के बजाय छोटे और तीव्रता से विकास कर रहे शहर प्रदूषण के केंद्र के रूप में उभरे हैं।
- इस रिपोर्ट में प्रदूषण के प्रमुख क्षेत्रों- वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्रों और अपशिष्ट प्रबंधन में त्वरित सुधार और शीतकालीन प्रदूषण को नियंत्रित करने तथा वार्षिक वायु प्रदूषण को कम करने की सलाह दी गई है।
- वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिये विभिन्न पहलें:
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और आसपास के क्षेत्रों हेतु वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग।
- भारत स्टेज (BS) VI मानक।
- वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये डैशबोर्ड।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम।
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI)।
- वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY)।
स्रोत: द हिंदू