प्रिलिम्स फैक्ट्स: 29 सितंबर, 2020
उमंग एप पर नई सेवाएँ
New Services on Umang App
उमंग एप (Umang App) पर पहले से उपलब्ध 16 सेवाओं के अलावा, अब कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees’ Provident Fund Organisation-EPFO) ने एक अन्य सुविधा शुरू करके कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के सदस्यों को कर्मचारी पेंशन योजना, 1995 (Employees Pension Scheme, 1995) के अंतर्गत योजना के प्रमाण पत्र के लिये आवेदन करने में सक्षम बना दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि COVID-19 महामारी के दौरान EPF खाताधारकों में उमंग एप के प्रति अधिक जागरूकता देखने को मिली जिसने उन्हें इस मुश्किल दौर में घरों पर ही सहजता से सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाया।
कर्मचारी पेंशन योजना प्रमाण पत्र:
- कर्मचारी पेंशन योजना का प्रमाण पत्र ऐसे सदस्यों को जारी किया जाता है जो अपना EPF अंशदान निकाल लेते हैं किंतु सेवानिवृत्ति की उम्र पर पेंशन लाभ लेने के लिये EPFO के साथ अपनी सदस्यता बरकरार रखना चाहते हैं।
- एक सदस्य सिर्फ तभी पेंशन के लिये पात्र होता है, जब वह कर्मचारी पेंशन योजना, 1995 के तहत कम-से-कम 10 वर्ष तक सदस्य रहता है।
- नई नौकरी से जुड़ने के बाद योजना प्रमाण पत्र यह सुनिश्चित करता है कि पिछली पेंशन योग्य सेवा को नए नियोक्ता के साथ प्रदान की गई पेंशन योग्य सेवा के साथ जोड़ दिया जाए जिससे पेंशन लाभ बढ़ जाता है।
- इसके अलावा, पात्र सदस्य की मृत्यु की स्थिति में परिवार के सदस्यों द्वारा पेंशन प्राप्त करने में भी योजना प्रमाण पत्र उपयोगी होता है।
उमंग एप द्वारा लाभ:
- उमंग एप के माध्यम से योजना प्रमाण पत्र के लिये आवेदन आसान होने से सदस्यों को अब भौतिक रूप से आवेदन करने की अनावश्यक परेशानियों से मुक्ति मिलेगी। विशेष रूप से इससे COVID-19 महामारी के दौरान लाभ होगा और अनावश्यक कागजी कार्यवाही से भी मुक्ति मिलेगी।
- इस सुविधा से 5.89 करोड़ से ज्यादा सदस्यों को लाभ होगा। उमंग एप पर सेवाएँ हासिल करने के लिये एक सक्रिय यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (Universal Account Number- UAN) और EPFO के साथ पंजीकृत मोबाइल नंबर होना आवश्यक है।
उमंग एप:
- भारत में मोबाइल गवर्नेंस को गति देने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा नेशनल ई-गवर्नेंस डिविज़न (National e-Governance Division- NeGD) ने उमंग (यूनिफाइड मोबाइल एप्लिकेशन फॉर न्यू-एज़ गवर्नेंस- Unified Mobile Application for New-age Governance) का विकास किया है।
हड़प्पा सभ्यता की खोज की शताब्दी को चिह्नित करने के लिये व्याख्यान श्रृंखला
Lecture series to mark centenary of discovery of Harappan civilization
मोहनजोदड़ो में हड़प्पा सभ्यता की खोज के शताब्दी वर्ष को चिह्नित करने के लिये पुरातत्त्व एवं संग्रहालय निदेशालय, महाराष्ट्र (Directorate of Archaeology and Museums, Maharashtra) के सहयोग से ‘इंडिया स्टडी सेंटर ट्रस्ट’ (India Study Centre Trust) 5 अक्तूबर से 10-दिवसीय ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन करेगा।
प्रमुख बिंदु:
- इस कार्यक्रम के तहत दुनिया के विभिन्न हिस्सों के 10 से अधिक वक्ता जो विभिन्न पुरातात्विक परियोजनाओं पर कार्य कर रहे हैं, व्याख्यान श्रृंखला के दौरान अपनी अंतर्दृष्टि साझा करेंगे।
