सुरक्षित भूजल के लिये पर्यावरण-अनुकूल समाधान
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science - IISc) के शोधकर्त्ताओं ने एक नवीन उपचार तकनीक विकसित की है जो न केवल भूजल से भारी धातु प्रदूषकों को खत्म करती है, बल्कि हटाए गए प्रदूषकों का सुरक्षित निपटान भी सुनिश्चित करती है।
- यह आर्सेनिक और अन्य हानिकारक धातुओं को हटाता है, जिससे पानी पीने के लिये सुरक्षित हो जाता है।
- यह प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है क्योंकि हटाए गए दूषित पदार्थों का निपटान पर्यावरण के अनुकूल और सतत् तरीके से किया जाता है।
- 3-चरणीय कार्य प्रणाली:
- पुनर्जीवित करना: दूषित पानी को चिटोसन आधारित अधिशोषक के माध्यम से पारित किया जाता है जो विषाक्त अकार्बनिक आर्सेनिक को समाप्त है। पुनर्नवीनीकृत क्षारीय धुलाई का उपयोग करके अधिशोषक को पुनर्जीवित किया जाता है।
- ध्यान केंद्रित करना: आर्सेनिक युक्त क्षारीय द्रव को झिल्लियों का उपयोग करके अलग कर लिया जाता है, जिससे सोडियम हाइड्रोक्साइड पुनः उपयोग के लिये प्राप्त हो जाता है, जबकि सांद्रित आर्सेनिक को अगले चरण में ले जाया जाता है।
- सुरक्षित निपटान करना: गाय के गोबर में मौजूद सूक्ष्मजीव अकार्बनिक आर्सेनिक को कम विषैले कार्बनिक रूपों में बदल देते हैं। फिर उपचारित कीचड़ का सुरक्षित निपटान किया जा सकता है।
- भारत में 21 राज्यों के 113 जिलों में आर्सेनिक का स्तर 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है, जबकि 23 राज्यों के 223 ज़िलों में फ्लोराइड का स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है, जो भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization - WHO) द्वारा निर्धारित स्वीकार्य सीमा से अधिक है।
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