जैविक उर्वरक

प्रिलिम्स के लिये:

जैविक खाद, मवेशी खाद, जैव उर्वरक, ठोस अपशिष्ट, बायोगैस।

मेन्स के लिये:

भारत में जैविक उर्वरकों की क्षमता।

चर्चा में क्यों?

आर्थिक सुधारों के पथ पर भारत की विकास गाथा ने देश को दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना दिया है। सही नीतिगत हस्तक्षेप से भारत ‘जैविक उर्वरक’ उत्पादन का केंद्र बन सकता है।

जैविक उर्वरक:

  • परिचय:
    • जैविक उर्वरक एक ऐसा उर्वरक है जो जैविक स्रोतों से प्राप्त होता है, जिसमें जैविक खाद, पशु खाद, मुर्गी पालन और घरेलू सीवेज शामिल हैं।
    • सरकारी नियमों के अनुसार, जैविक खाद को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है: जैव उर्वरक और जैविक खाद।
  • जैव उर्वरक:
    • यह ठोस या तरल वाहकों से जुड़े जीवित सूक्ष्मजीवों से निर्मित हैं और कृषि योग्य भूमि के लिये उपयोगी होते हैं। ये सूक्ष्मजीव मृदा और/या फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
      • उदाहरण: राइजोबियम, एजोस्पिरिलियम, एजोटोबैक्टर, फॉस्फोबैक्टीरिया, नील हरित शैवाल (BGA), माइकोराइजा, एजोला।
  • जैविक खाद:
    • ‘जैविक खाद’ का तात्पर्य आंशिक रूप से विघटित कार्बनिक पदार्थ जैसे बायोगैस संयंत्र, खाद और वर्मीकम्पोस्ट से है। ये मृदा / फसलों को पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं तथा उपज में सुधार करते हैं।

भारत में जैविक उर्वरकों की क्षमता:

  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का उपयोग:
    • भारत 150,000 टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) का उत्पादन करता है।
    • 80% की संग्रह क्षमता और MSW के जैविक भाग को 50% शामिल करते हुए भारत में उत्पन्न होने वाला कुल जैविक कचरा लगभग 65,000 टन प्रतिदिन है।
    • यहाँ तक कि इसका आधा हिस्सा बायोगैस उद्योग में लगा दिया जाए, सरकार जीवाश्मों और उर्वरकों के आयात में कमी करके इसका लाभ उठा सकती है।
  • बायोगैस अपशिष्टों का उपयोग करना:
    • जैविक उर्वरक का महत्त्वपूर्ण है जिसे डाइजेस्टेट भी कहा जाता है, जो कि बायोगैस संयंत्र का अपशिष्ट है।
    • बायोगैस का उपयोग हीटिंग, बिजली और यहाँ तक कि वाहनों (उन्नयन के बाद) में किया जा सकता है, जबकि डाइजेस्ट दूसरी हरित क्रांति के दृष्टिकोण को साकार करने में मदद कर सकता है।
  • मृदा की उर्वरता बढ़ाना:
    • डाइजेस्ट अपने मानक पोषण मूल्य के अलावा लगातार घटती मृदा को कार्बनिक के लिये कार्बन प्रदान कर सकता है।
    • भारत में वर्तमान में जैव-उर्वरक का उत्पादन सिर्फ 110,000 टन (वाहक आधारित 79,000 टन और तरल-आधारित 30,000 टन) तथा 34 मिलियन टन जैविक खाद है, जो कि शहरीय अपशिष्ट और वर्मीकम्पोस्ट से बना है।
  • जैविक खेती की लोकप्रियता:
    • हाल के वर्षों में घरेलू बाज़ार में जैविक खेती की लोकप्रियता बढ़ी है।
      • भारतीय जैविक पैकेज्ड फूड का बाज़ार आकार 17% की दर से बढ़ने और वर्ष 2021 तक 871 मिलियन रुपए के आँकड़े को पार करने की उम्मीद है।
    • इस क्षेत्र की उल्लेखनीय वृद्धि मृदा पर सिंथेटिक उर्वरक के हानिकारक प्रभावों के बारे में बढ़ती जागरूकता, बढ़ती स्वास्थ्य चिंताओं, शहरी जनसंख्या आधार का विस्तार और खाद्य वस्तुओं पर उपभोक्ता व्यय में वृद्धि से जुड़ी है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. नीले-हरित शैवाल की कुछ प्रजातियों की कौन सी विशेषता उन्हें जैव-उर्वरकों के रूप में बढ़ावा देने में मदद करती है? (2010)

(a) वे वायुमंडलीय मीथेन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं जिसे पौधे आसानी से अवशोषित कर सकते हैं।
(b) वे पौधों को एंजाइमों का उत्पादन करने के लिये प्रेरित करते हैं जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट में परिवर्तित करने में मदद करते हैं।
(c) उनके पास वायुमंडलीय नाइट्रोजन को एक ऐसे रूप में परिवर्तित करने का तंत्र है जिसे पौधे आसानी से अवशोषित कर सकते हैं।
(d) वे पौधों की जड़ों को बड़ी मात्रा में मिट्टी से नाइट्रेट को अवशोषित करने के लिये प्रेरित करते हैं।

उत्तर: (c)

  • साइनोबैक्टीरिया या नील-हरित शैवाल जैव-उर्वरक का एक उदाहरण है, एक प्रकार का जैविक उर्वरक जिसमें जीवित जीव होते हैं तथा मिट्टी की उर्वरता और पौधों की वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये सौर ऊर्जा, नाइट्रोजन एवं पानी जैसे प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले इनपुट का दोहन करते हैं।
  • नील हरित शैवाल फोटोऑटोट्रॉफिक सूक्ष्म जीव हैं। उनके पास विशेष कोशिकाएँ हैं जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करने के लिये सौर ऊर्जा का उपयोग करते हैं। अमोनिया का उपयोग पौधों द्वारा वृद्धि और उत्पादन बढ़ाने के लिये किया जाता है।

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