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प्रश्न :
आप जिओ-इंजीनियरिंग से क्या समझते हैं? ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में जिओ-इंजीनियरिंग की भूमिका पर प्रकाश डालें।
28 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- जिओ-इंजीनियरिंग का संक्षिप्त परिचय दें।
- जलवायु परिवर्तन की वर्तमान स्थिति में इसकी प्रासंगिकता को बताएँ।
- वैश्विक तापन से निपटने में इसकी भूमिका पर चर्चा करें।
- निष्कर्ष
जिओ-इंजीनियरिंग से संबंधित परियोजनाएँ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये डिज़ाइन की जाती हैं, जो आमतौर पर वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियंत्रित या पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाली धूप की मात्रा को सीमित करने का काम करती हैं। यद्यपि बड़े पैमाने पर भू-अभियांत्रिकी अभी भी अवधारणा की अवस्था में है। इसके पैरोकार ये दावा करते हैं कि दुनिया को अंततः जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों से बचाने के लिये यह अति-आवश्यक साबित होगी। इसके विपरीत इसके आलोचक यह दावा करते हैं कि जिओ-इंजीनियरिंग यथार्थवादी नहीं है।
वातावरण में निरंतर बढ़ती कार्बन-डाईऑक्साइड की मात्रा के परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की स्थिति पहले की अपेक्षा कहीं अधिक गंभीर हो गई है । वस्तुतः इसके कारण वैश्विक तापमान (Global Temperatures) में निरंतर वृद्धि हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने हेतु वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा को नियंत्रित करने के साथ-साथ इसे कम किये जाने के प्रयास भी किये जाने चाहिये । जलवायु परिवर्तनों की दर इतनी धीमी होती है कि इसका प्रभाव एक लंबी अवधि में नज़र आता है। यदि इस संबंध में आज से ही प्रयास आरंभ किये जाते हैं तो आज से चार-पाँच दशक बाद इसका प्रभाव परिलक्षित होगा । हालाँकि इस संबंध में वैज्ञानिकों द्वारा बहुत से विकल्पों के सन्दर्भ में अनुसंधान एवं विचार-विर्मश किया जा रहा है। इसी क्रम में वैज्ञानिकों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिये भू-इंजीनियरिंग (geo-engineering) के विकल्प पर विचार करने का सुझाव दिया है।
ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने हेतु पिछले कुछ समय से बहुत से विकल्पों के संदर्भ में विचार किया जा रहा है। इन्हीं विकल्पों में से एक विकल्प यह भी है कि या तो किसी खुले स्थान पर बहुत से छोटे-छोटे परावर्तक दर्पण या फिर एक बहुत बड़े परावर्तक दर्पण (reflectors giant mirrors) को स्थापित किया जाना चाहिये, ताकि पृथ्वी की सतह पर पड़ने वाली सौर विकिरणों को पुनः परावर्तित किया जा सके। सौर विकरणों के एक हिस्से को पृथ्वी पर पहुँचने से पहले रोकने का लाभ यह होगा कि इससे पृथ्वी के तापमान में कमी लाने में सहायता प्राप्त होगी।
ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में भू-इंजीनियरिंग की उपयोगिता के संबंध में किये गए बहुत से अध्ययनों में यह साबित हो चुका है कि यदि जलवायु मॉडलों के अंतर्गत भू-इंजीनियरिंग के विकल्प को इस्तेमाल किया जाए तो इस संबंध में बहुत उपयोगी समाधान निकाले जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों द्वारा औद्योगीकरण से पूर्व के जलवायु स्तर को प्राप्त करने के संबंध में प्रयास किये जा रहे हैं। इस विषय में बहुत से समझौते, संधियाँ एवं कार्यक्रमों का भी संचालन किया जा रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग में भू-इंजीनियरिंग के विकल्प के इस्तेमाल के संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह प्रायोगिक तौर पर जितना आसान प्रतीत हो रहा है वास्तविक रूप में उतना अधिक प्रभावकारी साबित होगा अथवा नहीं, इस संबंध में अभी संशय का माहौल है। अत: यह कहना जल्दबाज़ी होगा कि यह ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के संबंध में एक बेहतर विकल्प है। वास्तविक रूप में अभी तक भू-इंजीनियरिंग एक विवादास्पद विचार है। यही कारण है कि बहुत से वैज्ञानिकों एवं विचारकों द्वारा इसके नैतिक पक्ष के संबंध में आपत्ति जताई गई है। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने हेतु प्रयोग किये जाने वाले अन्य विकल्पों की भाँति यह जलवायु परिवर्तन के सबसे प्रभावशाली कारक कार्बन-डाइऑक्साइड को कम करने में कोई योगदान नहीं देता है । संभवतः यही कारण है कि इसके उपयोग के विषय में विरोध किया जा रहा है। साथ ही इस दिशा में अन्य विकल्पों की तलाश हेतु अनुसंधान भी निरंतर जारी हैं, ताकि जल्द से जल्द वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड के स्तर को कम किया जा सके।
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