- मोहनजोदड़ो की खोज दुनिया में सबसे महत्त्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक है।
- हड़प्पा सभ्यता की खोज ने दुनिया का ध्यान भारतीय उपमहाद्वीप की ओर खींचा जिससे खोजकर्त्ताओं ने यहाँ की संस्कृति, समाज एवं अतीत का अध्ययन करने में रुचि दिखाई।
- ब्रिटिश पुरातत्त्वशास्त्रियों के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता की खोज से पहले ‘मिस्र’ पुरानी सभ्यताओं के अध्ययन का केंद्र था।
- ‘इंडिया स्टडी सेंटर ट्रस्ट’ ने पुरातत्त्व, भूविज्ञान एवं जैव विविधता के क्षेत्रों में मुख्य ध्यान केंद्रित किया है।
मोहनजोदड़ो:
- मोहनजोदड़ो को ‘मृतकों का टीला’ भी कहा जाता है। इसकी खोज वर्ष 1922 में रखालदास बनर्जी ने की थी।
- मोहनजोदड़ो, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लरकाना ज़िले में सिंधु नदी के तट पर अवस्थित है।
- मोहनजोदड़ो में की गई खोजों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- विशाल स्नानागर
- अन्नागार
- कांस्य की नर्तकी की मूर्ति
- पशुपति महादेव की मुहर
- दाड़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति
- बुने हुए कपड़े
- मोहनजोदड़ो प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे बड़े शहरों में से एक था जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
- मोहनजोदड़ो की प्रमुख विशेषता उसकी सड़कें थी, सड़कें सीधी दिशा में एक-दूसरे को समकोण पर काटती हुई नगर को अनेक वर्गाकार एवं चतुर्भुजाकार खंडों में विभाजित करती थीं।
- यहाँ लगभग प्रत्येक घर में निजी कुएंं एवं स्नानागार होते थे और पानी के निकास के लिये नालियों की व्यवस्था थी।
‘इंडिया स्टडी सेंटर ट्रस्ट’ (India Study Centre Trust):
- ‘इंडिया स्टडी सेंटर’ एक ऐसा संगठन है जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, कला, भाषाओं और साहित्य, दर्शन, वास्तुकला, चिकित्सा विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान, खगोल विज्ञान और गणित का अध्ययन करने के लिये प्रतिबद्ध है।
सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
Sajjangarh wildlife sanctuary
राजस्थान के उदयपुर ज़िले के प्रसिद्ध सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (Sajjangarh Wildlife Sanctuary) में आक्रामक लैंटाना झाड़ियों (Lantana Bushes) को उखाड़ने के लिये एक विशेष अभियान ने घास के मैदानों की पारिस्थितिक पुनर्स्थापन एवं जैव विविधता को बचाने में मदद की है।
प्रमुख बिंदु:
- डेढ़ महीने के इस अभियान में देशी प्रजातियों के रोपण के साथ-साथ भूमि की साफ सफाई भी की गई है।
सज्जनगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
(Sajjangarh Wildlife Sanctuary):
- दक्षिणी अरावली पहाड़ियों में यह छोटा अभयारण्य जो 5.19 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है, बड़ी संख्या में शाकाहारी जीव-जंतुओं का निवास स्थल हैं।
- यहाँ एक कृत्रिम झील है जिसे ‘जियान सागर’ (Jiyan Sagar) के नाम से जाना जाता है, इसे ‘टाइगर लेक’ के नाम से भी जाना जाता है।
- इसे वर्ष 1987 में संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था।
लैंटाना कैमरा (Lantana Camara):
- लैंटाना कैमरा (Lantana Camara) नामक घनी झाड़ियों ने इस अभयारण्य के विशाल भाग को कवर किया है जिससे अभयारण्य की वनस्पतियों के लिये पर्याप्त प्राकृतिक प्रकाश एवं पोषण नहीं मिल पाता है।
