भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता, साक्ष्य अधिनियम में आमूल-चूल परिवर्तन

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023, भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023, आतंकवाद, सशस्त्र विद्रोह, मृत्युदंड

मेन्स के लिये:

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने लोकसभा में तीन विधेयक पेश किये जिनका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में लागू किये गए भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को निरस्त कर उनमें बदलाव करना है। ये विधेयक इस प्रकार हैं:

  • भारतीय दंड संहिता 1860 के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023
  • दंड प्रक्रिया संहिता 1898 के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023
  • साक्ष्य अधिनियम, 1872 के स्थान पर भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023

नोट: 

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) भारत की आपराधिक संहिता है जिसे वर्ष 1833 के चार्टर अधिनियम के अंर्तगत वर्ष 1834 में स्थापित पहले कानून आयोग के अनुरूप वर्ष 1860 में तैयार किया गया था।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) भारत में आपराधिक कानून के प्रशासन के लिये प्रक्रियाएँ प्रदान करती है। इसे वर्ष 1973 में अधिनियमित किया गया और 1 अप्रैल 1974 को प्रभावी हुआ।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, जो मूल रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1872 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा भारत में पारित किया गया था, भारतीय न्यायालयों में साक्ष्य की स्वीकार्यता को नियंत्रित करने वाले नियमों और संबद्ध मुद्दों का एक सेट शामिल है।

भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ:

  • यह विधेयक आतंकवाद एवं अलगाववाद, सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह, देश की संप्रभुता को चुनौती देने जैसे अपराधों को परिभाषित करता है, जिनका पहले कानून के विभिन्न प्रावधानों के अंर्तगत उल्लेख किया गया था।
  • यह राजद्रोह के अपराध को निरस्त करता है, जिसकी औपनिवेशिक अवशेष के रूप में व्यापक रूप से आलोचना की गई थी जो स्वतंत्र अभिव्यक्ति तथा असहमति पर अंकुश लगाता है।
  • यह मॉब लिंचिंग के लिये अधिकतम सज़ा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान करता है, जो हाल के वर्षों में एक खतरा रहा है।
  • इसमें विवाह के झूठे वादे कर महिलाओं के साथ यौन संबंध स्थापित करने पर 10 वर्ष की कैद का प्रस्ताव है, जो धोखे और शोषण का एक सामान्य रूप है।
  • विधेयक विशिष्ट अपराधों के लिये सज़ा के रूप में सामुदायिक सेवा का प्रावधान करता है, जो अपराधियों को सुधारने और जेलों में भीड़ को कम करने में मदद कर सकता है।
  • विधेयक में चार्ज शीट दाखिल करने के लिये अधिकतम 180 दिनों की सीमा तय की गई है, जिससे अभियोजन की प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है और अनिश्चितकालीन देरी को रोका जा सकता है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ:

  • यह परीक्षणों, अपीलों और गवाही की रिकॉर्डिंग के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देता है, जिससे कार्यवाही के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग की अनुमति मिलती है।
    • यह विधेयक यौन हिंसा से बचे लोगों के बयान की वीडियो-रिकॉर्डिंग को अनिवार्य बनाता है, यह कदम साक्ष्यों को संरक्षित करने और ज़बरदस्ती या हेर-फेर को रोकने में सहायता कर सकता है।
  • यह विधेयक पुलिस को शिकायत की स्थिति के बारे में 90 दिनों में सूचित करना अनिवार्य करता है, जिससे जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ेगी।
  • CrPC की धारा 41A को धारा 35 के रूप में पुनः क्रमांकित किया जाएगा। इस परिवर्तन में एक अतिरिक्त सुरक्षा शामिल है, जिसमें कहा गया है कि कम से कम पुलिस उपाधीक्षक (Deputy Superintendent of Police- DSP) रैंक के किसी अधिकारी की पूर्व मंज़ूरी के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है, विशेषकर ऐसे दंडनीय अपराधों के लिये जिसके 3 वर्ष से कम की सज़ा हो अथवा अपराध 60 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति द्वारा किया गया हो।
  • इस विधेयक के अनुसार पुलिस को सात वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले मामले को वापस लेने से पहले पीड़ित से परामर्श करना अनिवार्य है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि न्याय से किसी प्रकार का समझौता नहीं हो।
  • यह फरार अपराधियों पर न्यायालय द्वारा उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाने और सजा सुनाने की अनुमति देता है।
  • यह मजिस्ट्रेटों को ई-मेल, SMS, व्हाट्सएप मेसेज आदि जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के आधार पर अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार देता है, जिससे साक्ष्य संग्रह और सत्यापन की सुविधा मिल सकती है।
  • मृत्यु की सजा के मामलों में दया याचिका राज्यपाल के पास 30 दिनों के भीतर और राष्ट्रपति के पास 60 दिनों के भीतर दाखिल की जानी है।
    • राष्ट्रपति के निर्णय के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकेगी।

भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • यह विधेयक बिल इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को किसी भी उपकरण या सिस्टम द्वारा उत्पन्न या प्रसारित किसी भी जानकारी के रूप में परिभाषित करता है जो किसी भी माध्यम से संगृहीत या पुनर्प्राप्त करने में सक्षम है।
  • डिजिटल डेटा के दुरुपयोग अथवा इसमें किसी प्रकार का बदलाव होने से रोकने के लिये, यह विधेयक इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता, जैसे प्रामाणिकता और विश्वसनीयता हेतु विशिष्ट मानदंड निर्धारित करता है।
  • यह DNA साक्ष्य जैसे सहमति, कालानुक्रमिक दस्तावेज आदि की स्वीकार्यता के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है, जो जैविक साक्ष्य की सटीकता और विश्वसनीयता को बढ़ा सकता है।
  • यह विशेषज्ञ की सलाह को मेडिकल राय, लिखावट विश्लेषण जैसे साक्ष्यों के रूप में मान्यता देता है, जो किसी मामले से संबंधित तथ्यों या परिस्थितियों को स्थापित करने में सहायता कर सकता है।
  • यह आपराधिक न्याय प्रणाली के मूल सिद्धांत के रूप में निर्दोषता की धारणा का परिचय देता है, जिसका अर्थ है कि अपराध के आरोपी प्रत्येक व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उचित संदेह से परे दोषी साबित न हो जाए।

स्रोत: द हिंदू