लिंगराज मंदिर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लिंगराज मंदिर (Lingaraj Temple) के चार सेवादारों की कोरोना रिपोर्ट पॉज़िटिव आने के बाद ओडिशा सरकार द्वारा मंदिर में श्रद्धालुओं के सार्वजनिक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
- अगस्त 2020 में सरकार द्वारा लिंगराज मंदिर को 350 वर्ष पूर्व वाली संरचनात्मक स्थिति प्रदान करने की घोषणा की गई थी।
प्रमुख बिंदु:
- 11वीं शताब्दी में निर्मित लिंगराज मंदिर, भगवान शिव को समर्पित मंदिर है इसे भुवनेश्वर (ओडिशा) शहर का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण सोमवंशी राजा ययाति प्रथम (Yayati I) ने करवाया था।
- यह लाल पत्थर से निर्मित है जो कलिंग शैली की वास्तुकला (Kalinga style of Architecture) का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- मंदिर को चार वर्गों में विभाजित किया गया है -
- विमान (गर्भगृह युक्त संरचना)
- यज्ञ शाला (प्रार्थना के लिये हॉल)
- भोग मंडप (प्रसाद हेतु हॉल)
- नाट्य शाला (नृत्य के लिये हॉल)।
- विशाल परिसर में फैले इस मंदिर में 150 सहायक मंदिर हैं।
- लिंगराज को 'स्वयंभू' (Swayambhu) मंदिर के रूप में जाना जाता है अर्थात् जहाँ शिवलिंग की स्थापना किसी के द्वारा नहीं की गई बल्कि यह स्वत: स्थापित होता है।
- मंदिर का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि यह ओडिशा में शैव और वैष्णववाद संप्रदायों के समन्वय का प्रतीक है।
- इसका एक कारण शायद यह हो सकता है कि भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु का एक अवतार) और लिंगराज मंदिर दोनों का विकास एक ही समय पर हुआ है।
- मंदिर में मौजूद देवता को हरि-हारा ( Hari-Hara) के नाम से जाना जाता है जिसमे हरि का अर्थ भगवान विष्णु और हारा का अर्थ है भगवान शिव।
- मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है
- मंदिर का अन्य आकर्षण बिंदुसागर झील (Bindusagar Lake) है, जो मंदिर के उत्तर दिशा में स्थित है।
- बिंदुसागर झील के पश्चिमी तट पर एकाराम वन नाम का बगीचा स्थिति है। बाद में हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भुवनेश्वर की राजधानी ओडिशा को एकामरा वन (Ekamra Van) या आम के पेड़ के वन ( Forest of a Single Mango Tree) के रूप में संदर्भित किया गया था।
- ओडिशा में अन्य महत्त्वपूर्ण स्मारक:
- कोणार्क सूर्य मंदिर (यूनेस्को विश्व विरासत स्थल)
- जगन्नाथ मंदिर
- तारा तारिणी मंदिर
- उदयगिरि और खंडगिरि गुफाएंँ
कलिंग वास्तुकला:
कलिंग वास्तुकला के बारे में:
- भारतीय मंदिरों को मोटे तौर पर नागर (Nagara), बेसर (Vesara), द्रविड़ (Dravida) और वास्तुकला की गदग (Gadag) शैलियों में विभाजित किया गया है।
- हालांँकि ओडिशा की मंदिर वास्तुकला अपने अद्वितीय प्रतिनिधित्व के कारण पूरी तरह से एक अलग श्रेणी से मेल खाती है जिसे मंदिर वास्तुकला की कलिंग शैली (Kalinga style) कहा जाता है।
- मोटे तौर पर यह शैली नागर शैली के अंतर्गत आती है।
वास्तुकला:
- कलिंग वास्तुकला में, मूल रूप से एक मंदिर दो भागों में बना होता है, पहला शिखर (Tower) और दूसरा, गर्भगृह (Hall)। शिखर को देउल (Deula ) तथा गर्भगृह को जगमोहन (Jagmohan) कहा जाता है।
- देउल और जगमोहन की दीवारें पर भव्य रूप में वास्तुशिल्प रूपांकनों और आकृतियों को बनाया जाता है।
- सर्वाधिक एवं बार-बार बनाई जाने वाला आकृति घोड़े की नाल के आकार (Horseshoe Shape) की है, जो कि आदिकाल से प्रचलित है तथा जिसे चैत्य-गृह की बड़ी खिड़कियों से बनाना शुरू किया जाता है।
- देउल शैली का प्रयोग कर कलिंग वास्तुकला में तीन विभिन्न प्रकार के मंदिरों का निर्माण किया गया है:
- रेखा देउल (Rekha Deula)।
- पिढा देउल (Pidha Deula)।
- खाखरा देउल (Khakhara Deula)।
- प्रथम दो (रेखा देउल, पिढा देउल) का संबंध विष्णु, सूर्य और शिव के मंदिरों से है, जबकि तीसरा (खाखरा देउल) मुख्य रूप से चामुंडा और दुर्गा मंदिरों के संबंधित है।
- रेखा देउल, पिढा देउल का प्रयोग गर्भगृह में किया जाता है जबकि खाखरा देउल का प्रयोग नाट्यशाला और भोग मंडप में देखा जाता है।