- भारत में पहली बार वर्ष 1807 में ‘लैंटाना कैमरा’ का पता लगाया गया था।
- इसके पत्ते एवं पके फलों में ज़हरीले पदार्थ ने कई जानवरों को प्रभावित किया जबकि इसके विस्तार ने घास एवं अन्य झाड़ियों की प्राकृतिक वृद्धि को रोक दिया है।
- वनस्पति का पर्याप्त विकास न होने के कारण शाकाहारी जीवों को पर्याप्त चारा नहीं मिलता था परिणामतः मांसाहारी जीवों के शिकार का आधार कम हो रहा था, जिससे खाद्य श्रृंखला में पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हो गया था।
मिशन लैंटाना (Mission Lantana):
- ‘मिशन लैंटाना’ को एक वरिष्ठ महिला पुलिस अधिकारी द्वारा शुरू किया गया था, जिन्होंने अपने प्राकृतिक आवास के क्रमिक सिकुड़न के साथ चित्तीदार हिरणों के झुंडों के बीच एक बेचैनी को देखा था।
- परिणामतः वन्यजीव विशेषज्ञों के साथ इस मामले पर चर्चा करके लैंटाना झाड़ियों से छुटकारा पाने के लिये कार्रवाई शुरू की गई जिसने लगभग 50% अभयारण्य को ढक रखा था।
- इस अभियान में वन अधिकारियों, पुलिस कर्मियों, वन्यजीव प्रेमियों, स्वैच्छिक समूहों के प्रतिनिधियों एवं स्थानीय ग्रामीणों द्वारा सामूहिक प्रयास और 'श्रम दान' (स्वैच्छिक शारीरिक कार्य) शामिल थे।
- 45 दिनों के बाद, लगभग 10 हेक्टेयर भूमि को साफ कर दिया गया है। राजस्थान वन विभाग ने साफ की गई भूमि पर 500 से अधिक पौधे लगाए हैं।
स्क्रब टाइफस
Scrub Typhus
हाल ही में बैक्टीरियल बीमारी स्क्रब टाइफस (Scrub Typhus) जिसे बुश टाइफस (Bush Typhus) भी कहा जाता है, के प्रकोप से म्यांमार की सीमा से लगे नागालैंड के नोक्लाक (Noklak) ज़िले में 5 लोगों की मृत्यु हो गई और 600 लोग संक्रमित हुए हैं।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र मलेरिया, जापानी इंसेफेलाइटिस एवं COVID-19 महामारी जैसी बीमारियों के प्रकोप से भी पीड़ित है।
- यहाँ ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ (African swine fever) से मवेशी भी प्रभावित हुए हैं।
- स्क्रब टाइफस (Scrub Typhus) बीमारी, ओरिएंटिया त्सूत्सूगामुशी (Orientia Tsutsugamushi) बैक्टीरिया के कारण होती है।
- यह संक्रमण ट्रॉम्बिकुलिड (Trombiculid) परिवार के लारवल माइट्स (Larval Mites) के काटने के कारण फैलता है, जिसे चीगर्स (Chiggers) भी कहा जाता है।
- इस संक्रमण से रोगी में निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं:
- बुखार
- सिरदर्द
- शरीर में दर्द
- कभी-कभी शरीर में दाने निकलना
- यह बीमारी अधिकतर दक्षिण-पूर्व एशिया, इंडोनेशिया, चीन, जापान, भारत एवं उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के ग्रामीण क्षेत्रों में होती है।
- इस बीमारी के इलाज के लिये एंटीबायोटिक्स के अतिरिक्त कोई टीका उपलब्ध नहीं है।
टाइफस (Typhus):
- टाइफस बैक्टीरिया के संक्रामक रोगों का एक समूह है जिसमें एपिडमिक टाइफस (Epidemic Typhus), स्क्रब टाइफस और मुराइन टाइफस (Murine Typhus) शामिल हैं।
- एपिडमिक टाइफस, रिकेट्सिया प्रोवाज़ेकी (Rickettsia Prowazekii) के कारण होता है।
- मुराइन टाइफस, पिस्सू द्वारा फैलने वाले रिकेट्सिया टाइफी (Rickettsia Typhi) के कारण होता है।
- वर्ष 1812 में रूस पर आक्रमण के दौरान नेपोलियन की सेना एपिडमिक टाइफस से संक्रमित हो गई थी जिससे वह पीछे हट गया था।