फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने की राज्यपाल की शक्ति

प्रिलिम्स के लिये:

फ्लोर टेस्ट, संवैधानिक प्रावधान, राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ 

मेन्स के लिये:

अधिवेशन के लिये बुलाने की राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कहा है कि राज्यपाल पार्टी सदस्यों के आंतरिक मतभेदों के आधार पर सदन को फ्लोर टेस्ट के लिये नहीं बुला सकता है। 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने एक राजनीतिक दल के दो गुटों के बीच विवाद के मामले की सुनवाई करते हुए विश्वास मत हेतु बुलाने संबंधी राज्यपाल की शक्तियों और भूमिका पर चर्चा की।  

सदन को फ्लोर टेस्ट हेतु राज्यपाल कैसे बुलाता है? 

  • परिचय: 
    • संविधान का अनुच्छेद 174 राज्यपाल को राज्य विधानसभा को आहूत करने, विघटित करने और सत्रावसान करने का अधिकार देता है। 
      • संविधान का अनुच्छेद 174(2)(b) राज्यपाल को सदन की सहायता और परामर्श पर विधानसभा को विघटित करने की शक्ति देता है। हालाँकि राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल तब कर सकता है जब बहुमत पर प्रश्नचिह्न उठने पर किसी मुख्यमंत्री द्वारा परामर्श दिया जाता है।  
    • अनुच्छेद 175(2) के अनुसार, सरकार के पास संख्या बल है या नहीं यह साबित करने के लिये तथा फ्लोर टेस्ट के लिये राज्यपाल सदन को बुला सकता है।
    • हालाँकि, राज्यपाल इस अधिकार का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार कर सकता है, जिसके अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श पर कार्य करता है। 
    • सदन के सत्र में होने पर अध्यक्ष फ्लोर टेस्ट की घोषणा कर सकता है। हालाँकि अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल की अवशिष्ट शक्तियों के अनुसार, उसे विधानसभा के सत्र में नहीं होने पर फ्लोर टेस्ट की घोषणा करने का अधिकार है। 
  • राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति: 
    • अनुच्छेद 163(1) मूल रूप से राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को उन स्थितियों तक सीमित करता है जहाँ संविधान स्पष्ट रूप से यह आदेश देता है कि राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिये।
    • मुख्यमंत्री के बहुमत का समर्थन खो देने की स्थिति में अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
    • आमतौर पर मुख्यमंत्री के पक्ष में बहुमत पर संदेह की स्थिति में विपक्ष और राज्यपाल फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकते हैं।
    • कई मौकों पर न्यायालयों ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब सत्ता पक्ष का बहुमत सवालों के घेरे में हो, तो फ्लोर टेस्ट यथाशीघ्र उपलब्ध अवसर पर आयोजित किया जाना चाहिये।

राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट की मांग पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी: 

  • वर्ष 2016 में नबाम रेबिया और बमांग फेलिक्स बनाम उपाध्यक्ष मामले (अरुणाचल प्रदेश विधानसभा) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सदन बुलाने की शक्ति पूरी तरह से राज्यपाल में निहित नहीं है और इसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता तथा सलाह से किया जाना चाहिये, न कि स्वयं ही।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्यपाल एक निर्वाचित अधिकारी नहीं है और केवल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त नामांकित व्यक्ति है, इस तरह के नामांकित व्यक्ति के पास राज्य विधानमंडल के सदन या सदन के लोगों के प्रतिनिधियों पर वीटो शक्ति नहीं हो सकती है।
  • वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम स्पीकर, मध्य प्रदेश विधानसभा और अन्य मामले में प्रथम दृष्टया यह विचार आने पर कि सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है, फ्लोर टेस्ट के लिये स्पीकर की शक्तियों को बरकरार रखा। 
    • यदि राज्यपाल को उसके पास उपलब्ध स्रोतों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार को सदन का विश्वास प्राप्त है या नहीं, तब ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल को शक्ति परीक्षण का आदेश देने की शक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में मुद्दे को फ्लोर टेस्ट के आधार पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है। 

फ्लोर टेस्ट:

  • यह बहुमत के परीक्षण के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। यदि किसी राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ संदेह है, तो उसे सदन में बहुमत साबित करने के लिये कहा जा सकता है।
  • गठबंधन सरकार के मामले में मुख्यमंत्री को विश्वास मत पेश करने और बहुमत हासिल करने के लिये कहा जा सकता है।
  • स्पष्ट बहुमत के अभाव में जब सरकार बनाने के लिये एक से अधिक व्यक्तिगत हिस्सेदारी की आवशयकता होती है, तो राज्यपाल यह जानने के लिये एक विशेष सत्र बुला सकता है कि सरकार बनाने के लिये किसके पास बहुमत है। 
  • कुछ विधायक अनुपस्थित हो सकते हैं या मतदान करने से इनकार कर सकते हैं। अर्थात् आँकड़ों की गणना केवल उन विधायकों के आधार पर की जाती है जो मतदान में उपस्थित हों।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस