माओवाद से निपटने के लिये पाँच सूत्री योजना

प्रिलिम्स के लिये:

माओवाद से निपटने के लिये पाँच सूत्री योजना, बोधघाट सिंचाई परियोजना 

मेन्स के लिये:

माओवाद से निपटने के लिये पाँच सूत्री योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर बस्तर क्षेत्र में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में नक्सलवाद के प्रभाव को समाप्त करने के लिये एक ‘पाँच सूत्री योजना‘ के क्रियान्वयन में सहयोग की मांग की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • राज्य द्वारा योजना को क्रियान्वित करने में केंद्र सरकार से विशेष अनुदान की मांग की गई है। 
  • इससे पहले भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री द्वारा सितंबर में गृहमंत्री को पत्र लिखकर क्षेत्र में अतिरिक्त सीआरपीएफ बटालियन तैनात करने का अनुरोध किया गया था।

पाँच सूत्री योजना:

रोज़गार सृजन: 

  • बस्तर क्षेत्र के दूरस्थ वन क्षेत्र में रोज़गार सृजन के लिये क्षेत्र के सभी सात आकांक्षी ज़िलों के ज़िला कलेक्टर के नियंत्रण में 50 करोड़ रुपए का अनुदान दिया जाए।

कनेक्टिविटी: 

  • दुर्गम क्षेत्रों में मौजूद सड़क तथा रेल पटरियों को अपग्रेड किया जाए और दूरदराज़ तथा आंतरिक क्षेत्रों में रणनीतिक स्थानों पर सुरक्षित बेस और हेलीपैड की सुविधा प्रदान की जाए।

 स्टील प्लांट की स्थापना:

  • यदि बस्तर के लौह अयस्क से समृद्ध क्षेत्र में स्टील प्लांट स्थापित किया जाता है तो उन्हें 30% छूट के साथ लौह अयस्क उपलब्ध कराया जाए।

कोल्ड चेन अवसंरचना:

  • क्षेत्र में वन उत्पादों के संग्रहण तथा भंडारण के लिये केंद्र के अनुदान से कोल्ड चेन और अन्य सुविधाएँ स्थापित की जाएँ तथा जिन क्षेत्रों में विद्युत ग्रिड की पहुँच नहीं है उन क्षेत्रों के लिये सौर ऊर्जा जनरेटर स्थापित करने में मदद की जाए।

सिंचाई परियोजना: 

  • बस्तर क्षेत्र में भविष्य की सिंचाई परियोजनाओं यथा- ‘बोधघाट सिंचाई परियोजना’ (Bodhghat Irrigation Project) आदि पर शीघ्र कार्य शुरू किया जाए।
    • यह बस्तर क्षेत्र के लिये 22,653 करोड़ रुपए की लागत वाली एक बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना है।

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद (Naxalism in Chhattisgarh):

  • छत्तीसगढ़ को भारत में नक्सलवाद का गढ़ माना जाता है। माओवादी आंदोलन की  शुरुआत में राज्य के कुल 27 में से 18 ज़िलों में नक्सलवाद का प्रभाव था। 1980 के दशक की शुरुआत में 40,000 वर्ग किलोमीटर का बस्तर क्षेत्र (जिसमें दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, बस्तर और कांकेर जिले शामिल थे) भारत में माओवादी आंदोलन का गढ़ बन गया।
  • इसी क्षेत्र में वर्ष 2010 में नक्सलियों के हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे और भारतीय राष्ट्रीय काॅॅन्ग्रेस के शीर्ष नेताओं की हत्या की गई थी।

राज्य सरकार की रणनीति:

Naxalism-in-Chhattisgarh

  • राज्य सरकार ने पूर्व के नक्सलवादियों और स्थानीय युवाओं को शामिल करते हुए ‘विशेष पुलिस अधिकारी’ ( Special Police Officers- SPOs) नामक एक स्थानीय मिलिशिया/नागरिक सेना बनाकर 'सलवा जुडूम' (Salwa Judum) नामक आंदोलन का समर्थन किया।
  • व्यापक स्तर पर आदिवासियों की हत्या और विस्थापन के बाद वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस पहल को गैर-कानूनी करार दिया गया तथा राज्य सरकार को इसे भंग करने का आदेश दिया गया।
  • इसके बाद राज्य द्वारा अपने पुलिस बल के आधुनिकीकरण पर विशेष बल देते हुए  एक नई बटालियन (जिसे आंध्र प्रदेश के ग्रेहाउंड्स (Greyhounds) की तर्ज पर बनाया गया था) 'कोबरा' (CoBRA) का गठन किया गया।
  • वर्तमान समय में माओवादियों को राज्य के दक्षिणी ज़िलों तक सीमित रखने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।

आलोचना:

  • विपक्षी दलों के अनुसार, राज्य सरकार योजना बनाने तथा उस पर काम करने के बजाय केंद्र से केवल मौद्रिक मदद चाहती है।
  • राज्य द्वारा पेश योजना में स्पष्टता का अभाव है। योजना माओवाद के प्रसार को रोकने में किस प्रकार मदद करेगी, इसमें यह उल्लिखित नहीं है।

निष्कर्ष:

  • केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच नक्सलवाद के मुद्दे पर सहकारी संघवाद (संस्थागत समन्वय और संयुक्त तंत्र के कार्यान्वयन में स्पष्टता का अभाव) का अभाव देखा गया है। अत: नक्सलवाद के खिलाफ रणनीति में केंद्र-राज्य सहयोग प्रथम आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस