ओलिव रिडले कछुओं के लिये ऑपरेशन ओलिविया
प्रिलिम्स के लियेओलिव रिडले कछुए, ओलिविया, भारतीय तटरक्षक बल के बारे में तथ्यात्मक जानकारी मेन्स के लियेओलिव रिडले कछुओं के लिये ओलिविया और भारतीय तटरक्षक बल की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय तटरक्षक बल ने ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा के लिये ऑपरेशन 'ओलिविया' हेतु एक विमान को सेवा में लगाया है।
भारतीय तटरक्षक बल
- यह रक्षा मंत्रालय के तहत एक सशस्त्र बल, खोज और बचाव तथा समुद्री कानून प्रवर्तन एजेंसी है। इसकी स्थापना वर्ष 1978 में हुई थी।
- यह सतह और वायु दोनों स्तरों पर कार्य करने में सक्षम है। यह विश्व के सबसे बड़े तट रक्षक बलों में से एक है।
प्रमुख बिंदु
ओलिविया:
- प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले भारतीय तटरक्षक बल का "ऑपरेशन ओलिविया" 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, यह ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा करने में मदद करता है क्योंकि वे नवंबर से दिसंबर तक प्रजनन और घोंसले बनाने के लिये ओडिशा तट पर एकत्र होते हैं।
- यह अवैध ट्रैपिंग गतिविधियों को भी रोकता है।
- कानूनों को लागू करने के लिये तटरक्षक बल की संपत्ति जैसे- तेज़ गश्ती जहाज़ों, एयर कुशन जहाज़ों, इंटरसेप्टर क्राफ्ट और डोर्नियर विमान का उपयोग करते हुए नवंबर से मई तक चौबीसों घंटे निगरानी की जाती है।
- नवंबर 2020 से मई 2021 तक ओडिशा तट पर अंडे देने वाले 3.49 लाख कछुओं की रक्षा के लिये तटरक्षक बल के 225 जहाज़ और 388 विमान हर समय समर्पित रहें।
ओलिव रिडले कछुए:
- विशेषताएँ:
- ओलिव रिडले कछुए विश्व में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और सबसे अधिक हैं।
- ये कछुए मांसाहारी होते हैं और इनका पृष्ठवर्म ओलिव रंग (Olive Colored Carapace) का होता है जिसके आधार पर इनका यह नाम पड़ा है।
- वे हर वर्ष भोजन और संभोग के लिये हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं।
- ये कछुए अपने अद्वितीय सामूहिक घोंसले (Mass Nesting) अरीबदा (Arribada) के लिये सबसे ज़्यादा जाने जाते हैं, अंडे देने के लिये हज़ारों मादाएँ एक ही समुद्र तट पर एक साथ यहाँ यहाँ आती हैं।
- पर्यावास:
- ये मुख्य रूप से प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागरों के गर्म पानी में पाए जाते हैं।
- ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य को विश्व में समुद्री कछुओं के सबसे बड़े प्रजनन स्थल के रूप में जाना जाता है।
- संरक्षण की स्थिति:
- आईयूसीएन रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)
- CITES: परिशिष्ट- I
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- 1
- संकट:
- इन कछुओं के मांस, खाल, चमड़े और अंडे के लिये इनका शिकार किया जाता है।
- हालाँकि उनके सामने सबसे गंभीर खतरा घोंसले का नुकसान, संभोग के मौसम के दौरान समुद्र तटों के आसपास अनियंत्रित रूप से मछली पकड़ने के कारण ट्रॉल नेट और गिल नेट में उलझने से उनकी आकस्मिक मौत है।
- प्लास्टिक, मछली पकड़ने के जाल, पर्यटकों और मछली पकड़ने वाले श्रमिकों द्वारा फेंके गए अन्य कचरे का बढ़ता मलबा।
अन्य पहलें:
- भारत में इनकी आकस्मिक मौत की घटनाओं को कम करने के लिये, ओडिशा सरकार ने ट्रॉल के लिये टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेस (Turtle Excluder Devices- TED) का उपयोग करना अनिवार्य कर दिया है, जालों को विशेष रूप से एक निकास कवर के साथ बनाया गया है जो कछुओं के जाल में फसने के दौरान उन्हें भागने में सहायता करता है।